9 जुलाई 2025
बिहार में विपक्ष का शक्ति प्रदर्शन, बंद से थमा जनजीवन
बिहार की राजनीति में आज का दिन काफी हलचल भरा रहा, जब विपक्षी दलों ने एकजुट होकर राज्यभर में बंद का आह्वान किया। इसे महंगाई, बेरोजगारी, सामाजिक असमानता और प्रशासनिक भ्रष्टाचार के खिलाफ जनजागरण बताया गया, लेकिन ज़मीनी स्तर पर यह सत्ता पक्ष को खुली चुनौती के रूप में देखा गया। पटना, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गया, आरा, समस्तीपुर सहित कई शहरों में विपक्षी कार्यकर्ता सुबह से ही सड़कों पर उतरे। जगह-जगह टायर जलाए गए, हाईवे जाम किए गए और जनसमस्याओं को लेकर सरकार विरोधी नारेबाजी की गई। स्कूलों, कॉलेजों और बाज़ारों में सामान्य कामकाज ठप रहा। पुलिस-प्रशासन ने व्यापक सुरक्षा प्रबंध किए थे, फिर भी कई जगहों पर हल्की झड़पें और तनाव की स्थिति बनी रही। इस बंद ने साफ कर दिया कि विपक्ष अब जमीन पर उतर चुका है और चुनावी वर्ष में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुट गया है।
विपक्ष के बड़े नेता का आरोप— ‘जब आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं, तो वोटिंग अधिकार कैसे मिल रहा है?’
देश के एक प्रमुख नेता ने आज एक प्रेस वार्ता में चुनाव आयोग की कार्यशैली और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अगर खुद सरकार मानती है कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, तो फिर यह कैसे संभव है कि करोड़ों लोगों को आधार कार्ड के आधार पर वोटिंग का अधिकार मिल गया है? उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है, लेकिन आधार कार्ड के ज़रिए उसका नाम वोटर लिस्ट में जुड़ गया है, तो यह लोकतंत्र की जड़ पर सीधा प्रहार है। यह न सिर्फ संविधान का उल्लंघन है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की वैधता को भी संदिग्ध बनाता है। उन्होंने मांग की कि इस पूरे मामले की जांच सर्वोच्च न्यायालय के मार्गदर्शन में होनी चाहिए और जब तक यह स्पष्ट न हो जाए कि वोटर लिस्ट में केवल भारतीय नागरिक हैं, तब तक चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता संदेह के घेरे में रहेगी।
आधार बनाम नागरिकता: क्या वोटर लिस्ट पर मंडरा रहा है संवैधानिक संकट?
आज सामने आए दस्तावेज़ों और विश्लेषणों से यह खुलकर सामने आया है कि आधार कार्ड नागरिकता नहीं, बल्कि केवल पहचान और निवास का प्रमाण है। फिर भी लाखों लोगों को केवल आधार के आधार पर वोटर लिस्ट में शामिल कर लिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रक्रिया में यदि किसी विदेशी नागरिक को आधार मिल गया है, तो वह आसानी से वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाकर चुनावों में हिस्सा ले सकता है। यह न केवल भारतीय चुनाव प्रणाली के लिए खतरनाक है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी चिंता का विषय है। संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि केवल भारतीय नागरिक को ही मतदान करने का अधिकार है। यदि इस अधिकार का आधार अस्पष्ट है, तो यह पूरे लोकतांत्रिक ढांचे को हिला सकता है।
विपक्षी दलों ने उठाई जांच की मांग, आधार लिंकिंग को बताया ‘फर्जी वोटिंग की जड़’
महागठबंधन सहित तमाम विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका आरोप है कि आधार के ज़रिए फर्जी वोटर बनाए जा रहे हैं, और यह एक सुनियोजित प्रयास है चुनावी जनादेश को प्रभावित करने का। उन्होंने मांग की कि आधार और वोटर लिस्ट की लिंकिंग की प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से रोका जाए, और वोटिंग अधिकार केवल उन्हीं दस्तावेज़ों के आधार पर दिए जाएं जो नागरिकता सिद्ध करते हों, जैसे कि पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र या नागरिकता प्रमाण पत्र। इसके अलावा, उन्होंने स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच आयोग के गठन की मांग की है जो इस पूरी प्रक्रिया की समीक्षा करे और जिम्मेदार लोगों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करे।
2025 के चुनावों से पहले बड़ा मुद्दा बनेगा वोटर लिस्ट विवाद
इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि 2025 में होने वाले चुनावों में आधार बनाम नागरिकता का मुद्दा राजनीतिक विमर्श के केंद्र में रहने वाला है। एक ओर जहां सरकार तकनीक के सहारे चुनावी प्रक्रियाओं को सुगम और पारदर्शी बनाने की बात कर रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ बता रहा है। बिहार बंद और राजनीतिक हमलों से यह भी तय है कि आने वाले दिनों में यह मसला न केवल अदालतों में, बल्कि संसद और सड़क पर भी गूंजेगा। सवाल यही है कि क्या भारत अपने लोकतंत्र की नींव को मजबूती दे पाएगा या यह विवाद और गहराता जाएगा।