कीव 1 नवंबर 2025
पूर्वी यूरोप का युद्ध अब एक नए और बेहद खतरनाक चरण में प्रवेश कर चुका है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने दुनिया को चेतावनी देते हुए कहा है कि रूस ने करीब 1.70 लाख सैनिक डोनेत्स्क क्षेत्र में तैनात कर दिए हैं। यह अब तक की सबसे बड़ी सैनिक जुटान मानी जा रही है। ज़ेलेंस्की ने देर रात अपने वीडियो संदेश में कहा कि “डोनेत्स्क की स्थिति बेहद कठिन और जटिल है। रूस ने इस इलाके को युद्ध का केंद्र बना दिया है और हर दिशा से हमारे सैनिकों पर हमला तेज़ कर दिया है। रूसी सेना की कुछ यूनिट्स शहर की सीमाओं तक पहुँच चुकी हैं, लेकिन हमारी सेनाएं डटकर जवाब दे रही हैं। हम किसी भी हाल में अपने क्षेत्र की रक्षा करेंगे।”
यूक्रेनी खुफिया सूत्रों के मुताबिक, रूस का मुख्य लक्ष्य पोक्रोव्स्क (Pokrovsk) नामक शहर है — जो डोनेत्स्क में एक सामरिक चौराहा माना जाता है। इस क्षेत्र पर नियंत्रण का मतलब होगा कि रूस पूर्वी यूक्रेन के बड़े हिस्से को अपने कब्ज़े में ले सकेगा। इस इलाके में रूसी सेना ने भारी टैंकों, मिसाइल यूनिट्स, तोपखाने और विशेष बलों की तैनाती की है। उपग्रह चित्रों में साफ देखा जा सकता है कि रूसी काफिले डोनेत्स्क के दक्षिण और पश्चिम दोनों ओर से घेराबंदी की रणनीति अपना रहे हैं। इस बीच, यूक्रेनी वायुसेना ने रूस के कई गोला-बारूद डिपो और सप्लाई लाइनों पर जवाबी हमले किए हैं।
ज़ेलेंस्की ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि यूक्रेन अब “रक्षात्मक” नहीं बल्कि “रणनीतिक जवाबी कार्रवाई” के चरण में प्रवेश कर चुका है। उन्होंने पुष्टि की कि यूक्रेनी सेना ने रूस के अंदर कई लॉन्ग-रेंज स्ट्राइक्स की हैं, जिनका निशाना रूस के सैन्य अड्डे, तेल डिपो और लॉजिस्टिक नेटवर्क रहे हैं। उनका कहना था कि “रूस की युद्ध मशीन को उसके घर के अंदर कमजोर करना ही अब असली जवाब है।” इन हमलों का असर यह हुआ है कि रूस को अब अपनी आपूर्ति श्रृंखला बनाए रखने के लिए अतिरिक्त सैनिक और संसाधन भेजने पड़ रहे हैं।
मानवीय मोर्चे पर हालात और भी भयावह हैं। डोनेत्स्क और उसके आसपास के इलाकों से हजारों नागरिक विस्थापित हो चुके हैं। कई कस्बों में पानी, बिजली और दवाइयों की भारी कमी है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि जैसे-जैसे सर्दियां करीब आएंगी, नागरिकों के लिए हालात और बिगड़ सकते हैं। बर्फ़बारी के बीच बिना बिजली के रहना, अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी और राहत सामग्री की अनुपलब्धता लोगों के जीवन को संकट में डाल सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अगर युद्ध इसी गति से आगे बढ़ा, तो आने वाले दो महीनों में मानवीय आपदा की स्थिति बन सकती है।
सैन्य विश्लेषकों का कहना है कि रूस की यह सैनिक तैनाती केवल एक “सीमित ऑपरेशन” नहीं बल्कि पूर्ण सैन्य अभियान (Full-scale offensive) का संकेत है। यह रूस की उस रणनीति का हिस्सा है जिसमें वह यूक्रेन के पूरे पूर्वी क्षेत्र — डोनेत्स्क, लुहान्स्क और ज़ापोरिज़्ज़िया — पर नियंत्रण हासिल करना चाहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि रूस पोक्रोव्स्क पर कब्ज़ा कर लेता है, तो वह पूरे डोनेत्स्क पर अपनी पकड़ मजबूत कर सकता है, जिससे यूक्रेन की पूर्वी रक्षा पंक्ति पूरी तरह कमजोर पड़ जाएगी। वहीं, यूक्रेन के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसके सैनिक थक चुके हैं, संसाधन सीमित हैं और पश्चिमी देशों से मिलने वाली सहायता भी अब धीमी हो गई है।
दूसरी ओर, पश्चिमी देशों की निगाहें भी इस मोर्चे पर टिकी हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने ज़ेलेंस्की के बयान को “चिंताजनक” बताया है और यूक्रेन को अतिरिक्त हथियार और एयर डिफेंस सिस्टम भेजने की बात कही है। नाटो (NATO) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि “यह युद्ध अब सिर्फ दो देशों के बीच नहीं रहा, बल्कि यह पूरी यूरोपीय सुरक्षा व्यवस्था की परीक्षा बन गया है।” रूस ने इस बीच चेतावनी दी है कि यदि पश्चिम ने और हस्तक्षेप किया, तो वह “कड़े कदम” उठाएगा। रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि यूक्रेन में उसकी कार्रवाई “राष्ट्रीय सुरक्षा” के लिए आवश्यक है।
इस पूरे घटनाक्रम के वैश्विक प्रभाव भी गहरे हैं। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने ऊर्जा संकट को फिर बढ़ा दिया है। यूरोप में गैस की कीमतों में उछाल आया है, जबकि खाद्यान्न आपूर्ति पर असर से एशियाई देशों में महंगाई बढ़ने लगी है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञों का कहना है कि यह संघर्ष अब वैश्विक राजनीति, ऊर्जा डिप्लोमेसी और रक्षा साझेदारी की दिशा तय करेगा। भारत जैसे देशों के लिए भी यह स्थिति एक रणनीतिक चुनौती है, क्योंकि रूस और पश्चिम दोनों के साथ उसके संबंधों का संतुलन बनाना कठिन होता जा रहा है।
अंततः, डोनेत्स्क में रूस की 1.70 लाख सैनिकों की तैनाती ने इस युद्ध को एक निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा किया है। ज़ेलेंस्की का कहना है कि यूक्रेन पीछे नहीं हटेगा, लेकिन असलियत यह है कि हर गुजरते दिन के साथ इस युद्ध की कीमत — चाहे वह मानव जीवन हो या आर्थिक बोझ — बढ़ती जा रही है। इस संघर्ष का परिणाम चाहे जो भी हो, यह तय है कि डोनेत्स्क अब आधुनिक इतिहास का वह रणक्षेत्र बन गया है जहां न केवल दो सेनाएँ लड़ रही हैं, बल्कि दुनिया की दो विचारधाराएँ भी आमने-सामने हैं — एक स्वतंत्रता की और दूसरी प्रभुत्व की।




