Home » National » भारत जोड़ो यात्रा: देश की राजनीति में एक विचारात्मक पदयात्रा की सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक पड़ताल

भारत जोड़ो यात्रा: देश की राजनीति में एक विचारात्मक पदयात्रा की सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक पड़ताल

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

जब एक नेता ने चुनी पदयात्रा की राह

भारतीय राजनीति में वर्ष 2022 के सितम्बर महीने में एक ऐसा क्षण आया, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दक्षिण भारत के सुदूर छोर कन्याकुमारी से कंधे पर तिरंगा थामे पैदल चलना शुरू किया। इस यात्रा को नाम दिया गया – “भारत जोड़ो यात्रा”। यह कोई सामान्य राजनीतिक अभियान नहीं था; यह एक प्रतीकात्मक, वैचारिक और सामाजिक आंदोलन था, जिसकी जड़ें भारत के संविधान में थीं और जिसकी प्रेरणा गांधी की दांडी यात्रा से मिलती थी। यह यात्रा 7 सितंबर 2022 से शुरू होकर 29 जनवरी 2023 तक चली, और लगभग 4,080 किलोमीटर की पदयात्रा में देश के 12 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों को पार किया।

यात्रा की मूल अवधारणा: भारत जोड़ो क्यों?

राहुल गांधी के अनुसार यह यात्रा किसी चुनावी लाभ या सत्ता की आकांक्षा से नहीं बल्कि “देश में फैलाई जा रही नफरत, भय, बेरोज़गारी और महंगाई के विरुद्ध जनचेतना और संवाद स्थापित करने का माध्यम” थी। यात्रा का उद्देश्य था भारत में एकजुटता, बंधुत्व और लोकतांत्रिक मूल्यों को पुनः जीवित करना। इसके पीछे यह सोच थी कि भारतीय समाज आज सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, संस्थानों के क्षरण, बेरोजगारी और अमीरी-गरीबी की बढ़ती खाई से जूझ रहा है—और इन संकटों का समाधान केवल संवाद और जन-संपर्क से निकलेगा, न कि भाषणों और टीवी डिबेट से।

यात्रा का मार्ग और प्रमुख पड़ाव

भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत तमिलनाडु के कन्याकुमारी से हुई। इसके बाद यह यात्रा केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, और फिर जम्मू-कश्मीर से होती हुई श्रीनगर में समाप्त हुई। कुल मिलाकर यह यात्रा 4,080 किलोमीटर की रही और इसमें राहुल गांधी ने प्रतिदिन औसतन 20-25 किलोमीटर पैदल चलकर आम जनता से संवाद किया। यात्रा के दौरान कई पड़ावों पर रात्रि विश्राम के शिविर लगाए गए, जिन्हें ‘भारत जोड़ो कैंप’ कहा गया।

जन-संपर्क और संवाद का नया ढांचा

इस यात्रा की सबसे बड़ी खूबी थी इसका ‘जन-केंद्रित’ मॉडल। राहुल गांधी हर दिन सड़कों पर लोगों से मिलते, उनसे बातें करते, बच्चों के साथ दौड़ते, किसानों, युवाओं, मजदूरों, पूर्व सैनिकों, शिक्षकों, बेरोज़गारों, महिलाओं और बुजुर्गों से सीधा संवाद करते। किसी भी मंचीय भाषण की बजाय यह यात्रा “जुड़ने” की एक मौन राजनीतिक क्रांति थी। बच्चों ने उन्हें “पप्पू अंकल” कहा, बुजुर्गों ने आशीर्वाद दिया, और बेरोज़गार युवाओं ने अपनी व्यथा सुनाई। इस संवाद में न कैमरा बाधा बना, न पार्टी का झंडा—सिर्फ इंसान और इंसान के बीच आत्मीयता रही।

राज्यों में यात्रा की प्रतिक्रियाएँ

केरल और कर्नाटक में यात्रा को व्यापक जनसमर्थन मिला और लाखों लोग सड़कों पर उतरे। कर्नाटक में यह यात्रा उस समय आई जब विधानसभा चुनाव पास थे, और कांग्रेस के लिए यह एक सकारात्मक लहर उत्पन्न करने में सहायक बनी।

मध्य प्रदेश और राजस्थान में यात्रा ने संगठन को जीवित किया और जमीनी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भर दी।

दिल्ली और उत्तर प्रदेश में यात्रा का असर सीमित रहा, लेकिन प्रतीकात्मक रूप से यह बड़ा संदेश देती रही।

पंजाब और जम्मू-कश्मीर में यात्रा को सुरक्षा कारणों से अतिरिक्त सावधानी से चलाया गया, फिर भी श्रीनगर में लाल चौक पर तिरंगा फहराना एक ऐतिहासिक क्षण बन गया।

मुद्दे जो यात्रा के केंद्र में थे

भारत जोड़ो यात्रा ने उन मुद्दों को उठाया जिनसे मुख्यधारा की राजनीति अक्सर कतराती है:

बेरोज़गारी और महंगाई: राहुल गांधी ने कहा कि युवाओं के पास रोज़गार नहीं और सरकार पूंजीपतियों की सेवा में लगी है।

सांप्रदायिक विभाजन: यात्रा का उद्देश्य था हिंदू-मुस्लिम, सवर्ण-दलित, उत्तर-दक्षिण जैसे सामाजिक विभाजनों को मिटाकर “एक भारत” की भावना को फिर से स्थापित करना।

संविधानिक संस्थाओं की स्थिति: न्यायपालिका, मीडिया, चुनाव आयोग और संसद की स्वतंत्रता के मुद्दे बार-बार चर्चा में आए।

किसानों की पीड़ा और महिला सुरक्षा: किसान आंदोलनों से उपजे असंतोष और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी यात्रा के दौरान खुलकर बातचीत हुई।

समापन समारोह: श्रीनगर का लाल चौक और राष्ट्रीय ध्वज

29 जनवरी 2023 को यात्रा का समापन श्रीनगर के लाल चौक पर हुआ, जहाँ राहुल गांधी ने तिरंगा फहराया। यह दृश्य स्वतंत्रता संग्राम के उस क्षण की याद दिलाता है जब 1948 में पंडित नेहरू ने इसी स्थान पर तिरंगा लहराया था। हजारों कार्यकर्ताओं और नेताओं की उपस्थिति में राहुल गांधी ने कहा, “हमने भारत की आत्मा को जोड़ने का प्रयास किया है। नफरत के सामने प्रेम की शक्ति को खड़ा किया है।”

आलोचना और समर्थन

भारत जोड़ो यात्रा को जहाँ एक ओर प्रशंसा मिली, वहीं आलोचना भी झेलनी पड़ी। समर्थकों ने इसे गांधीवादी पदचिह्नों पर चली ‘संवेदनशील राजनीति’ कहा, जबकि विरोधियों ने इसे ‘कांग्रेसी इवेंट मैनेजमेंट’ बताया। भाजपा ने यात्रा को “राजनीतिक पर्यटन” बताया, जबकि विपक्ष के अन्य दलों ने कभी मौन तो कभी सहयोग का रुख अपनाया। मीडिया के एक वर्ग ने इसे अनदेखा किया, लेकिन सोशल मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारों ने यात्रा को नई दृष्टि से कवर किया।

भविष्य की दृष्टि – यात्रा के प्रभाव और आगे का रास्ता

भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस पार्टी के लिए केवल एक पुनर्जीवन का प्रयास नहीं, बल्कि राहुल गांधी के लिए वैचारिक पहचान और जननेता बनने की यात्रा रही। इससे पार्टी के भीतर संगठनात्मक ऊर्जा बढ़ी, और कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास लौटा। यह यात्रा राहुल गांधी की छवि को एक “गंभीर, संवेदनशील और वैचारिक नेता” में बदलने में सहायक रही, जो 2024 के आम चुनाव में बड़ी भूमिका निभा सकती है।

पदचिन्ह जो विचार बन गए

भारत जोड़ो यात्रा भारतीय राजनीति में एक ऐसा प्रयोग रही, जो सत्ता नहीं, संवाद के जरिए बदलाव लाने का प्रयास था। यह पदयात्रा विचारों की चुपचाप गूंज रही थी—विभाजन के खिलाफ एकजुटता की आवाज़, डर के खिलाफ प्रेम की पुकार, और लोकतंत्र के संकट में एक वैकल्पिक नैतिक नेतृत्व की खोज। इस यात्रा के पदचिन्ह शायद आने वाले वर्षों में उस भारत की नींव बनेंगे, जहाँ राजनीति फिर से जनता से जुड़ेगी—नारेबाज़ी से नहीं, संवाद से।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *