लखनऊ, 2 नवंबर 2025
“जिसने लखनऊ का खाना नहीं खाया, उसने ज़िंदगी का असली स्वाद नहीं चखा” — ये कहावत अब सिर्फ किसी शौकीन का बयान नहीं रही, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सच्चाई बन गई है। यूनेस्को ने लखनऊ के अद्वितीय और ऐतिहासिक खानपान को अपनी प्रतिष्ठित “क्रिएटिव सिटीज़ ऑफ गैस्ट्रोनॉमी” सूची में शामिल कर लिया है। इस उपलब्धि के साथ लखनऊ ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे भारत का मान बढ़ा दिया है।
लखनऊ का खानपान सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि एक जीवित इतिहास है। यहां के व्यंजनों में नवाबी दौर की नज़ाकत, तहज़ीब और रसोई की रूह समाई है। गलियों से आती कबाब की खुशबू, दम पर पकी बिरयानी की लहराती महक, रुमाली रोटी की कोमलता और शीरमल की मिठास — ये सब मिलकर लखनऊ को एक ऐसे शहर में बदल देते हैं जहां भोजन कला का रूप ले लेता है। यूनेस्को ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि “लखनऊ की खाद्य परंपरा सिर्फ स्वाद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, इतिहास और सह-अस्तित्व की कहानी कहती है।”
गलावटी कबाब, जो एक नवाबी दर्द की दास्तान से जन्मा, आज विश्वभर में मशहूर है। कहा जाता है कि नवाब आसफ-उद-दौला के दांत गिर चुके थे, लेकिन स्वाद का शौक बाकी था। तब हाजी मुराद अली ने ऐसा कबाब बनाया जो ज़ुबान पर रखते ही घुल जाए — “गलावटी कबाब।” वही गलावटी आज भी लखनऊ की पहचान है। इसी तरह, अवधी बिरयानी, जिसे धीमी आँच पर दम में पकाया जाता है, अपनी खुशबू से ही दिल जीत लेती है। बिरयानी का हर दाना उस ‘नवाबी सलीके’ की याद दिलाता है जो लखनऊ की रग-रग में बसा है।
टुंडे कबाबी, रहीम की निहारी, रॉयल कैफ़े का बास्केट चाट, मक्खन मलाई, कुल्फी फ़लूदा, और टेढ़ी पुलिया के स्ट्रीट स्नैक्स — इन सबने लखनऊ को एक ऐसे खानपान केंद्र के रूप में स्थापित किया है जो परंपरा और आधुनिकता दोनों को साथ लेकर चलता है। यहां का हर व्यंजन एक कहानी कहता है — किसी नवाब के शौक की, किसी रसोइए की लगन की या किसी पीढ़ी की मेहनत की।
यूनेस्को ने इस चयन के लिए जिन मानकों पर लखनऊ को परखा, उनमें सबसे महत्वपूर्ण था — “संस्कृति और खानपान का सामंजस्य।” शहर ने सदियों से हिंदू-मुस्लिम तहज़ीब को अपनी रसोई में एकजुट किया है। बिरयानी के साथ पूड़ी-हलवा की थाली, कबाब के साथ सेवइयों की मिठास और ईद-दिवाली पर साझा भोजन की परंपरा — यह सब लखनऊ की “गंगा-जमुनी संस्कृति” को रसोई की भाषा में व्यक्त करता है।
लखनऊ के खानपान को यूनेस्को की सूची में शामिल किए जाने के बाद शहर में जश्न का माहौल है। चौक, अमीनाबाद, हजरतगंज और गोमती नगर की गलियां जगमगा उठीं। होटल और रेस्टोरेंट मालिकों ने मिठाई बांटकर इस गौरव का स्वागत किया। शेफ्स और फूड एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब लखनऊ दुनिया के पाक पर्यटन मानचित्र पर स्थायी रूप से दर्ज हो गया है।
प्रसिद्ध शेफ कुन्हाल कपूर ने ट्वीट कर लिखा, “लखनऊ का खाना सिर्फ पेट नहीं, आत्मा को भी तृप्त करता है। यह मान्यता पूरे भारत के लिए गर्व का क्षण है।” वहीं राज्य सरकार ने घोषणा की है कि “लखनऊ फूड फेस्टिवल” को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाएगा ताकि पर्यटकों को इस नवाबी स्वाद की झलक मिल सके।
लखनऊ के इस सम्मान ने साबित कर दिया है कि ‘नवाबों का शहर’ सिर्फ तहज़ीब या अदब से नहीं, बल्कि अपने स्वाद से भी पूरी दुनिया को जीत सकता है। यहां के व्यंजनों में जो मोहब्बत और मिलावटहीनता है, वही इसकी असली ताकत है।
आज जब यूनेस्को ने लखनऊ के खानपान को अपनी सूची में जगह दी है, तो यह केवल एक खाद्य उपलब्धि नहीं, बल्कि उस ‘नवाबी आत्मा’ की अंतरराष्ट्रीय पहचान है जो हर निवाले में मुस्कराती है — “पहले तहज़ीब, फिर तड़का!”




