लखनऊ 9 नवंबर 2025
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने न सिर्फ कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं बल्कि यह दिखाता है कि कैसे बड़ी ठगी करने वाला आरोपी जेल में बैठते हुए भी न्यायप्रणाली को चुनौती दे रहा है। जानकारी है कि लगभग ₹3,700 करोड़ के साइबर ठगी स्कैम का मुख्य आरोपी Anubhav Mittal, जो कि लगभग सात लाख निवेशकों को फर्जी ऑनलाइन ट्रेडिंग पोर्टल के ज़रिये ठगने का आरोपित है, वर्तमान में लखनऊ जेल में बंद है। इस आरोपी ने कथित रूप से एक पुलिस कांस्टेबल का मोबाइल फोन इस्तेमाल करके Allahabad High Court के जज को धमकी-भरा ई-मेल भेजा, जिसमें जज की हत्या की योजना का उल्लेख था।
मामले की जांच में यह खुलासा हुआ है कि Anubhav Mittal ने 4 नवंबर को पुलिस कांस्टेबल Ajay Kumar का फोन उधार लेकर अपना एक नया ई-मेल आईडी बनाया और अगले दिन सुबह टाइमर सेट कर धमकी भरा मेसेज उस जज के पते पर भेज दिया। पुलिस ने बताया कि फोन कांस्टेबल ने कोर्ट में कस्टडी ही में प्रयोग किया था। इसके बाद मामला बढ़ा क्योंकि Cyber Cell और Crime Branch ने यह पता लगाया कि मेल उसी कांस्टेबल के फोन से गई थी। इसके आधार पर आरोपी Mittal और कांस्टेबल Ajay Kumar के खिलाफ क्रिमिनल धमकी और IT एक्ट के तहत FIR दर्ज की गई है।
यह घटना सिर्फ एक जेल से भेजी गई धमकी का मामला नहीं है — यह उस सिस्टम दोष को उजागर करती है जिसमें बड़ी साइबर ठगी की घटना के आरोपी को जेल में होने के बावजूद पुलिस वालों के फोन का उपयोग गर्व से किया जा सकता है, और उनके द्वारा न्यायपालिका को खुलेआम चुनौती दी जा सकती है। स्कैम की उत्पत्ति नोएडा-आधारित कंपनी के माध्यम से हुई थी, जहां Mittal के नेतृत्व में एक फर्जी ऑनलाइन ट्रेडिंग पोर्टल चलाया गया और उसमें लाखों निवेशकों को आकर्षित किया गया। यह स्कैम वर्षों पहले पकड़ी गई थी, पर अब उसका असर न्यायप्रणाली के प्रत्येक अंग पर दिख रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह की घटना लोकतंत्र के “न्याय और कानून के भरोसे” पर चोट है। जब एक आरोपी जेल में रहते हुए जज को धमकी भेज सकता है, तो प्रश्न उठता है कि कैसे जेल, पुलिस, और कोर्ट के बीच समन्वय गतिरोध में है। साथ ही यह भी सवाल बचता है कि क्या ठगों को अब सिर्फ निवेशकों को ठगना ही नहीं आता—बल्कि वे न्याय प्रणाली को बाधित करने की क्षमता भी विकसित कर चुके हैं। इस मामले ने यह सुनिश्चित कर लिया है कि सरल मामला नहीं, बल्कि सिस्टमेटिक संरचना में भ्रष्टाचार का प्रतिबिंब है।
पुलिस ने अब जज की सुरक्षा बढ़ा दी है और जेल-शाखा में सख्त मोनिटरिंग शुरू कर दी है, लेकिन समाज का भरोसा लौटाना आसान नहीं होगा। क्या यह घटना चेतावनी नहीं है कि बड़े स्कैम में आरोपी सिर्फ धन ले कर नहीं भागते—उनके पास राजनीतिक-सामाजिक नेटवर्क और पुलिस-प्रेरित संसाधन भी होते हैं। इस तरह की ठगी और धमकी मिलकर न्याय की प्रक्रिया को कमजोर करती है।
इस पूरे प्रकरण में लोक-वित्तीय अपराध, जेल प्रणाली की कमजोरियाँ, पुलिस में सहकारिता-विरोध, और न्यायपालिका पर प्रत्यक्ष हमला—इन सभी कड़ियों का संयोजन दिख रहा है। यदि अब इस मामले में पूरी पारदर्शिता के साथ जांच नहीं होगी, तो यह सिर्फ एक अपराध की खबर नहीं रहेगी—बल्कि भारत के आर्थिक अपराध नियंत्रण और न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर बड़ा धब्बा बन जाएगी।
अभी समय है कि संबंधित एजेंसियाँ—Cyber Cell, Crime Branch, पुलिस विभाग और न्यायपालिका—सहयोग से काम करें और दिखाएँ कि बड़ी ठगी करने वाला जेल में कैद होकर भी जनता को डराने, धमकाने और फर्जी ई-मेल भेजने की स्थिति में नहीं होगा। नहीं तो यह मामला निवेशकों का धोखा से बढ़ कर भारत के लोकतन्त्र और न्याय व्यवस्था के लिए संकट संकेत बन जाएगा।



