7 जुलाई 2025
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में आयोजित एक कांग्रेस कार्यक्रम में सांसद इमरान मसूद ने वक्फ अधिनियम को लेकर जो बयान दिया, उसने भारतीय राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। मसूद ने ऐलान किया कि “अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो वक्फ एक्ट को हम सिर्फ एक घंटे में रद्द कर देंगे।” यह बयान ऐसे समय आया है जब केंद्र सरकार द्वारा वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 लागू किए जाने के बाद मुस्लिम समाज के भीतर इसके प्रभाव को लेकर संवाद तेज हो चुका है। मसूद का यह कथन न केवल उनकी पार्टी की नीति का संकेत देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कांग्रेस इस विधेयक को किस नजरिए से देख रही है।
इमरान मसूद ने अपने भाषण में वक्फ एक्ट को मुस्लिम समाज के अधिकारों के खिलाफ एक साजिश बताया और यह भी कहा कि वर्तमान सरकार ने इस कानून के नाम पर वक्फ की ज़मीनों को मुसलमानों से छीनने की प्रक्रिया शुरू की है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस कानून के ज़रिए सरकार मजहबी संस्थाओं में सरकारी हस्तक्षेप को वैधता देने का प्रयास कर रही है, जो संविधान की मूल भावना—धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक स्वतंत्रता—के खिलाफ है। मसूद ने तीखे शब्दों में कहा कि वक्फ बोर्डों को सरकारी नियंत्रण में देने से न केवल मुसलमानों की संपत्ति खतरे में पड़ी है, बल्कि उनके धार्मिक और सामाजिक अधिकार भी कमजोर किए जा रहे हैं।
इस बयान के बाद राजनीति गरमा गई है। भाजपा के प्रवक्ताओं ने इमरान मसूद पर “कट्टरपंथी तुष्टिकरण” का आरोप लगाया और कहा कि कांग्रेस एक बार फिर मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति कर रही है। वहीं, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (MRM) और भाजपा के अल्पसंख्यक नेताओं ने इमरान मसूद के बयान को “खतरनाक और समाज को बांटने वाला” बताया है। उनका कहना है कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन पूरी तरह पारदर्शिता, जवाबदेही और गरीब मुसलमानों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से किए गए हैं। ऐसे में इसे खत्म करने की बात करना सिर्फ राजनीतिक स्टंट है, जिसका मकसद समाज को गुमराह करना है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इमरान मसूद का यह बयान उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। हालांकि, उनका यह वादा—कि सत्ता में आते ही एक घंटे में वक्फ अधिनियम खत्म कर देंगे—संवैधानिक प्रक्रिया की वास्तविकता से काफी दूर प्रतीत होता है। किसी भी केंद्रीय कानून को समाप्त करने के लिए संसद की दोनों सदनों में बहुमत, लंबी बहस, संवैधानिक परीक्षण और अंततः राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक होती है। ऐसे में मसूद का यह दावा भले ही सियासी रूप से आक्रामक हो, पर व्यावहारिक दृष्टि से यह जटिल और अनिश्चित है।
वक्फ अधिनियम 2025 की पृष्ठभूमि पर गौर करें तो यह कानून केंद्र सरकार द्वारा इस उद्देश्य से लाया गया कि देश भर की वक्फ संपत्तियों को डिजिटलाइज, ऑडिटेड, और जनकल्याण के लिए पारदर्शी तरीके से इस्तेमाल किया जाए। इसमें महिलाओं और पेशेवरों को वक्फ बोर्ड में प्रतिनिधित्व देने, गैर-मुस्लिम विशेषज्ञों को शामिल करने और अतिक्रमण से संपत्तियों की रक्षा की व्यवस्था की गई है। इन सभी सुधारों को संवैधानिक और न्यायिक प्रक्रिया के अनुरूप बताया गया है। अब जबकि MRM, RSS और कई मुस्लिम शिक्षाविदों ने इस अधिनियम का समर्थन किया है, इमरान मसूद का यह बयान कहीं न कहीं एक गहरे वैचारिक टकराव को जन्म देता है—कि क्या मुस्लिम राजनीति सामाजिक विकास पर आधारित होगी या फिर महज पहचान की राजनीति पर?
इमरान मसूद का यह बयान भारतीय लोकतंत्र और मुस्लिम राजनीति में एक बड़ा सवाल खड़ा करता है: क्या मुसलमानों को वास्तविक लाभ पहुंचाने वाले कानूनों का समर्थन किया जाएगा, या वे पुरानी पहचानवादी राजनीति में फंसकर अपनी प्रगति को बाधित करेंगे? वक्फ अधिनियम को खत्म करने की धमकी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह विषय अब केवल धार्मिक या कानूनी नहीं, बल्कि गहरे राजनीतिक और सामाजिक विमर्श का केंद्र बन चुका है। आने वाले चुनावों में यह देखा जाएगा कि मुस्लिम समाज विकास को प्राथमिकता देता है या राजनीति की उत्तेजक भाषा को।