गुजरात के कच्छ क्षेत्र में संचालित हजारों नमक उत्पादन इकाइयों से निकले रसायनों के कारण भूजल विषैला होता जा रहा है। स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, भुज, गांधीधाम और रण क्षेत्र में पानी में फ्लोराइड, क्लोराइड और TDS (Total Dissolved Solids) की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है।
गांवों में रहने वाले लोग अब न तो इस पानी से पीने का काम कर पा रहे हैं और न ही खेती के लिए इसका उपयोग संभव है। इसके अलावा, लगातार रासायनिक अपशिष्ट के कारण मिट्टी की गुणवत्ता भी खराब हो गई है। पशुओं में त्वचा रोग और मनुष्यों में किडनी संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ी हैं।
हालांकि नमक उद्योग गुजरात की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी भारी पड़ रही है। विशेषज्ञों ने राज्य सरकार से EIA (पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन) को अनिवार्य बनाने की मांग की है और सुझाव दिया है कि सभी नमक इकाइयों को अपशिष्ट शोधन संयंत्र लगाना चाहिए।