भारत केवल एक देश नहीं है। यह संस्कृतियों, परंपराओं और आस्थाओं का वह पावन संगम है, जहाँ हर त्योहार किसी एक समुदाय का नहीं, बल्कि पूरे समाज का उत्सव बन जाता है। यही वह भूमि है जहाँ दीपावली की रोशनी में ईद की मिठास घुलती है, जहाँ होली के रंगों में क्रिसमस की कैंडल की चमक शामिल होती है, और जहाँ गुरबाणी की मिठास भजन और अज़ान के सुरों में गूँजती है।
आज, जब एक ओर रमज़ान की पाकीज़गी में इबादतें चरम पर हैं, वहीं दूसरी ओर होली के रंग उमंग से भर रहे हैं। कुछ ही दिनों में ईद आएगी, जो गले मिलकर दूरियों को मिटाने का सबक देती है, और उसके बाद ईसाई समुदाय ईस्टर मनाएगा, जो पुनर्जन्म और नई आशाओं का प्रतीक है। यह संयोग मात्र नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की वह आत्मा है जो सभी धर्मों को समान स्नेह से अपनाती है।
हमारा इतिहास भी इसकी गवाही देता है—संत कबीर ने हिंदू-मुस्लिम एकता का अलख जगाया, तुलसीदास जी ने “परहित सरिस धरम नहीं भाई” का संदेश देकर प्रेम और सेवा की सीख दी, और अमीर खुसरो की रचनाओं में भारतीयता की झलक दिखाई दी। बाबा बुल्लेशाह ने अपने सूफी कलामों के माध्यम से प्रेम, इंसानियत और सौहार्द्र को सर्वोपरि रखा। उनकी वाणी ने हमेशा यह संदेश दिया कि धर्म से बड़ा प्रेम है और इंसानियत ही सबसे ऊँचा धर्म है।
मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ भी इसी गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल हैं। उनकी रचनाओं में वह हिंदुस्तान जीवंत हो उठता है, जहाँ होली और ईद एक साथ मनाई जाती हैं, जहाँ हामिद अपनी नानी के लिए चिमटा खरीदता है और जहाँ होरी किसान हर धर्म के व्यक्ति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेतों में काम करता है। यह वही भारत है जहाँ भेदभाव की जगह नहीं, जहाँ एकता की भावना हर दिल में बसती है।
सोचिए, वह दृश्य कितना सुंदर होता है जब मंदिरों की घंटियों के बीच मस्जिदों से उठती अज़ान हमें जोड़ने का काम करती है, जब गुरुद्वारों के लंगर में हर जाति-धर्म के लोग प्रेम से साथ बैठकर भोजन करते हैं, और जब चर्च की घंटियों के बीच देश के हर नागरिक की प्रार्थना गूँजती है।
लेकिन इस सौहार्द और भाईचारे की रौशनी को बनाए रखना हमारा कर्तव्य है। धर्म कभी बाँटने का साधन नहीं था, यह जोड़ने का माध्यम है। भारत की पहचान इसकी विविधता में एकता है, और यही हमारी सबसे बड़ी ताकत भी है। आज जब दुनिया धर्म और जाति के नाम पर बँट रही है, तब भारत का संदेश साफ़ है—हम सब एक हैं, और रहेंगे।
आइए, इस त्योहारों के संगम में यह प्रण लें कि हम न सिर्फ अपने त्योहारों को बल्कि एक-दूसरे की खुशियों और संस्कृतियों को भी अपनाएँगे। यही हमारी असली भारतीयता है, यही हमारी सच्ची ताकत है, और यही हमारा भविष्य भी।