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जंगलराज का डर दिखा झूठ की राजनीति करने वाले भूल गए, असली जंगलराज तो है उन्हीं के राज में

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पटना/ बिहार 18 अक्टूबर 2025

जंगलराज का जुमला: बिहार की जनता अब हुई बेज़ार

पटना के ‘हिंदुस्तान बिहार समागम’ में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिया गया बयान कि “कपड़े बदलकर जंगलराज ना आ जाए,” अब बिहार की जनता के बीच एक बेमानी जुमला बन चुका है। यह सवाल अब सिर्फ लालू प्रसाद यादव के शासनकाल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के दो दशकों के शासन पर भी एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। 20 साल तक सत्ता में साझीदार रहने के बाद भी अगर बिहार में अपराध, भ्रष्टाचार और रोज़गार की समस्या जस की तस बनी हुई है, तो फिर इसका वास्तविक ज़िम्मेदार कौन है? क्या दशकों तक शासन करने वाले डबल इंजन को इसकी ज़िम्मेदारी से मुक्त किया जा सकता है? बिहार की जनता यह भली-भांति जानती है कि पुराने डर को दिखाकर वर्तमान की असफलता को छिपाया नहीं जा सकता, और अमित शाह का यह बयान केवल एक राजनीतिक हथियार है जिसका इस्तेमाल जनता की स्मृति को मोड़ने के लिए किया जा रहा है।

बीजेपी–जेडीयू का ‘सुशासन’: अपराध और भ्रष्टाचार का खुला बाज़ार

बिहार पुलिस की आधिकारिक रिपोर्टें बीजेपी और जेडीयू द्वारा प्रचारित ‘सुशासन’ की कहानी का पर्दाफ़ाश करती हैं। आँकड़े बताते हैं कि 2005 से 2024 के बीच, जब बीजेपी बिहार की सत्ता में एक अहम भागीदार थी, राज्य में औसतन हर दिन 10 हत्याएं, 5 बलात्कार और 8 अपहरण के मामले दर्ज होते रहे हैं। ये आंकड़े डबल इंजन सरकार के ‘सुशासन’ की खोखली दावों को उजागर करते हैं, जहाँ लोग आज भी रात में घर से निकलने से डरते हैं। दलितों पर अत्याचार और महिलाओं की सुरक्षा आज भी बिहार की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। शराबबंदी कानून के बावजूद गाँवों में दारू माफिया और ठेकेदारों का खुला राज है, जबकि इस कानून का इस्तेमाल केवल गरीबों और मज़दूरों के दमन के लिए किया जाता है। नीतीश कुमार और बीजेपी ने मिलकर जो ‘सुशासन’ की कहानी सुनाई थी, वह अब ज़मीनी हकीकत में ‘भ्रष्टाचारराज’ और ‘लापरवाही’ का पर्याय बन चुकी है।

‘जंगलराज’ का राष्ट्रीय रूप: बीजेपी शासित राज्यों का काला रिकॉर्ड

अमित शाह जब बिहार में ‘जंगलराज’ का डर दिखाते हैं, तो उन्हें अपने ही बीजेपी शासित राज्यों के काले रिकॉर्ड का आईना देखना चाहिए, जो संगठित अन्याय का राष्ट्रीय मॉडल प्रस्तुत करते हैं। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में ‘एनकाउंटर’ के नाम पर होने वाली सैकड़ों मौतों पर न्याय का कोई नामोनिशान नहीं है, जहाँ कानून के राज की जगह बंदूक का राज स्थापित हो रहा है। मध्य प्रदेश में कुख्यात व्यापमं घोटाले में सौ से ज़्यादा गवाहों का मारा जाना या गायब हो जाना ‘संगठित अपराध का राजनीतिक रूप’ नहीं तो क्या है? हरियाणा में रेप और महिला हिंसा के मामलों में 10% से भी नीचे की सज़ा दर कानून व्यवस्था के ढहने की कहानी कहती है। 2002 की आग आज भी गुजरात में जल रही है, जहाँ बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई पर केंद्रीय नेताओं की तालियाँ गूंजती हैं। और मणिपुर, जहाँ महीनों तक महिलाएँ नग्न होकर सड़कों पर इंसाफ मांगती रहीं, लेकिन गृह मंत्री अमित शाह चुप रहे और संसद में जवाब देने से बचते रहे। अगर यह ‘रामराज्य’ है, तो जनता पूछेगी — क्या यह ‘जंगलराज की परिभाषा बदलने की कोशिश’ नहीं है, जहाँ अपराध को राज्य-प्रायोजित सहमति मिल गई है?

बिहार का ‘धोखा राज’: रोज़गार की हत्या और पलायन की दुर्दशा

2005 में नीतीश कुमार और बीजेपी ने बिहार की जनता से बड़े बदलाव और अपराध मुक्त समाज का वादा किया था। लेकिन 2024 के आंकड़े बताते हैं कि 20 साल बाद भी बिहार भारत के सबसे गरीब और सबसे बेरोज़गार राज्यों में शुमार है। स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे में बिहार 27वें स्थान पर है, स्कूलों में 30% शिक्षकों की कमी है, और कृषि क्षेत्र में किसानों की आय सबसे निचले स्तर पर है। इन 20 सालों में, विकास और रोज़गार की तलाश में 50 लाख से ज़्यादा युवा दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं। केंद्र की बीजेपी सरकार ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे जुमलों का पैकेज देती रही, लेकिन बिहार को सिर्फ विफलता ही मिली। अमित शाह को यह बताना चाहिए कि क्या बिहार के युवाओं के लिए जंगलराज का मतलब सिर्फ अपराध है, या फिर रोज़गार की हत्या, शिक्षा की दुर्दशा और स्वास्थ्य की बर्बादी भी इसी जंगलराज का विस्तृत हिस्सा नहीं है?

नफरत की सियासत: जंगलराज का नया धार्मिक चेहरा

बीजेपी के शासन में जंगलराज ने अब एक खतरनाक धार्मिक चेहरा अख्तियार कर लिया है। कानून व्यवस्था के नाम पर एक वर्ग को डराना और दूसरे वर्ग को संरक्षण देना, यही असली असमानता है। अमित शाह बिहार में आकर डर दिखाते हैं, लेकिन वे यह नहीं बताते कि उनके कार्यकाल में देशभर में हुए साम्प्रदायिक हिंसा के 50% से अधिक मामले बीजेपी शासित राज्यों में ही क्यों हुए हैं। मॉब लिंचिंग से लेकर पुलिस अत्याचार तक, अब जंगलराज सिर्फ आपराधिक गतिविधियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राज्य-प्रायोजित अन्याय का रूप ले चुका है, जहाँ न्यायपालिका को भी प्रभावित करने की कोशिशें की जा रही हैं। बीजेपी की राजनीति ‘भय’ पर आधारित है; वे जनता को सुरक्षा देने के बजाय डर बेचकर सत्ता में बने रहना चाहते हैं, और यह डर की राजनीति ही सबसे बड़ा जंगलराज है।

नीतीश काल का जंगलराज

नीतीश कुमार के लंबे शासनकाल में बिहार का अपराध परिदृश्य यह साबित करता है कि “सुशासन” का दावा केवल एक सियासी नारा था — ज़मीनी सच्चाई यह है कि बिहार आज भी अपराध, भ्रष्टाचार और असुरक्षा के दलदल में धँसा हुआ है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में बिहार में हर दिन औसतन 953 अपराध दर्ज हुए, जिनमें 8 हत्याएँ, 33 अपहरण, 55 महिलाओं के खिलाफ अपराध और 136 गंभीर अपराध शामिल थे। यानी हर घंटे 40 से ज़्यादा अपराध। 

यह वही बिहार है, जहाँ नीतीश कुमार ने 2005 में “जंगलराज खत्म करने” का वादा किया था। लेकिन 20 साल बाद आंकड़े बताते हैं कि अपराध दर राष्ट्रीय औसत से कई गुना अधिक है। 2024 के पहले छह महीनों में ही राज्य में 1,376 हत्याएँ हुईं, और पूरे साल में यह संख्या बढ़कर 2,786 तक पहुँच गई — जबकि 2023 में यह आंकड़ा 2,863 था। अपहरण के मामलों में 2004 से 2019 के बीच 214% की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जबकि हत्या के प्रयास (attempt to murder) में 82% की वृद्धि हुई। महिलाओं पर अत्याचार के मामलों में भी बिहार देश के शीर्ष पाँच राज्यों में है, जहाँ 2022 में 8,600 से अधिक बलात्कार और उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए।

 यही नहीं, भ्रष्टाचार, रेत और शराब माफियाओं का तंत्र नीतीश शासन के दौरान और मजबूत हुआ — पुलिस और राजनेताओं की सांठगांठ से “शराबबंदी” कानून अपराधियों के लिए फायदेमंद और आम जनता के लिए उत्पीड़न का औजार बन गया। विपक्षी दलों के अनुसार, नीतीश राज के दौरान अब तक 65,000 से अधिक हत्याएँ और 2 लाख से ज़्यादा अपहरण के मामले दर्ज हो चुके हैं। ये आंकड़े सिर्फ “जंगलराज की वापसी” की नहीं, बल्कि यह सबूत हैं कि बिहार में जंगलराज कभी गया ही नहीं — वह बस सत्ता का रूप बदलता रहा। नीतीश कुमार का तथाकथित “सुशासन” दरअसल एक ऐसी राजनीतिक आड़ बन गया है, जिसके नीचे अपराध फल-फूल रहा है और जनता अब भी असुरक्षा के साए में जी रही है।

बीजेपी शासित राज्यों में “जंगलराज” शब्द कितनी सच्चाई बयाँ करता है

बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश में 2022 में 65,743 मामले महिलाओं के खिलाफ अपराध दर्ज किए गए — यह पूरे भारत में सबसे ज़्यादा है। यह आंकड़ा इस कथा को चुनौती देता है कि बीजेपी राज में महिलाओं की सुरक्षा बेहतर हुई है — बल्कि विपरीत साबित करता है कि सत्ता मिली तो अपराध बढ़े। इसके अलावा, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि पूरे भारत में 2022 में 4,45,256 मामलों को अपराध-पहला दर्जा दिया गया — यानी हर घंटे औसतन 51 महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे थे। 

और यह सिर्फ महिलाओं पर अपराध नहीं — दलित-अत्याचार, अल्पसंख्यक प्रताड़ना और सांप्रदायिक हिंसा भी इन राज्यों में बढ़ी है। रिपोर्ट कहती है कि BJP-शासित राज्यों में दलित महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामलों में 2015 से 2020 के बीच 45% की वृद्धि हुई। 

इसके अलावा, NCRB डेटा यह भी स्पष्ट करता है कि निर्भया कोष आदि योजनाओं के बावजूद अपराध दर कम होने के बजाय बढ़ी है; 2022 में ‘क्रूरता by पति / रिश्तेदार’ (Sec. 498A) मामले महिलाओं पर अपराधों का 31.4% हिस्सा थे, अपहरण-kidnapping 19.2%, और “नाजायज़ छेड़छाड़ / अपमान” 18.7%. 

और जब अपराध दर्ज होते हैं, तो सजा-प्राप्ति दर (conviction rate) इतनी कम होती है कि अपराधी अक्सर दंड से बच जाते हैं। न्यूज संस्थान The Wire ने लिखा है कि NCRB डेटा दिखाता है कि IPC मामलों में दोषसिद्धि दर गैर-BJP राज्यों में अधिक है — यानी बीजेपी शासित राज्यों में अपराधी बचने की संभावना ज़्यादा है। 

इस तरह, बीजेपी शासित राज्यों के अपराध आंकड़े सिर्फ “दुर्घटनाएँ” नहीं, बल्कि राजनीति की संरचना में शामिल विफलता और भय का सबूत हैं — जिन पर अमित शाह के “जंगलराज बदलकर आ सकता है” जैसे बयानों की वास्तविकता झिझकती है।

 बिहार अब डर से नहीं, जवाबदेही से चलेगा

अमित शाह का “कपड़े बदलकर जंगलराज” का बयान कोई चेतावनी नहीं, बल्कि राजनीतिक कूटनीति का एक हथियार है, जिसका इस्तेमाल मूल सवालों से बचने के लिए किया जा रहा है। बीजेपी जानती है कि अब जनता उनसे विकास, रोज़गार और शिक्षा पर सवाल पूछेगी, इसलिए वह जंगलराज का काल्पनिक डर दिखाकर जनता का ध्यान भटकाना चाहती है। लेकिन यह वही बिहार है जिसने बुद्ध को शांति, गांधी को आंदोलन और जेपी को क्रांति का मार्ग दिखाया। अब वही बिहार पूछेगा: “बीजेपी बताओ, 20 साल में क्या बदला? अपराध कम हुआ या सियासी अपराधी बढ़े? बिहार सुरक्षित हुआ या फिर सत्ता और पुलिस का गठजोड़ और मज़बूत?” ‘जंगलराज’ का झूठा डर दिखाकर बीजेपी अपनी असफलता नहीं छिपा पाएगी। बिहार की जनता अब डर की राजनीति में नहीं फँसेगी, वह अब काम, कानून और इंसाफ का हिसाब मांगेगी।

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