जम्मू और कश्मीर विधानसभा में शनिवार, 15 मार्च 2025 को प्रस्तुत किए गए आरक्षित वर्गों से संबंधित आधिकारिक आंकड़ों ने एक महत्वपूर्ण और बहुचर्चित बहस को फिर से जन्म दे दिया है। इन आंकड़ों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि केंद्र शासित प्रदेश (UT) की वर्तमान आरक्षण नीति क्षेत्रीय संतुलन के मानकों पर खरी नहीं उतर रही है। आंकड़े बताते हैं कि जम्मू क्षेत्र को आरक्षित श्रेणियों के तहत मिले लाभ में भारी बढ़त प्राप्त है, जबकि कश्मीर घाटी के लाभार्थियों की संख्या बेहद कम रही है — यह स्थिति क्षेत्रीय असंतुलन और सामाजिक न्याय की अवधारणा पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
आंकड़ों के अनुसार, अनुसूचित जाति (SC) श्रेणी के तहत लाभ प्राप्त करने वाले सभी 67,112 व्यक्ति जम्मू क्षेत्र से हैं, जबकि कश्मीर से इस श्रेणी में एक भी लाभार्थी नहीं है। इसी प्रकार, अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणी में जम्मू से 4,59,493 (85.3%) लोगों को लाभ मिला, जबकि कश्मीर क्षेत्र से मात्र 79,813 (14.7%) लोगों को लाभ मिला। यह विषमता बताती है कि आरक्षण व्यवस्था एक समान वितरण नहीं कर पा रही है, विशेषकर जब दोनों क्षेत्रों की जनसंख्या में भी बड़ा अंतर नहीं है।
अर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के तहत भी यही रुझान देखने को मिला, जिसमें जम्मू से 27,420 (92.3%) लोगों को लाभ मिला, जबकि कश्मीर से केवल 2,273 (7.7%) लोगों को। यही नहीं, वास्तविक नियंत्रण रेखा (Actual Line of Control) के अंतर्गत जम्मू से 268 (94.3%) लोगों को लाभ प्राप्त हुआ, जबकि कश्मीर से केवल 16 (5.7%) लाभार्थी सामने आए। अंतरराष्ट्रीय सीमा (International Border) श्रेणी के तहत भी जम्मू क्षेत्र के 551 लोगों को लाभ मिला, जबकि कश्मीर से कोई भी लाभार्थी सामने नहीं आया।
यह आंकड़े उस प्रश्न के उत्तर में सामने आए जिसे पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (JKPC) के अध्यक्ष और विधायक सज्जाद लोन ने विधानसभा में उठाया था। उन्होंने यह जानने की मांग की थी कि अप्रैल 2023 के बाद से आरक्षित श्रेणियों के तहत कितने लोगों को किस क्षेत्र से लाभ मिला है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह डेटा न केवल सामाजिक असमानता की ओर इशारा करता है, बल्कि आरक्षण नीति के कार्यान्वयन में भी गहरे असंतुलन को दर्शाता है। जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार, कश्मीर की आबादी जम्मू से अधिक — लगभग 55% बनाम 45% — है, ऐसे में कश्मीर क्षेत्र के लोगों को आरक्षण लाभ से इतना वंचित रह जाना नीतिगत समीक्षा की मांग करता है।
यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने हाल के वर्षों में सामाजिक और आर्थिक सुधारों के तहत अनेक योजनाएं लागू की हैं, लेकिन इस डेटा के माध्यम से स्पष्ट हो गया है कि इन योजनाओं की पहुँच और उनका लाभ क्षेत्र विशेष तक सीमित रह गया है। यह स्थिति दीर्घकालिक असंतोष को जन्म दे सकती है और प्रशासनिक निष्पक्षता की साख पर असर डाल सकती है।
15 मार्च 2025 को विधानसभा में प्रस्तुत यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर की आरक्षण व्यवस्था में क्षेत्रीय विषमता को पूरी तरह उजागर करती है। सामाजिक न्याय, समावेशिता और समतुल्य अवसर प्रदान करने की संवैधानिक भावना की रक्षा के लिए अब आवश्यकता है कि नीति-निर्माता इस पर तत्काल और गंभीर पुनर्विचार करें। जम्मू और कश्मीर, दोनों क्षेत्रों के बीच संतुलन बनाए रखना ही स्थायी शांति, विकास और सामाजिक समरसता की कुंजी है।