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मो-डानी जोड़ी लोकतंत्र की सबसे बड़ी धोखेबाज़ी और खतरा बन चुकी है : पवन खेड़ा

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पटना 7 नवंबर 2025

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और AICC मीडिया एवं पब्लिसिटी विभाग के चेयरमैन पवन खेड़ा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि “मो-डानी गठबंधन आज लोकतंत्र की सबसे बड़ी धोखेबाज़ी बन चुका है।” खेड़ा ने कहा कि यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं है, बल्कि सत्ता और पूंजी का संगठित षड्यंत्र है जिसने जनता की आवाज़, मीडिया की आज़ादी और संस्थाओं की रीढ़ तोड़ दी है। उन्होंने कहा — “मोदी-अडानी मॉडल ने भारत की राजनीति को दलदल में धकेल दिया है, जहां न नीति बची है, न नीयत। प्रधानमंत्री अब जनता के नहीं, कॉर्पोरेट के एजेंट बन चुके हैं। जिन्होंने बिहार की ज़मीन एक रुपये में बेच दी, वे कल देश का स्वाभिमान भी गिरवी रख देंगे।” पवन खेड़ा ने चेतावनी दी कि देश अब इस ‘मो-डानी माफिया राज’ के खिलाफ उठ खड़ा होगा, क्योंकि यह गठबंधन सिर्फ लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा पर हमला है।

देश की राजनीति में आज सबसे ज़ोरदार विस्फोट तब हुआ जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और AICC मीडिया व पब्लिसिटी विभाग के चेयरमैन पवन खेड़ा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी पर अब तक का सबसे बड़ा और सीधा हमला बोला। खेड़ा ने कहा कि — “बिहार को लूटने का खेल दिल्ली में बैठकर खेला गया। मोदी-अडानी गठबंधन ने बिहार की धरती, उसके संसाधन और उसके भविष्य — सब कुछ बेच दिया!” खेड़ा ने हैरान कर देने वाला खुलासा किया कि अडानी को मात्र एक रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से 1,050 एकड़ जमीन सौंप दी गई। यह कोई मामूली गलती नहीं, बल्कि सत्ता और पूंजी की साजिश का संगठित अपराध है — एक “कॉर्पोरेट कूप”, जिसने लोकतंत्र की आत्मा को तार-तार कर दिया।

खेड़ा का हमला यहीं नहीं रुका। उन्होंने कहा — “मोदी सरकार में 10 साल तक मंत्री रहे आर.के. सिंह अब खुद कह रहे हैं कि बिहार में 62,000 करोड़ रुपये का बिजली घोटाला हुआ है!” यह बयान सिर्फ एक पूर्व मंत्री की टिप्पणी नहीं, बल्कि मोदी सरकार की पोल खोलने वाली स्वीकारोक्ति है। खेड़ा ने कहा — “यह घोटाला सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं है, यह ‘कॉर्पोरेट डकैती’ है। बिहार की जनता से टैक्स लेकर अडानी की तिजोरी में भरा जा रहा है। मोदी सरकार ने इस देश को दो हिस्सों में बांट दिया है — एक तरफ अडानी-अंबानी, दूसरी तरफ भूखा, बेरोजगार भारत।”

खेड़ा ने जोड़ा — “बिजली प्रोजेक्ट से जुड़े इस घोटाले से अडानी को हर साल 25,000 करोड़ रुपये की कमाई होगी। ये पैसा बिहार के किसानों की जेब से निकलेगा, मजदूरों की थाली से निकलेगा और गरीब की रोशनी से निकलेगा। लेकिन मोदी सरकार ने मीडिया पर तालाबंदी लगा दी है — कोई सवाल नहीं पूछेगा, कोई खबर नहीं छापेगा। जो बोलेगा, उसे देशद्रोही कहा जाएगा। यही है मोदी राज की असलियत।”

अब बम फटा “शक्ति नीति” पर। खेड़ा ने कहा कि मोदी सरकार ने केंद्र की ऊर्जा नीति (‘शक्ति नीति’) को ही विकृत कर दिया, ताकि अडानी को प्रोजेक्ट दिलाया जा सके।

उन्होंने खुलासा किया — “यह नीति पारदर्शिता और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बनी थी, लेकिन मोदी ने प्रधानमंत्री कार्यालय से ही उसमें बदलाव करा दिया। यह सीधा प्रधानमंत्री स्तर का हस्तक्षेप था — सत्ता का दुरुपयोग और नीतियों की हत्या!”

खेड़ा ने कहा — “जब यूपीए सरकार थी, तब जयराम रमेश जी ने इस नीति में ऐसे प्रावधान जोड़े थे जिससे कोई भी प्रोजेक्ट बिना पर्यावरणीय समीक्षा के मंज़ूर न हो सके। लेकिन मोदी ने सत्ता में आते ही इस नीति को अपने उद्योगपति दोस्तों के लिए ‘लूट का लाइसेंस’ बना दिया। पीरपैंती प्रोजेक्ट इसका सबसे बड़ा उदाहरण है — इंजीनियरों और विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि यह पर्यावरण को तबाह कर देगा, लेकिन आदेश ऊपर से आया — ‘अडानी को दो!’ और सारा सिस्टम झुक गया।”

खेड़ा ने प्रेस वार्ता में एक-एक कर मोदी सरकार से सवाल पूछे —

  1. क्या भारत सरकार ने फिजिबिलिटी रिपोर्ट में हेराफेरी कर सोलर प्रोजेक्ट को थर्मल प्रोजेक्ट में बदलवा दिया?
  1. क्या इस बदलाव से बिहार के Renewable Purchase Obligation (RPO) पर सीधा असर नहीं पड़ा?
  1. बिना कोल लिंकेज के बावजूद TBCB (Tariff Based Competitive Bidding) के तहत थर्मल प्रोजेक्ट जारी करना क्या शक्ति नीति की धज्जियाँ उड़ाना नहीं है?
  1. टेंडर को अंतिम रूप दिए बिना जारी कर देना, क्या खुलेआम नीति का बलात्कार नहीं है?
  1. जब अडानी को ही प्रोजेक्ट देना था, तो फिर 21,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटन क्यों किया गया? क्या यह “पब्लिक मनी फॉर प्राइवेट माफिया” नहीं है?
  1. जिन्होंने तकनीकी खामियों पर याचिका दी, उन इंजीनियरों पर अर्जी वापस लेने का दबाव किसने बनाया?
  1. 55 MGD गंगा जल की स्वीकृति के बिना टेंडर जारी कैसे हुआ?
  1. जब टेंडर जारी ही नहीं हुआ था तो बिहार सरकार ने 58 करोड़ रुपये पहले ही क्यों खर्च किए?
  1. इस प्रोजेक्ट का Environmental Impact Assessment (EIA) और Cost Benefit Analysis क्यों नहीं किया गया — क्या इसलिए कि सारा खेल बेनकाब हो जाता?

खेड़ा ने कहा — “अब यह स्पष्ट हो गया है कि मोदी सरकार में नीति नहीं, नीयत चलती है। और नीयत है — जनता के पैसे को अडानी की जेब में डालना। यह ‘डबल इंजन’ नहीं, ‘डबल घोटाला’ है — दिल्ली में योजना बनती है, पटना में हस्ताक्षर होते हैं, और मुंबई में अडानी की गिनती होती है।”

उन्होंने कहा कि मोदी-अडानी मॉडल लोकतंत्र की सबसे घातक बीमारी है। खेड़ा बोले — “यह मॉडल न नीति बचाता है, न न्याय। यह मॉडल मीडिया को खरीदता है, अफसरों को झुकाता है, और जनता को अंधेरे में रखता है। प्रधानमंत्री मोदी अब देश के नहीं, कॉर्पोरेट्स के एजेंट बन चुके हैं। जो बिहार की ज़मीन एक रुपये में बेच सकता है, वो कल हिमालय भी गिरवी रख देगा।”

 पवन खेड़ा ने जनता से तीखे शब्दों में कहा —”अब चुप रहना गुनाह है। बिहार की धरती आज पुकार रही है — जो मौन रहेगा, वो इस लूट में शामिल माना जाएगा। यह अडानी को ज़मीन देने का मामला नहीं, यह देश की आत्मा को नीलाम करने का मामला है। मोदी जी, बिहार बिकाऊ नहीं है!”

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