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बीजेपी बचाव में उतरे शेखर गुप्ता, दलाली में फिर गंवाई साख

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नई दिल्ली/ तिरुवनंतपुरम 7 नवंबर 2025

केरल कांग्रेस ने पूछा, “ब्राजील तक भागे, पर लोकतंत्र का सच नहीं देख पाए?

पत्रकारिता का असली चेहरा तब सामने आता है जब सत्ता पर सवाल उठाने का वक्त होता है, लेकिन भारत में आज का दुर्भाग्य यह है कि जो पत्रकार कभी सत्ता से सवाल पूछने का साहस रखते थे, अब वही सत्ता के प्रवक्ता बन चुके हैं। इन्हीं पत्रकारों में एक नाम है शेखर गुप्ता, जिन्हें कभी भारतीय मीडिया में एक गंभीर और संतुलित आवाज माना जाता था। हालांकि, अब वह “द प्रिंट” के नाम पर प्रचार का मंच बन चुके हैं। हाल ही में, गुप्ता ने “The Print Exclusive in collaboration with Aos Fatos (Brazilian media company)” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट में उन्होंने यह दावा किया कि ब्राजील की मॉडल लारिसा नेरी का नाम भारत की वोटर लिस्ट में फर्जी तरीके से शामिल नहीं किया गया था। बल्कि, उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि यह पूरा विवाद ही एक “कॉमेडी” है, और इस पूरे मामले को गंभीरता से लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस तरह, उन्होंने एक गंभीर चुनावी मुद्दे को हल्के में लेने का प्रयास किया और सत्ता पक्ष को क्लीन चिट देने की कोशिश की, जिसने उनकी पत्रकारिता की नैतिकता पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए।

शेखर गुप्ता की रिपोर्ट में मॉडल लारिसा नेरी के हवाले से कहा गया, “The Brazilian model has been traced. She has spoken. ‘All of this is a comedy. I have never visited India,’ said Larissa Nery.” यानी, लारिसा नेरी ने कथित रूप से कहा कि वह कभी भारत नहीं आईं, इसलिए उनके वोटर लिस्ट में नाम होने का पूरा मामला झूठा और हास्यास्पद है। लेकिन इस रिपोर्ट ने असली और महत्वपूर्ण सवाल को अनदेखा कर दिया — अगर वह भारत नहीं आईं, तो उनके नाम पर भारत की वोटर लिस्ट में “Sweety” और “Saraswati” जैसे नाम कैसे दर्ज हुए? और सबसे बड़ा सवाल यह था कि आखिर वह कौन व्यक्ति था जिसने उनके नाम से वोट डाला? ये वो निर्णायक सवाल थे जो गुप्ता की रिपोर्ट से पूरी तरह नदारद थे, और इसी बात ने जनता और विपक्षी दलों को बुरी तरह भड़का दिया। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि गुप्ता जानबूझकर एक आपराधिक कृत्य को सिर्फ एक कॉमेडी बताकर सत्ता के बचाव में उतर आए हैं।

केरल कांग्रेस का व्यंग्यात्मक हमला: “ब्राजील तक गए, पर लोकतंत्र की गंध भी नहीं सूंघी!”

शेखर गुप्ता की इस तथाकथित “जांच रिपोर्ट” के सामने आते ही, केरल कांग्रेस ने इसकी धज्जियां उड़ा दीं। उन्होंने सोशल मीडिया पर व्यंग्य और तीखे कटाक्ष से भरा एक बयान जारी किया जिसमें उन्होंने लिखा — “Dear Shekhar Gupta Ji, thanks for this courageous journalism and tracing Ms. Larissa all the way to Brazil and reporting that she never visited India. Great work.” कांग्रेस के इस तंज में वह कड़वी सच्चाई छिपी थी जिसे शेखर गुप्ता जानबूझकर अनदेखा कर रहे थे। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए लिखा, “The real question is how did she enter India’s voters list with names like Sweety and Saraswati? Was it Modiji or Shah who voted on her behalf?” यह व्यंग्य केवल एक पत्रकार पर नहीं, बल्कि उस पूरी “गोदी मीडिया संस्कृति” पर था, जो सत्ता की हर गलती को ढकने और हर भ्रष्टाचार को सही ठहराने में लगी रहती है। केरल कांग्रेस ने तंज कसते हुए कहा कि शेखर गुप्ता ने लारिसा को तो ब्राजील तक जाकर खोज लिया, लेकिन अपने ही देश में खुलेआम हो रही लोकतंत्र की हत्या को नहीं देख पाए और चुनावी धांधली की गंध भी नहीं सूंघ पाए।

इस मामले में कांग्रेस ने केवल तंज कसने तक ही बात सीमित नहीं रखी, बल्कि कांग्रेस ने अपनी प्रतिक्रिया में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद की एक गंभीर घटना का भी जिक्र किया। कांग्रेस ने एक वीडियो साझा किया, जिसमें 13 मई 2024 को हुए लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के एक ग्राम प्रधान के नाबालिग बेटे को एक ही बूथ पर आठ बार वोट डालते हुए साफ-साफ देखा जा सकता है। यह फर्जीवाड़ा बिना किसी वैध वोटर आईडी कार्ड के किया गया था और इसका वीडियो पूरे सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। जिसने चुनाव आयोग और लोकतंत्र की विश्वसनीयता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया था। इस वीडियो के सामने आने के बाद विपक्ष ने सवाल उठाया कि जब एक बूथ पर इतनी खुली फर्जीवाड़ा और वोट चोरी हो सकती है, तो फिर पूरे राज्य और देश में क्या-क्या नहीं हो रहा होगा? यह विडंबना थी कि फर्रुखाबाद में बीजेपी के उम्मीदवार ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को केवल 2,678 वोटों के मामूली अंतर से हराया था। कांग्रेस ने इसे “वोट चोरी का संगठित तंत्र” बताया और आरोप लगाया कि बीजेपी ने लोकतंत्र को अपनी राजनीतिक मशीनरी में बदल दिया है। लेकिन ऐसे निर्णायक सवालों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए ही शेखर गुप्ता जैसे पत्रकार सत्ता की सेवा में तुरंत उतर आते हैं और फर्जीवाड़े को कॉमेडी करार देते हैं।

 “सोने का नाटक करने वाले को नहीं जगाया जा सकता”: पत्रकारिता की नैतिक मौत

केरल कांग्रेस ने अपने बयान के माध्यम से शेखर गुप्ता को एक खुला और सीधा संदेश देते हुए लिखा — “You can wake a person who is sleeping. You cannot wake a person who is pretending to sleep.” यानि, यह एक ऐसा वाक्य था जिसने शेखर गुप्ता की तथाकथित “पत्रकारिता” की आत्मा को पूरी तरह नंगा कर दिया। कांग्रेस ने कहा कि यह बेहद शर्मनाक है कि एक वरिष्ठ पत्रकार, जिसे जनता ने हमेशा सच्चाई की आवाज माना, आज सत्ता के संरक्षण में झूठ को सफाई देने और फर्जीवाड़े को छिपाने का काम कर रहा है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर शेखर गुप्ता वाकई सच्चाई की तलाश में थे, तो उन्हें ब्राजील जाने की कोई जरूरत नहीं थी — उन्हें भारत के चुनावी बूथों पर आना चाहिए था, जहाँ फर्जी वोटिंग, डुप्लीकेट एंट्री और डेटा मैनिपुलेशन खुलेआम हो रहा है। लेकिन ऐसा करने की बजाय उन्होंने एक विदेशी मॉडल के इंटरव्यू का सहारा लिया ताकि एक सुविधाजनक “बीजेपी क्लीन चिट” की कहानी जनता के सामने बिना किसी सवाल के परोसी जा सके और सत्ता के पापों पर पर्दा डाला जा सके।

यह पूरा प्रकरण भारतीय पत्रकारिता की उस गहराती गिरावट का प्रतीक बन गया है, जहाँ अनुभवी पत्रकार, जिन्होंने कभी सरकारों से डरने की बजाय सवाल पूछे थे, अब उन्हीं सरकारों के लिए एक ढाल बनकर खड़े हो गए हैं। यह वह दौर है जहाँ पत्रकार अब “जनता के प्रहरी” नहीं, बल्कि “सत्ता के प्रवक्ता” बन चुके हैं। केरल कांग्रेस ने सही कहा कि यह मामला किसी एक मॉडल या एक रिपोर्ट का नहीं, बल्कि उस पूरी मानसिकता का है जो लोकतंत्र को कमज़ोर करने में लगी है। आज जब फर्जी वोटिंग और चुनावी धांधली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं, तब पत्रकारों को चाहिए कि वे जनता के सवालों को आवाज़ दें — लेकिन इसके उलट, कुछ पत्रकार अब जनता के खिलाफ खड़े दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस का यह हमला सिर्फ व्यंग्य नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी थी। उन्होंने साफ कहा कि “जब लोकतंत्र खतरे में है, तब सत्ता की चुप्पी से भी बड़ा अपराध पत्रकार की चुप्पी है।” पत्रकारिता का धर्म है — सत्ता से सवाल पूछना, न कि सत्ता का बचाव करना। लेकिन जब पत्रकार खुद “प्रचारक” बन जाए, तब सच्चाई मर जाती है और लोकतंत्र एक “कॉमेडी” बन जाता है — ठीक वैसे ही जैसे लारिसा नेरी ने कहा था, “All of this is a comedy.” निष्कर्ष में, यह घटना सिर्फ शेखर गुप्ता की “गिरती साख” की कहानी नहीं, बल्कि भारत की मीडिया की उस नैतिक मौत की दास्तान है, जो सत्ता के पैरों में सिर झुकाकर खुद को “न्यूट्रल” कहती है। ब्राजील तक जाकर किसी विदेशी मॉडल को ढूंढ निकालना पत्रकारिता नहीं,  सत्ता के पापों पर पर्दा डालने का खेल है।

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