सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अत्यंत महत्वपूर्ण और मानवीय संतुलन वाला आदेश जारी करते हुए देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कड़े निर्देश दिए हैं। इस आदेश में कहा गया है कि अब देश के सभी स्कूलों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और अन्य प्रमुख सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों को तुरंत हटाया जाए, ताकि आम नागरिकों, विशेषकर बच्चों, बुजुर्गों और मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। यह फैसला देशभर में लगातार बढ़ रहे कुत्तों के हमलों और डॉग-बाइट की गंभीर घटनाओं के मद्देनजर लिया गया है, जिन्होंने सार्वजनिक जीवन में भय का माहौल पैदा कर दिया है। अदालत ने इस आदेश के माध्यम से स्पष्ट किया है कि अब “मानव जीवन की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता” होगी और किसी भी कीमत पर नागरिक सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता।
आदेश में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि कुत्तों को पकड़ने के बाद उनकी नसबंदी (sterilization) और टीकाकरण (vaccination) वैज्ञानिक तरीके से किया जाए, और उसके बाद उन्हें स्थायी रूप से शेल्टर होम्स (shelters) में रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर सबसे अधिक जोर दिया है कि इन कुत्तों को कभी भी वापस सड़कों पर नहीं छोड़ा जाएगा, क्योंकि पिछली नीतियां, जिनमें नसबंदी के बाद कुत्तों को वापस उनके ठिकाने पर छोड़ना शामिल था, अब तक सार्वजनिक सुरक्षा में सबसे बड़ी बाधा सिद्ध हुई हैं।
3.8 लाख डॉग-बाइट मामलों पर न्यायालय की सख्ती और मानवाधिकार का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त और व्यापक फैसले के पीछे देश भर से सामने आया एक भयावह आंकड़ा है — 2025 के पहले सात महीनों में ही देशभर में 3.8 लाख से अधिक कुत्तों के काटने के मामले दर्ज किए गए, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए एक बड़ा संकट बन चुका है। न्यायालय ने इन आंकड़ों को देखते हुए कहा कि यह स्थिति अब भयावह हो चुकी है और नागरिक, खासकर बच्चे, बुजुर्ग और मरीज, सड़कों पर, स्कूलों में और अस्पतालों के आसपास खुद को पूरी तरह से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। कोर्ट ने इसे सिर्फ एक प्रशासनिक विफलता तक सीमित नहीं माना, बल्कि इसे मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन करार दिया।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि हर नागरिक को भय-मुक्त जीवन का अधिकार है, और यह राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह हर हाल में यह सुनिश्चित करे। कोर्ट ने इस बात पर भी गहरी नाराजगी व्यक्त की कि राज्यों और स्थानीय निकायों (नगरपालिकाओं) ने Animal Birth Control (ABC) Rules का पालन बेहद लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी से किया है।
इन नियमों के तहत आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण अनिवार्य है, लेकिन अधिकांश निकायों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया, जिससे आवारा कुत्तों की आबादी अनियंत्रित रूप से बढ़ती गई। सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि “कानून सिर्फ किताबों में नहीं रह सकता। जब बच्चे स्कूल जाने से डरें और मरीज अस्पतालों के बाहर कुत्तों से बचकर चलें, तो यह सभ्य समाज का संकेत नहीं हो सकता।”
आवारा मवेशियों (Stray Cattle) पर भी सख्त कार्रवाई का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश को केवल आवारा कुत्तों तक सीमित न रखते हुए, आवारा मवेशियों (stray cattle) को लेकर भी सख्त निर्देश दिए हैं, क्योंकि ये भी सार्वजनिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुके हैं। कोर्ट ने टिप्पणी की कि राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर आवारा पशु (गाय, बैल आदि) सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण बन रहे हैं, जिससे न केवल मनुष्यों का जीवन संकट में पड़ रहा है, बल्कि संपत्ति का भी भारी नुकसान हो रहा है। इसीलिए अब सड़क सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए, इन पशुओं को भी प्रमुख सड़कों और सार्वजनिक स्थानों से हटाने के आदेश दिए गए हैं।
राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि वे पुलिस गश्ती दल और एक प्रभावी हेल्पलाइन तंत्र के माध्यम से सड़कों पर घूमने वाले पशुओं की लगातार निगरानी करें और उन्हें सुरक्षित पशु शेल्टरों में ले जाकर रखें। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यह काम किसी अस्थायी अभियान की तरह नहीं, बल्कि एक स्थायी और सतत प्रशासनिक व्यवस्था के रूप में लागू किया जाना चाहिए, ताकि सड़कों पर पशुओं की वापसी न हो।
पशु-प्रेम और मानव-सुरक्षा के बीच संवेदनशील संतुलन
सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस कड़े आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है कि इस कदम का उद्देश्य किसी भी पशु के साथ क्रूरता करना बिल्कुल नहीं है। अदालत ने इस बात को सुनिश्चित किया है कि आवारा कुत्तों को पकड़ने, टीकाकरण कराने और शेल्टर में रखने की पूरी प्रक्रिया मानवीय, वैज्ञानिक और अहिंसक ढंग से की जाएगी।
यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी शेल्टर होम्स में पकड़े गए पशुओं के लिए पर्याप्त भोजन, पानी, चिकित्सा देखभाल (Veterinary Care) और उचित आश्रय की व्यवस्था हो। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि पशु कल्याण बोर्ड, स्थानीय निकाय और गैर-सरकारी संगठन (NGOs) मिलकर इस नीति को पारदर्शिता और सहयोग के साथ लागू करें।
न्यायालय ने अपने आदेश के पीछे के सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए कहा कि “यह आदेश किसी वर्ग या संगठन के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह जनता की सुरक्षा और पशुओं की संवेदनशील देखभाल दोनों के बीच एक आवश्यक संतुलन बनाने का प्रयास है। मानव जीवन की सुरक्षा सर्वोपरि है, परंतु पशु अधिकारों की उपेक्षा भी स्वीकार्य नहीं होगी।” यह संतुलन ही इस फैसले को न्यायसंगत और मानवीय बनाता है।
राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी और जवाबदेही तय करने का तंत्र
इस ऐतिहासिक आदेश की प्रभावी क्रियान्विति सुनिश्चित करने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक राष्ट्रीय निगरानी प्राधिकरण (National Stray Animal Monitoring Authority) गठित करने को कहा है। इस प्राधिकरण का मुख्य कार्य होगा — राज्यों और स्थानीय निकायों से हर तीन महीने में अनिवार्य रूप से रिपोर्ट मांगना और यह सुनिश्चित करना कि आवारा पशु नियंत्रण से जुड़ी नीतियाँ केवल सरकारी फाइलों में न रहें, बल्कि ज़मीन पर पूरी गंभीरता से लागू हों। कोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि किसी राज्य या नगर निकाय ने इस आदेश का पालन करने में लापरवाही बरती, तो उस पर गंभीर अवमानना की कार्यवाही की जाएगी।
कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण सुझाव दिया कि प्रत्येक जिले में एक “स्ट्रे एनिमल कंट्रोल टीम” का गठन किया जाए। इन टीमों में प्रशासनिक अधिकारी, अनुभवी पशु चिकित्सक (Veterinarians) और स्थानीय समुदाय के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इन टीमों का काम होगा प्रत्येक सार्वजनिक स्थल की स्थिति की रिपोर्ट तैयार करना और आवारा कुत्तों तथा मवेशियों को हटाने का समन्वित और निरंतर अभियान चलाना।
फैसले पर देशव्यापी मिली-जुली प्रतिक्रिया और भविष्य की चुनौती
सुप्रीम कोर्ट के इस व्यापक और कड़े फैसले के बाद देशभर में एक बड़ी बहस छिड़ गई है। एक ओर, अभिभावकों, शिक्षकों, और डॉक्टरों ने इस फैसले का जोरदार स्वागत किया है, क्योंकि वे सार्वजनिक स्थलों पर बच्चों और मरीजों की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। वहीं, दूसरी ओर, कई पशु-प्रेमी संगठनों (Animal Lovers/Activists) ने इस बात पर गहरी चिंता जताई है कि यदि देश में पर्याप्त संख्या में शेल्टरों और संसाधनों की व्यवस्था नहीं की गई, तो इतनी बड़ी संख्या में कुत्तों के जीवन पर संकट आ सकता है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस आशंका को गंभीरता से लेते हुए अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि “सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी जानवर भूख, बीमारी या उपेक्षा से न मरे। राज्य के पास पर्याप्त शेल्टर, प्रशिक्षित पशु चिकित्सक और भोजन की व्यवस्था युद्धस्तर पर होनी चाहिए।” यह चुनौती अब राज्य सरकारों के सामने है कि वे पशु कल्याण के मानकों को बनाए रखते हुए इस विशाल कार्य को कैसे पूरा करती हैं।
अदालत का दो टूक और अंतिम संदेश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय के अंत में राष्ट्र को एक स्पष्ट और दो टूक संदेश दिया। न्यायालय ने कहा — “जनता का जीवन अब डर और असुरक्षा में नहीं रह सकता। जब तक सड़कों और सार्वजनिक स्थलों से आवारा पशु नहीं हटाए जाएंगे, तब तक नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती। राज्य का यह नैतिक और संवैधानिक दायित्व है कि वह जनता के जीवन की रक्षा करे।”
एक नए प्रशासनिक युग का संकेत
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मात्र एक कानूनी आदेश नहीं है, बल्कि यह भारत की शहरी और ग्रामीण प्रशासनिक व्यवस्था में एक बड़े और आवश्यक बदलाव का संकेत है। यह आदेश इस बात का प्रतीक है कि अब भारत में मानव जीवन की सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों को एक समान सम्मान और संवेदनशीलता के साथ देखा जाएगा, लेकिन नागरिक सुरक्षा को सर्वोपरि माना जाएगा। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय इस व्यापक आदेश को कितनी गंभीरता, तत्परता और कुशलता से लागू करते हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का संदेश एकदम साफ है: “दया और अनुशासन दोनों जरूरी हैं — लेकिन जब बात नागरिक सुरक्षा की हो, तो दया कभी भी कर्तव्य पर भारी नहीं पड़ सकती।”




