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बिहार चुनाव 2025: कांग्रेस ने जारी की दूसरी सूची, नए चेहरों और संतुलित रणनीति से साधने की कोशिश

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पटना 19 अक्टूबर 2025

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर कांग्रेस पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी कर दी है। यह सूची पार्टी की चुनावी तैयारी और संगठनात्मक मंशा की झलक पेश करती है — जिसमें पुराने अनुभवी नेताओं के साथ-साथ नए चेहरों को भी मौका दिया गया है। इस घोषणा के साथ पार्टी ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह इस बार बिहार की राजनीतिक धरातल पर सक्रिय और सशक्त वापसी के इरादे से उतर रही है।

सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस की इस दूसरी सूची में कई ऐसे उम्मीदवारों को टिकट मिला है जो अपने-अपने क्षेत्रों में सामाजिक रूप से मजबूत पकड़ रखते हैं। प्रमुख नामों में नरकटियागंज से शाश्वत केदार पांडे, किशनगंज से मोहम्मद कमरुल होदा, कस्बा से मोहम्मद इरफान आलम, पूर्णिया से जितेंद्र यादव, और गया टाउन से मोहन श्रीवास्तव शामिल हैं। इन नामों से पार्टी ने जातीय समीकरण और क्षेत्रीय संतुलन दोनों को साधने की कोशिश की है।

पहली सूची में कांग्रेस ने 48 उम्मीदवारों की घोषणा की थी, जिसमें सभी 17 वर्तमान विधायकों को दोबारा मौका दिया गया था। दूसरी सूची का फोकस उन सीटों पर रहा है, जहां 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को अपेक्षित नतीजे नहीं मिले थे। कांग्रेस की यह रणनीति साफ तौर पर बताती है कि वह इस बार ‘संगठन और समीकरण’ दोनों स्तर पर पुनर्गठन की प्रक्रिया में है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार कांग्रेस की रणनीति केवल सीट जीतने तक सीमित नहीं है, बल्कि उसका लक्ष्य बिहार में खोया हुआ जनाधार वापस पाना और मतदाताओं के बीच यह संदेश देना है कि पार्टी अब सक्रिय और बदलाव के लिए तैयार है। पार्टी के भीतर यह भी देखा जा रहा है कि युवा नेताओं को अधिक जिम्मेदारी दी जा रही है, ताकि कांग्रेस अपने पारंपरिक वोट बैंक से आगे बढ़कर नई पीढ़ी तक भी अपनी पहुंच बना सके।

इस सूची की खासियत यह है कि कांग्रेस ने बिहार की सामाजिक और धार्मिक विविधता को ध्यान में रखते हुए टिकट वितरण किया है। पिछड़ी, अति पिछड़ी, दलित और अल्पसंख्यक वर्गों से उम्मीदवारों को शामिल कर पार्टी ने गठबंधन की राजनीति में अपनी उपयोगिता और प्रासंगिकता को साबित करने की कोशिश की है। यह कदम न केवल सामाजिक न्याय के संतुलन की ओर इशारा करता है, बल्कि “इंडिया” गठबंधन के अंदर कांग्रेस की भूमिका को भी मजबूत बनाता है।

हालांकि, पार्टी के सामने चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं — सीटों पर तालमेल को लेकर सहयोगी दलों के साथ मतभेद, स्थानीय स्तर पर संगठन की निष्क्रियता और कई जगहों पर टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष जैसी बातें सामने आ रही हैं। फिर भी कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि मजबूत उम्मीदवार, स्थानीय मुद्दों पर स्पष्ट दृष्टिकोण, और राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी व मल्लिकार्जुन खड़गे की छवि, पार्टी को लाभ पहुंचा सकती है।

कांग्रेस ने बिहार की राजनीति में हमेशा एक निर्णायक भूमिका निभाई है, लेकिन पिछले दो दशकों में उसका प्रभाव लगातार घटता गया। अब इन सूचियों के माध्यम से पार्टी अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने और जनता में विश्वास पैदा करने की कोशिश कर रही है। दूसरी सूची से यह भी स्पष्ट है कि कांग्रेस इस बार ‘नए बिहार की नई कांग्रेस’ के नारे के साथ चुनावी रण में उतरना चाहती है।

आने वाले हफ्तों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन उम्मीदवारों का जनसंपर्क अभियान किस गति से चलता है, और क्या कांग्रेस अपनी पारंपरिक मजबूती को फिर से स्थापित कर पाएगी या नहीं। बिहार की जटिल सामाजिक बनावट और गठबंधन की राजनीति में यह सूची एक निर्णायक दस्तावेज साबित हो सकती है, जो यह तय करेगी कि 2025 में कांग्रेस की किस्मत किस ओर मुड़ती है — वापसी की राह पर या एक और संघर्ष की शुरुआत पर।

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