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बिहार चुनाव 2025: NDA में महासंग्राम! नीतीश कुमार का बग़ावती दांव, चिराग की 5 सीट पर उतारे उम्मीदवार

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पटना, 15 अक्टूबर 2025

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले ही चरण में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में गंभीर दरारें उभरती दिख रही हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान के बीच सीटों के आवंटन को लेकर चल रहा तनाव अब खुले टकराव के रूप में सामने आ चुका है। नवीनतम और विस्फोटक घटनाक्रम में, जेडीयू ने चिराग पासवान के खाते में मानी जा रही 5 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जिसने एनडीए के अंदर एक बड़े “महासंग्राम” को जन्म दे दिया है। यह कदम न केवल गठबंधन की एकता पर सवाल उठाता है, बल्कि बिहार की चुनावी राजनीति के समीकरणों को भी पूरी तरह से पलटने की क्षमता रखता है। इस अप्रत्याशित कदम ने बीजेपी की केंद्रीय नेतृत्व को तत्काल हस्तक्षेप के लिए मजबूर कर दिया है, क्योंकि वे चुनाव से ठीक पहले गठबंधन को टूटने से बचाना चाहते हैं, जबकि विपक्षी महागठबंधन इस आंतरिक कलह का पूरा फायदा उठाने की फिराक में है।

नीतीश कुमार का साहसिक ‘पावर मूव’: सीट समझौते की धज्जियां उड़ाईं

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बेहद साहसिक राजनीतिक दांव खेला है, जिसने एनडीए के भीतर के सीट-समझौते की नींव को हिलाकर रख दिया है। जानकारी के अनुसार, जिन पांच महत्वपूर्ण सीटों पर जेडीयू ने अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, वे सीटें पिछले समझौतों के तहत चिराग पासवान की पार्टी, एलजेपी (रामविलास) के कोटे में मानी जाती थीं। इस फैसले को सही ठहराते हुए नीतीश कुमार की पार्टी ने “जमीनी मज़बूती” और “जनभावना के आधार” पर चुनाव लड़ने का तर्क दिया है।

उन्होंने स्पष्ट किया है कि पार्टी अब किसी भी “पुराने या सैद्धांतिक समझौते” के बंधन में नहीं रहेगी। राजनीतिक विश्लेषक इसे नीतीश कुमार का सीधा ‘पावर मूव’ करार दे रहे हैं, जिसका दोहरा उद्देश्य है: पहला, एनडीए के भीतर अपने प्रभुत्व को फिर से स्थापित करना और दूसरा, बीजेपी की संभावित मध्यस्थता या सीटों के बंटवारे में अंतिम निर्णय लेने की क्षमता को सीधे चुनौती देना। यह कदम बिहार की सत्ता की राजनीति में उनके “किंगमेकर नहीं, किंग” बनने के इरादे को मजबूती से प्रदर्शित करता है।

चिराग पासवान की भड़की प्रतिक्रिया: “नीतीश तो हमेशा से धोखा देते आए हैं”

जनता दल (यूनाइटेड) के इस अप्रत्याशित कदम से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान बेहद नाराज़ और आक्रोशित हैं। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सीधा और तीखा हमला बोला। चिराग पासवान ने आरोप लगाया कि “नीतीश कुमार का इतिहास रहा है कि जब भी चुनाव करीब आते हैं, वह अपने गठबंधन के सहयोगियों को धोखा देने का काम करते हैं।” उन्होंने आगे चेतावनी दी कि “अगर एनडीए में रहकर ही एक सहयोगी दूसरे की पीठ में छुरा घोंपेगा, तो बिहार की जनता इसका करारा जवाब देगी।”

चिराग पासवान ने यह भी स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि यदि गठबंधन के भीतर यह hostile माहौल बना रहा, तो उनकी पार्टी स्वतंत्र रूप से सभी सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतर सकती है। भावुक होते हुए उन्होंने कहा, “मैं स्वर्गीय रामविलास पासवान का बेटा हूं, डरना मैंने कभी सीखा नहीं। नीतीश कुमार के ‘छल’ की राजनीति से अब बिहार की जनता अच्छी तरह से वाकिफ हो चुकी है।”

बीजेपी की ‘मध्यस्थता’ मुश्किल में: शाह-नड्डा की टीम सक्रिय

एनडीए के अंदर बढ़ते हुए इस तनाव ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए एक बेहद ही असहज और विकट स्थिति पैदा कर दी है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व किसी भी कीमत पर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले गठबंधन में कोई टूट न हो, खासकर तब जब विपक्षी महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-लेफ्ट) पहले से ही एक आक्रामक और संगठित चुनावी रणनीति के साथ मैदान में उतरने की तैयारी में है। इस विवाद को तुरंत सुलझाने के लिए, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करना पड़ा है।

सूत्रों के अनुसार, दोनों वरिष्ठ नेताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और चिराग पासवान के साथ अलग-अलग स्तर पर लंबी बातचीत की है, लेकिन अब तक कोई भी ठोस या स्वीकार्य समाधान सामने नहीं आ पाया है। बीजेपी की मुख्य प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि एनडीए एक “एकजुट और मज़बूत चेहरा” लेकर चुनाव में उतरे, लेकिन नीतीश कुमार द्वारा दिया गया यह ‘सीट-शॉक’ गठबंधन के पूरे समीकरण को अस्थिर कर सकता है।

आंतरिक घमासान का विपक्ष को सीधा लाभ: महागठबंधन के चेहरे पर मुस्कान

एनडीए गठबंधन के इस अंदरूनी “महासंग्राम” का सीधा और तत्काल राजनीतिक लाभ तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले विपक्षी महागठबंधन को मिलने की पूरी संभावना है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेताओं ने नीतीश कुमार के इस कदम पर तंज कसते हुए टिप्पणी की है कि “नीतीश जी न किसी के सच्चे दोस्त हैं, न ही दुश्मन – वे सिर्फ अपनी कुर्सी की सुरक्षा और सत्ता के स्थायी साथी हैं।”

कांग्रेस पार्टी ने इस घटनाक्रम को एनडीए की “आंतरिक अविश्वसनीयता और भरोसे की कमी” का प्रमाण बताया है। अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) के बीच का यह खुलेआम विवाद आगामी चुनावों के नतीजों पर गहरा असर डाल सकता है, विशेष रूप से उन संवेदनशील सीटों पर जहाँ दोनों दलों के समर्थक पारंपरिक रूप से एक ही जातीय वर्ग से आते हैं। वोटों के इस विभाजन से महागठबंधन को निर्णायक बढ़त मिल सकती है

जेडीयू द्वारा उम्मीदवारों की घोषणा वाली 5 सीटें (LJP कोटे की मानी जा रही):

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल (यूनाइटेड) ने जिन पांच सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा करके गठबंधन में भूचाल ला दिया है, उनकी सूची निम्नलिखित है:
1️⃣ जमुई
2️⃣ नवादा
3️⃣ हिलसा
4️⃣ दरभंगा ग्रामीण
5️⃣ बख्तियारपुर
यह ध्यान देने योग्य है कि 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के उम्मीदवार चुनाव लड़े थे। इन सीटों पर जेडीयू द्वारा अपने प्रत्याशी उतारने से यह स्पष्ट और सीधा संकेत मिलता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब किसी भी पूर्व-निर्धारित सीट बंटवारे के बंधन या ‘नैतिक बाध्यता’ में रहने के इच्छुक नहीं हैं।

राजनीतिक संकेत : NDA के लिए खतरे की घंटी

नीतीश कुमार द्वारा उठाया गया यह कठोर कदम केवल एक मामूली चुनावी रणनीति का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह एनडीए गठबंधन की आंतरिक संरचना और नींव को हिला देने वाला एक निर्णायक फैसला साबित हो सकता है। एक तरफ, भारतीय जनता पार्टी बिहार में गठबंधन के भीतर तालमेल और एकता बनाए रखना चाहती है, वहीं नीतीश कुमार के इस बग़ावती दांव से यह स्पष्ट होता है कि वे अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता और सर्वोच्चता को फिर से स्थापित करने की दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। यदि एनडीए का केंद्रीय नेतृत्व जल्द ही इस खतरनाक अंदरूनी टकराव को सुलझाने में विफल रहता है, तो बिहार की 2025 की चुनावी जंग में इसका सीधा और निर्णायक राजनीतिक लाभ विपक्षी महागठबंधन को मिलना तय है।

बिहार की सियासत एक बार फिर अपने सबसे दिलचस्प और अनिश्चित मोड़ पर खड़ी है: एक तरफ नीतीश कुमार अपनी सत्ता की साख और पद को बचाने में जुटे हैं, तो दूसरी तरफ चिराग पासवान अपने “पारिवारिक विरासत और युवा जनसमर्थन” के दम पर अकेले चुनाव लड़ने की खुली चेतावनी दे रहे हैं। इन सबके बीच फंसी बीजेपी के साथ-साथ आम जनता भी सवाल पूछ रही है कि क्या एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का मतलब अब ‘नेता दर नेता’ का अस्थिर गठबंधन बनकर रह गया है?

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