एक प्लेट चिकन बिरयानी ने ली रेस्टोरेंट मालिक की जान
झारखंड की राजधानी रांची में एक अत्यंत दर्दनाक और समाज को झकझोर देने वाली घटना सामने आई है, जिसने देश में धार्मिक असहिष्णुता और भोजन को लेकर व्याप्त हिंसक विचारधारा की भयावहता को उजागर किया है। यह त्रासदी एक साधारण-सी गलती— शाकाहारी बिरयानी की जगह मांसाहारी बिरयानी परोस दिए जाने— के कारण हुई, जिसके फलस्वरूप एक ग्राहक ने रेस्टोरेंट मालिक को गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना न केवल एक निर्दोष जान के नुकसान का कारण बनी है, बल्कि इसने यह भी सिद्ध कर दिया है कि आज के समाज में भोजन और खान-पान से जुड़ी राजनीतिक और धार्मिक भावनाएँ किस हद तक हिंसक रूप धारण कर चुकी हैं। यह सिर्फ़ व्यक्तिगत गुस्सा नहीं था, बल्कि भोजन की राजनीति के नाम पर हो रही हिंसा का एक भयावह उदाहरण है, जो नागरिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता के लिए एक गंभीर खतरे का संकेत देता है।
‘वेज’ की जगह ‘नॉन-वेज’, और भड़की खूनी हिंसा
स्थानीय पुलिस सूत्रों और प्रत्यक्षदर्शियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना रांची के एक अपेक्षाकृत लोकप्रिय छोटे रेस्टोरेंट में शाम के समय हुई। एक ग्राहक ने रेस्टोरेंट में वेज बिरयानी का ऑर्डर दिया था, लेकिन किचन में हुई एक साधारण गलती के कारण उसे अनजाने में चिकन बिरयानी परोस दी गई। जब ग्राहक को इस गलती का पता चला, तो उसने रेस्टोरेंट मालिक के साथ जोर-जोर से बहस करनी शुरू कर दी। यह बहस जल्द ही नियंत्रण से बाहर हो गई और ग्राहक ने अपनी पिस्तौल निकालकर रेस्टोरेंट मालिक को सीधे गोली मार दी, जिसके कारण उसकी मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि यह पूरी भयावह घटना मात्र कुछ ही मिनटों में घट गई, जिससे वहां मौजूद अन्य ग्राहक और रेस्टोरेंट स्टाफ़ डर के मारे स्तब्ध रह गए। यह दिखाता है कि मामूली मतभेदों पर भी हिंसा का सहारा लेने की प्रवृत्ति किस कदर बढ़ चुकी है।
पुलिस जांच में ‘सांप्रदायिक कोण’: आरोपी फरार, नफरत की राजनीति की आशंका
रांची पुलिस ने इस जघन्य हत्याकांड का मामला दर्ज कर लिया है और आरोपी की गिरफ्तारी के लिए युद्धस्तर पर छापेमारी जारी है। हालांकि, रांची पुलिस ने अपने आधिकारिक बयान में इस बात पर जोर दिया है कि यह मामला केवल “भोजन विवाद” या क्षणिक क्रोध का परिणाम नहीं लगता है। पुलिस और जांच अधिकारियों को संदेह है कि इसमें सांप्रदायिक उत्तेजना और नफरत की राजनीति के संकेत भी मिल रहे हैं। रेस्टोरेंट के कर्मचारियों ने पुलिस को बताया है कि फरार आरोपी पहले भी रेस्टोरेंट में “वेज और नॉन-वेज” के चयन और उपभोग को लेकर अन्य ग्राहकों या स्टाफ़ के साथ उकसाने वाली और आक्रामक बहसें किया करता था। इस जानकारी से यह आशंका प्रबल हो जाती है कि यह हत्या केवल एक ग्राहक की गलती नहीं थी, बल्कि भोजन की आड़ में छिपी हुई धार्मिक श्रेष्ठता और असहिष्णु विचारधारा का हिंसक प्रकटीकरण था, जिसे पुलिस गंभीरता से ले रही है।
वैचारिक टकराव: ‘शाकाहारी राष्ट्रवाद’ बनाम ‘भोजन की आज़ादी’ पर प्रश्न
यह दर्दनाक घटना भारत के भोजन बनाम विचारधारा के बढ़ते टकराव को सामने लाती है, जो हाल के वर्षों में राजनीतिक विमर्श का एक केंद्रीय हिस्सा बन चुका है। भारत में जहां लगभग 74% आबादी मांसाहार (नॉन-वेज) का उपभोग करती है, वहीं दूसरी ओर “शाकाहारी राष्ट्रवाद” और “भोजन की पवित्रता” जैसे विचार एक आक्रामक और राजनीतिक रूप धारण करते जा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों ने इस हत्या को सिर्फ़ एक व्यक्तिगत अपराध नहीं, बल्कि देश में भोजन की स्वतंत्रता पर एक सुनियोजित हमला बताया है। एक सामाजिक विश्लेषक ने इस संदर्भ में टिप्पणी करते हुए कहा कि, “जो लोग पशुओं को मारने के खिलाफ़ अपनी आस्था रखते हैं, वे अब इंसानों को मारने में संकोच नहीं कर रहे हैं। यह विकृत सोच राजनीति और धार्मिक श्रेष्ठता के भाव से उपजती है।” यह स्थिति देश की लोकतांत्रिक और सहिष्णु मूल्यों के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
समाज के विवेक की परीक्षा: जब भोजन बन जाए धार्मिक पहचान का बंधक
रांची की यह हत्या अब केवल कानूनी जांच का विषय नहीं रही है, बल्कि यह भारतीय समाज के सामूहिक विवेक की एक कठिन परीक्षा बन गई है। यह घटना देश से यह सवाल करती है कि क्या आज भोजन की थाली भी धार्मिक पहचान और राजनीतिक झंडे की बंधक बन चुकी है? और क्या यह आवश्यक हो गया है कि एक विशिष्ट “शाकाहारी आस्था” को स्थापित करने के नाम पर हिंसा, घृणा और दूसरे व्यक्ति की जान लेने की प्रवृत्ति को सामाजिक और राजनीतिक समर्थन दिया जाए? यह मामला यह साबित करता है कि भोजन का धर्म नहीं होता, बल्कि यह मानवता और जीवन से जुड़ा एक मूलभूत सवाल है। भोजन को धार्मिक श्रेष्ठता का प्रतीक बनाकर हिंसा को सही ठहराना किसी भी सभ्य समाज के लिए अस्वीकार्य है और यह दर्शाता है कि हमारे समाज में सहिष्णुता की भावना तेज़ी से खत्म होती जा रही है।
एक प्लेट बिरयानी, एक हत्या—सभ्यता की विफलता का आईना
रांची की यह वीभत्स घटना हमें एक कड़वी सच्चाई की याद दिलाती है: जब एक छोटी-सी “किचन मिस्टेक” के कारण इंसान की जान ले ली जाए, तो यह केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि संपूर्ण सभ्यता की विफलता है। यह तथ्य चौंकाता है कि भारत की बहुसंख्यक (74%) आबादी मांसाहार का सेवन करती है, इसके बावजूद देश में ‘वेज गुंडागर्दी’ और भोजन से जुड़े धार्मिक आतंक का माहौल लगातार बढ़ता जा रहा है। रेस्टोरेंट मालिक की यह हत्या केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं है, बल्कि यह मानवता की भूख और सहिष्णुता की भावना की हत्या है। यह घटना समाज के लिए एक गहरा आईना है, जो दिखाता है कि राजनीतिक और धार्मिक विचारधाराओं को भोजन जैसे मूलभूत आवश्यकता पर थोपकर हमने एक ऐसा हिंसक वातावरण बना दिया है, जहाँ एक प्लेट बिरयानी की कीमत भी इंसान की जान से अधिक हो गई है।