दिल्ली और समूचे उत्तर भारत की हवा में इस समय ज़हर घुल चुका है, और स्थिति चिंताजनक रूप से भयावह है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 450 के पार पहुँच चुका है—यह स्तर “Severe” (गंभीर) श्रेणी का है, जहाँ हर सांस मानव शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है और फेफड़ों को सीधे तौर पर जला रही है। विडंबना यह है कि जब आम जनता सांस के लिए जूझ रही है, तब देश की सत्ता के गलियारों में, विशेष रूप से प्रधानमंत्री आवास (PMO) में, उच्च तकनीक वाले एयर प्यूरीफायर की ठंडी हवा के फिल्टर चल रहे हैं। सार्वजनिक रूप से आई जानकारी और एक तस्वीर के मुताबिक, प्रधानमंत्री आवास में Philips AC1217 Air Purifier का उपयोग किया जा रहा है, जिसकी कीमत लगभग ₹14,000 प्रति यूनिट है। यदि एक कमरे में इसका स्पष्ट प्रमाण है, तो यह सवाल उठता है कि पूरे आवास और संबंधित कार्यालयों में दर्जनों या सैकड़ों की संख्या में ऐसे एयर प्यूरीफायर लगे होंगे। यह कठोर वास्तविकता उस दोहरे चेहरे को उजागर करती है जहाँ जनता हांफ रही है, और सत्ता अपने लिए विशेष रूप से हवा को शुद्ध बना रही है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से यह प्रश्न खड़ा करती है कि क्या भारत में अब स्वच्छ हवा का मूलभूत अधिकार केवल VIPs की सुविधा बनकर रह गया है?
करोड़ों का खर्च, बिगड़ते परिणाम: ‘स्वच्छ भारत’ का नारा और वास्तविकता का विरोधाभास
यह विरोधाभास तब और भी तीखा हो जाता है जब हम प्रदूषण नियंत्रण पर बीजेपी सरकार द्वारा पिछले दस वर्षों में किए गए करोड़ों रुपये के खर्च पर नज़र डालते हैं। सरकार ने “स्मॉग टॉवर”, “ग्रीन वॉल”, और “क्लीन एयर एक्शन प्लान” जैसे कई महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स पर बड़ी धनराशि खर्च की, लेकिन इसका परिणाम यह रहा कि दिल्ली का AQI हर साल और बिगड़ता गया। इस गंभीर प्रदूषण के प्रत्यक्ष परिणाम सामने हैं: फेफड़ों के कैंसर, अस्थमा और हृदय रोग के मामलों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हो रही है, और हर सर्दी में बढ़ता स्मॉग न केवल स्कूलों में आउटडोर गतिविधियों को रोक देता है, बल्कि अस्पतालों की OPD को भी गंभीर मरीजों से भर देता है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यही सत्ताधारी नेता एक ओर प्रदूषण पर नियंत्रण की ज़िम्मेदारी राज्यों पर डालकर पल्ला झाड़ते हैं, और दूसरी ओर जनता को “धार्मिक भावनाओं” के नाम पर जितने चाहे पटाखे फोड़ने के लिए भ्रमित करते हैं—जबकि वे खुद अपने वातानुकूलित और एयर प्यूरीफायर युक्त कमरों में बैठकर मीटिंग करते हैं। यह दोहरी नैतिकता देश की राजनीति की असली तस्वीर है, जहाँ “स्वच्छ भारत” का नारा जनता के लिए एक ब्रांडिंग टूल है, और “स्वच्छ हवा” का अधिकार केवल नेताओं और सत्ताधीशों के लिए आरक्षित एक सुविधा है।
AQI 450+ की भयावहता और संवैधानिक सवाल: क्या सांस लेना भी VIP सुविधा है?
दिल्ली-NCR में AQI 450+ का मतलब है कि हवा में पार्टिकुलेट मैटर (PM 2.5 और PM 10) की मात्रा बेहद खतरनाक और जानलेवा स्तर पर पहुँच चुकी है। इस जहरीली हवा में बच्चे, बुजुर्ग और अस्थमा रोगी गंभीर खतरे में हैं, और विशेषज्ञों ने बाहर निकलने पर पूर्ण प्रतिबंध की सलाह दी है। इस संकट के बीच, PMO में एयर प्यूरीफायर का चलन संवैधानिक और नैतिक सवाल खड़े करता है। भारत का संविधान हर नागरिक को जीवन का अधिकार देता है, और स्वच्छ हवा उस अधिकार का अविभाज्य हिस्सा है। जब सरकार अपने सबसे उच्च कार्यालयों के लिए ₹14,000 खर्च करके शुद्ध हवा सुनिश्चित कर सकती है, तो वह आम आदमी के लिए “क्लीन एयर” सुनिश्चित करने में क्यों विफल रही है? यह केवल प्रशासनिक विफलता नहीं है, नैतिक विफलता भी है। यह घटना देश की जनता से सीधे पूछती है कि क्या आम आदमी के लिए “क्लीन एयर” का अधिकार सिर्फ एक चुनावी जुमला बनकर रह गया है? और क्या अब भारत में सांस लेना भी एक “VIP सुविधा” बन चुका है? दिल्ली दम तोड़ रही है, और PMO में चल रहा है Philips Purifier! यह दृश्य प्रमाण है कि स्वच्छ भारत का ब्रांडिंग सफल हुआ है, लेकिन स्वच्छ हवा का वादा सत्ता के गलियारों तक सिमट गया है।