नई दिल्ली / बीजिंग
16 जुलाई 2025
राहुल गांधी का तीखा हमला
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बीजिंग में सोमवार को हुई बैठक के दौरान भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बातचीत हुई। इस मुलाकात पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने X (पूर्व ट्विटर) पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “विदेश मंत्री अब एक फुल-ब्लाउन सर्कस चला रहे हैं जिसका मकसद भारत की विदेश नीति को पूरी तरह बर्बाद करना है।” राहुल गांधी ने यह भी तंज किया कि अब तो शायद चीनी विदेश मंत्री भारत आकर प्रधानमंत्री मोदी को भारत-चीन संबंधों के हालात बताएंगे। उनका इशारा था कि भारतीय विदेश नीति की कमान अब भारत में नहीं रही।
कांग्रेस का आरोप
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी राहुल के सुर में सुर मिलाते हुए आरोप लगाया कि सरकार चीन से खतरनाक सैन्य और तकनीकी सहयोगों को नज़रअंदाज़ कर रही है। उन्होंने कहा कि चीन की मदद से पाकिस्तान को अत्याधुनिक हथियार, ड्रोन और खुफिया जानकारी मिल रही है। इसके अलावा भारत आर्थिक रूप से भी चीनी आयात पर निर्भर होता जा रहा है, जिससे आत्मनिर्भर भारत अभियान कमजोर हो रहा है। कांग्रेस ने इस पूरे घटनाक्रम को “कूटनीतिक लाचारी” और “राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़” करार दिया।
जयशंकर का जवाब
इन आरोपों पर विदेश मंत्री जयशंकर ने संयमित लेकिन स्पष्ट प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि, “भारत की विदेश नीति तमाशा नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है। SCO मंच पर चीन के राष्ट्रपति से मुलाकात का मकसद था कि हम सीमाओं पर शांति और दीर्घकालिक स्थायित्व की दिशा में संवाद बहाल करें। हमने भारत की स्थिति स्पष्ट की है और सीमा विवाद सहित अन्य मसलों पर समाधान की दिशा में स्पष्ट रुख रखा है।” जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत बहुपक्षीय कूटनीति में विश्वास रखता है और हर निर्णय राष्ट्रहित में ही लिया जाता है।
राहुल की मांग
राहुल गांधी ने मांग की कि जैसे 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद संसद में बहस हुई थी, वैसे ही अब भी प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर को संसद में आकर चीन के साथ नीति और सीमा विवाद पर खुलकर बयान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनता को यह जानने का हक है कि भारत अपनी सीमाओं और संप्रभुता की रक्षा कैसे कर रहा है।
संवाद बनाम संदेह की जंग
SCO बैठक में हुई इस मुलाकात ने जहां कूटनीतिक दरवाज़े खोलने की कोशिश की, वहीं राहुल गांधी और विपक्ष ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। अब सवाल यह है कि क्या यह संवाद भारत-चीन संबंधों में नई शुरुआत करेगा या फिर यह “फुल-ब्लाउन सर्कस” कहे जाने वाले आरोपों के बीच एक और विवाद का मुद्दा बनकर रह जाएगा। संसद का आगामी सत्र इस बहस को और गर्म कर सकता है।