लखनऊ 16 अक्टूबर 2025
उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी (सपा) ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए एक साल पहले ही विधान परिषद (MLC) चुनाव के उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस निर्णय ने सियासी हलकों में नए सवाल खड़े कर दिए हैं — क्या यह राजनीतिक दूरदर्शिता है या विपक्ष का दर्जा खोने के डर से उठाया गया कदम?
सपा ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि समय से पहले उम्मीदवारों की घोषणा का उद्देश्य संगठन को सक्रिय रखना और कार्यकर्ताओं को तैयारी के लिए पर्याप्त समय देना है। पार्टी चाहती है कि उसके प्रत्याशी अपने-अपने क्षेत्रों में जनता के बीच जाएं, संपर्क बढ़ाएं और संगठन की पकड़ मजबूत करें।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस जल्दबाजी के पीछे एक व्यावहारिक कारण भी है। उत्तर प्रदेश विधान परिषद में सपा की संख्या लगातार घट रही है, और अगर आगामी चुनाव में परिणाम अनुकूल नहीं रहे, तो पार्टी Leader of Opposition (LoP) का पद खो सकती है। यही वजह है कि अखिलेश यादव “सावधानी ही राजनीति की सुरक्षा” के सिद्धांत पर चलते हुए पहले से मोर्चाबंदी कर रहे हैं।
वहीं बीजेपी खेमे ने सपा के इस कदम पर तंज कसा है। बीजेपी नेताओं ने कहा कि “सपा को जनता से भरोसा नहीं, इसलिए पहले ही मैदान में उतरकर हार की तैयारी कर रही है।”
दूसरी ओर, सपा कार्यकर्ताओं में इस घोषणा से नया उत्साह देखने को मिल रहा है। लखनऊ से लेकर पूर्वांचल तक पार्टी दफ्तरों में कार्यकर्ता जुट रहे हैं और चुनावी रणनीति पर चर्चा तेज हो गई है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अखिलेश यादव ने यह फैसला सोच-समझकर लिया है। इससे न केवल संगठन की पकड़ मजबूत होगी, बल्कि विपक्षी दलों के बीच भी हलचल मचेगी।
कुल मिलाकर, अखिलेश यादव का यह कदम “डर” और “दूरदर्शिता” दोनों के बीच का राजनीतिक संतुलन माना जा रहा है — एक ऐसा कदम, जिसने यूपी की सियासत में चुनाव से पहले ही तापमान बढ़ा दिया है।