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बिहार में नई क्रांति की दहलीज पर महागठबंधन: तेजस्वी की हुंकार और बदलाव का नैरेटिव

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आलोक रंजन | पटना/ नई दिल्ली

महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव का जनसभाओं में उमड़ता सैलाब इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बिहार की जनता अब बदलाव के लिए एकजुट हो चुकी है। तेजस्वी यादव का हर सभा, हर कदम पर मिल रहा यह अटूट प्रेम और समर्थन, उनके अनुसार, सिर्फ उनके लिए समर्थन नहीं है, बल्कि बिहार में एक बड़ी क्रांति और परिवर्तन की शुभ शुरुआत है। डिहरी और जहानाबाद जैसी जगहों पर उमड़े भारी जनसैलाब को संबोधित करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि यह केवल राजनीतिक दलों की नहीं, बल्कि जनता की उम्मीदों की लड़ाई है, और जीत भी जनता की ही होगी। यह जनसमर्थन और स्नेह तेजस्वी और पूरे बिहार के लिए एक आशीर्वाद के समान है, जो यह दर्शाता है कि अब बिहार पलायन, बेरोज़गारी और राजनीतिक अस्थिरता के पुराने युग को पीछे छोड़कर, शिक्षा, रोज़गार और उद्योग के नए युग में कदम रखने को आतुर है। यदि भारतीय जनता पार्टी और चुनाव आयोग की संस्थाएं ‘वोट चोरी’ जैसे लोकतंत्र विरोधी कार्यों में लिप्त न हों, और चुनाव प्रक्रिया स्वच्छ रहे, तो यह जनसैलाब 2025 में बिहार में एक अभूतपूर्व नई क्रांति तैयार कर सकता है।

राहुल गांधी का साहसिक नैरेटिव: ‘वोट चोरी’ का मुद्दा और लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा

बिहार की राजनीति में इस बार का चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक टर्निंग पॉइंट साबित हो रहा है। राहुल गांधी ने किशनगंज और पूर्णिया की रैली में जिस आक्रामक और मुखर अंदाज़ में बात की, उसने राजनीति के असली नैरेटिव को पकड़ लिया है। उन्होंने जिस साहस के साथ ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठाया और सीधे तौर पर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, और CEC ज्ञानेश कुमार पर आरोप लगाए, वह भारतीय राजनीति में एक साहसिक और अभूतपूर्व बयान है। उनका यह आरोप कि हरियाणा में 25 लाख फर्जी वोट पाए गए हैं और चुनाव आयोग के पास इसका ठोस जवाब नहीं है, यह बताता है कि लोकतंत्र की नींव में कुछ गंभीर रूप से टूट चुका है। बिहार, जो लोकतंत्र को केवल एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि अपनी पहचान मानता है, वहाँ यह मुद्दा जनता के अंदर गहरे उतरता है। यह चुनावी क्रांति की घोषणा है जो लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि अगर लोकतंत्र की सबसे मूलभूत प्रक्रिया ही दागदार है, तो उन्हें अपने मत की रक्षा के लिए अधिक जागरूक और एकजुट होना होगा। यदि जनता यह सुनिश्चित कर पाए कि उनके वोट की चोरी न हो, तो महागठबंधन के पक्ष में तैयार यह जनमानस की सुनामी एक ऐतिहासिक बदलाव लाएगी।

युवाओं का क्रोध और भविष्य की दृष्टि: शिक्षा एवं रोज़गार ही बिहार की नई दिशा

आज का बिहार युवा ग़ुस्से में है, और राहुल गांधी ने इस क्रोध को मुखरता दी है। यह गुस्सा सिर्फ नौकरी न मिलने का नहीं है, बल्कि पेपर लीक के कारण भविष्य को मज़ाक बनाए जाने का है, और सबसे बढ़कर, मुख्यमंत्री के मौन का है, जिन्होंने हजारों युवाओं के पटना में धरना देने के बावजूद उनसे मिलना तक ज़रूरी नहीं समझा। यह सवाल सिर्फ सरकार से नहीं, बल्कि उस पूरे राजनीतिक ढांचे से है जिसने बिहार के युवाओं को केवल ‘वोट बैंक’ समझा, ‘मानव’ नहीं। राहुल गांधी और महागठबंधन ने इस दर्द को समझा और इसका समाधान स्पष्ट दृष्टि के साथ प्रस्तुत किया है। महागठबंधन की सरकार आने पर “दुनिया की सबसे बेहतरीन यूनिवर्सिटी” बनाने का वादा एक विशाल संकल्प है, जिसे आलोचक चुनावी स्टंट कह सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि नालंदा और विक्रमशिला की विरासत वाला बिहार क्यों नहीं फिर से शिक्षा का केंद्र बन सकता? यह असंभव नहीं है। समस्या संसाधनों की नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की है। बिहार का भविष्य तभी बदलेगा जब वह मजदूरी भेजने वाला राज्य से हटकर रोजगार देने वाला राज्य बने, और महागठबंधन का यह विज़न जनता को एक नया विश्वास दे रहा है।

नीतीश कुमार की विश्वसनीयता का अंत और बदलाव की अनिवार्यता

नीतीश कुमार, जो कभी ‘सुशासन बाबू’ कहे जाते थे, आज राजनीतिक अस्थिरता और टूटी हुई विश्वसनीयता की मिसाल बन चुके हैं। गठबंधन बदलने की उनकी राजनीति ने न केवल उनके भरोसे को खत्म किया है, बल्कि जनसमर्थन को भी बिखेर दिया है। राहुल गांधी का यह दावा कि “बिहार में नीतीश की सरकार अब कभी नहीं बन सकती,” राजनीतिक विश्लेषण की दृष्टि से दूर की कौड़ी नहीं लगता। बिहार का युवा अब “रोज़गार” और “विकास” चाहता है, न कि गठबंधन बदलने की पुरानी, थकी हुई राजनैतिक दुकान। 2025 का चुनाव बिहार के लिए दो विकल्प नहीं, दो युग प्रस्तुत करता है: एक युग पलायन, बेरोजगारी और राजनीतिक समझौते का, और दूसरा युग रोजगार, शिक्षा, उद्योग और लोकतांत्रिक जागरूकता का। भीड़ से निकल रहा नारा और तेजस्वी यादव के साथ उमड़ता जनसैलाब स्पष्ट रूप से बता रहा है कि बिहार अब विकल्प नहीं, परिवर्तन चुनने वाला है। यदि बीजेपी और चुनाव आयोग के संभावित ‘वोट चोरी’ के दलदल से बिहार सुरक्षित निकल जाता है, तो यह बदलाव केवल बिहार को ही नहीं बदलेगा, बल्कि पूरे उत्तर भारत की राजनीति को फिर से परिभाषित करेगा। बिहार निर्णय की राजनीति में प्रवेश कर चुका है, और यह तैयारी ही 2025 की सबसे बड़ी राजनीतिक खबर है।

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