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घुसपैठ पर घमासान: जिम्मेदारी किसकी, आरोप किस पर…

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नई दिल्ली 19 अक्टूबर 2025

11 साल से केंद्र में कौन? और सुरक्षा किसके जिम्मे?

देश की राजनीति में हर बार जब “घुसपैठ” का मुद्दा उभरता है, तो यह सवाल भी साथ उठता है कि आखिर इसके लिए जिम्मेदारी किसकी है। यह तथ्य निर्विवाद है कि पिछले 11 सालों से केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार है — पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में और अब भी उन्हीं के अधीन। सीमा सुरक्षा से लेकर गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद तक — सभी प्रमुख तंत्र भाजपा के नियंत्रण में हैं।

सीमाओं की रक्षा करने का दायित्व संविधान के अनुसार राज्य नहीं, बल्कि केंद्र सरकार का होता है। चाहे वह भारत-बांग्लादेश सीमा हो, भारत-नेपाल सीमा हो या भारत-म्यांमार सीमा — इन सबकी निगरानी केंद्रीय एजेंसियाँ जैसे कि BSF (सीमा सुरक्षा बल), NIA, IB और RAW करती हैं, जिनका नियंत्रण सीधे गृह मंत्रालय के अधीन होता है। ऐसे में जब केंद्र के शीर्ष नेता यह कहते हैं कि “बंगाल सरकार रेड कार्पेट बिछा रही है,” तो यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि सीमा पर गश्त करने वाली एजेंसी किसके आदेश में काम कर रही है?

 गृह मंत्रालय और BSF की जिम्मेदारी — सीमाओं पर ‘रेड कार्पेट’ नहीं, ‘रेड अलर्ट’ क्यों नहीं?

भारत की 4,096 किलोमीटर लंबी भारत-बांग्लादेश सीमा में से लगभग 2,217 किलोमीटर पश्चिम बंगाल से लगती है। यह सीमा दुनिया की सबसे संवेदनशील सीमाओं में से एक मानी जाती है, जहाँ से तस्करी, घुसपैठ, हथियार और मादक पदार्थों का अवैध व्यापार चलता है। इस सीमा की निगरानी का जिम्मा पूरी तरह BSF के पास है, जो सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के नियंत्रण में है।

गृह मंत्रालय, जो कि 2019 से अमित शाह के नेतृत्व में है, ने पिछले कुछ वर्षों में BSF के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाकर 50 किलोमीटर तक कर दिया था, ताकि किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर तुरंत कार्रवाई की जा सके। लेकिन जब खुद गृह मंत्री यह कहते हैं कि “बंगाल सरकार घुसपैठियों का स्वागत कर रही है,” तो यह बयान सवाल खड़ा करता है — क्या केंद्र की अपनी एजेंसियाँ नाकाम हैं? या फिर यह केवल चुनावी बयानबाज़ी का हिस्सा है?

अगर सीमा पार से घुसपैठ हो रही है, तो यह राज्य सरकार की नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों की जिम्मेदारी है। क्योंकि सीमा पार आने वाला व्यक्ति पहले BSF और गृह मंत्रालय की निगरानी से गुजरता है, उसके बाद ही किसी राज्य के भूभाग में प्रवेश करता है।

ममता बनर्जी पर आरोप और राजनीतिक पृष्ठभूमि

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार की चुनावी सभा से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर आरोप लगाया कि “वह बांग्लादेशी घुसपैठियों को वोट बैंक की राजनीति के लिए संरक्षण दे रही हैं।” यह बयान ऐसे समय आया है जब भाजपा आगामी बिहार और बंगाल दोनों चुनावों में “राष्ट्रीय सुरक्षा” को मुख्य मुद्दा बनाना चाहती है।

ममता बनर्जी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि भाजपा जानबूझकर बंगाल को बदनाम करने की साजिश कर रही है और बंगाल की संस्कृति, मुसलमानों और अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है। उन्होंने कहा कि बंगाल के लोग शांति और एकता चाहते हैं, लेकिन भाजपा “घुसपैठ” के नाम पर डर और नफरत की राजनीति कर रही है।

यह पहली बार नहीं है जब भाजपा ने बंगाल की तृणमूल सरकार पर घुसपैठ के आरोप लगाए हों। 2019 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2021 के विधानसभा चुनाव तक भाजपा ने इसी मुद्दे पर राज्य में प्रचार किया था, लेकिन केंद्रीय एजेंसियों द्वारा कोई ठोस कार्रवाई या रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आई।

क्या यह केंद्र की सुरक्षा नीति की विफलता है?

अगर पिछले 11 वर्षों से देश की सीमाएँ सुरक्षित नहीं हैं और लगातार घुसपैठ हो रही है, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि केंद्र सरकार की सुरक्षा नीति कितनी प्रभावी रही है। मोदी सरकार ने सीमा सुरक्षा के नाम पर ‘स्मार्ट फेंसिंग प्रोजेक्ट’, CIBMS (Comprehensive Integrated Border Management System), और ड्रोन निगरानी जैसी कई योजनाओं की घोषणा की थी।

लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बंगाल के सीमावर्ती जिलों — कूचबिहार, मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर और दक्षिण 24 परगना — में अब भी घुसपैठ और तस्करी के मामले सामने आते रहते हैं। अगर 11 साल की कड़ी निगरानी और नीति सुधारों के बावजूद स्थिति नहीं बदली, तो यह सवाल उठता है कि “रेड कार्पेट” का दोष किसे दिया जाए — राज्य सरकार को या केंद्र की नीतियों को?”

राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि सीमाओं पर असफलता का अर्थ यह नहीं कि राज्य सरकारें कमजोर हैं, बल्कि यह केंद्र के सुरक्षा ढाँचे और खुफिया तंत्र की कमजोरी को उजागर करता है।

राजनीतिक बहस बनाम प्रशासनिक सच्चाई

भारतीय राजनीति में “घुसपैठ” एक बेहद संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा है, जिसका इस्तेमाल हर चुनाव से पहले राष्ट्रीय विमर्श को मोड़ने के लिए किया जाता है। परंतु सच्चाई यह है कि घुसपैठ का सवाल राजनीतिक नारा नहीं बल्कि सुरक्षा नीति का प्रश्न है।

केंद्र सरकार को यह तय करना होगा कि वह इस समस्या को केवल चुनावी भाषणों में उठाएगी या इसे वास्तव में रोकने के लिए ठोस कदम उठाएगी। क्योंकि अगर गृह मंत्री स्वयं यह स्वीकार कर रहे हैं कि “घुसपैठ जारी है,” तो यह उनकी ही नीति की असफलता का प्रमाण है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस प्रकार के बयानों का उद्देश्य क्षेत्रीय सरकारों पर दोष डालना नहीं होना चाहिए, बल्कि यह समझना चाहिए कि सुरक्षा एक साझा जिम्मेदारी है — लेकिन इसकी प्राथमिक जवाबदेही हमेशा केंद्र सरकार पर होती है।

 घुसपैठ पर राजनीति नहीं, नीति चाहिए

अगर सीमा पर घुसपैठ हो रही है, तो इसका समाधान केवल भाषणों या आरोपों में नहीं है। यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने गृह मंत्रालय, खुफिया एजेंसियों और BSF के माध्यम से इस पर सख्त नियंत्रण सुनिश्चित करे।

ममता बनर्जी पर आरोप लगाना आसान है, लेकिन असली सवाल यह है कि 11 साल की सत्ता के बाद भी केंद्र सरकार सीमा पार से घुसपैठ को क्यों नहीं रोक पाई?

अगर रेड कार्पेट बिछा है, तो वह केंद्र की निगरानी में बिछा है — क्योंकि सीमाओं पर नियंत्रण और सुरक्षा तंत्र पूरी तरह केंद्र के हाथ में हैं। इसलिए यह कहना कि “राज्य सरकार घुसपैठियों का स्वागत कर रही है” — एक राजनीतिक तीर हो सकता है, लेकिन सुरक्षा की ढाल केंद्र के हाथ में ही है।

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