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पूरन कुमार मौत कांड का असर — DGP शत्रुजीत कपूर छुट्टी पर, ओमप्रकाश को मिली कमान

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चंडीगढ़ | विशेष रिपोर्ट | 14 अक्टूबर 2025

हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ADGP पूरन कुमार की रहस्यमयी मौत के बाद राज्य पुलिस महकमे में बड़ा झटका लगा है। सरकार ने DGP शत्रुजीत कपूर को तत्काल प्रभाव से छुट्टी पर भेज दिया है, जबकि उनके स्थान पर ADGP ओमप्रकाश को डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है।

यह कदम उस समय उठाया गया जब पूरे राज्य में एडीजीपी पूरन कुमार की आत्महत्या को लेकर पुलिस और राजनीतिक गलियारों में भारी आक्रोश और सवालों का सिलसिला जारी है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री कार्यालय ने यह निर्णय परिस्थितियों की गंभीरता और जनता के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए लिया।

पूरन कुमार, जिन्हें 1 अक्टूबर को रोहतक पुलिस द्वारा उनके PSO की अवैध गिरफ्तारी और मानसिक उत्पीड़न के बाद से लगातार निशाने पर रखा गया था, ने 7 अक्टूबर को आत्महत्या कर ली थी। इस घटना के बाद पूरे पुलिस विभाग पर पक्षपात, दबाव और भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे थे। विपक्षी दलों ने इसे “सिस्टमेटिक मर्डर” करार देते हुए सीधे-सीधे DGP शत्रुजीत कपूर और SP नरेंद्र बिजारनिया को जिम्मेदार ठहराया था।

राजनीतिक दबाव और जनता के गुस्से को देखते हुए आखिरकार सरकार को कार्रवाई करनी पड़ी। गृह विभाग के सूत्रों ने पुष्टि की, “DGP शत्रुजीत कपूर को छुट्टी पर भेजा गया है और उनके स्थान पर ओमप्रकाश को फिलहाल डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। जांच पूरी होने तक कोई स्थायी नियुक्ति नहीं की जाएगी।”

इस फैसले के साथ ही सरकार ने पूरन कुमार की मौत की उच्चस्तरीय जांच के संकेत भी दिए हैं। बताया जा रहा है कि यह जांच विभागीय और न्यायिक दोनों स्तरों पर की जा सकती है। वहीं, परिजनों और विपक्ष ने मांग की है कि CBI जांच के बिना सच्चाई सामने नहीं आएगी।

तेजस्वी यादव, जिन्होंने पहले ही इस घटना को “सिस्टम की हत्या” कहा था, ने ट्वीट कर कहा, “सरकार ने DGP को छुट्टी पर भेजकर गलती सुधारने की कोशिश की है, लेकिन यह काफी नहीं। जब तक जिम्मेदार अधिकारियों पर हत्या का केस दर्ज नहीं होता, न्याय अधूरा रहेगा।”

पूरन कुमार की मौत के बाद लगातार बढ़ते जनदबाव ने हरियाणा पुलिस की साख पर गहरा दाग लगा दिया है। विपक्ष ने कहा कि यह सिर्फ एक अफसर की मौत नहीं, बल्कि पूरे पुलिस सिस्टम की नैतिक पराजय है। सबकी निगाहें उस जांच पर टिकी हैं जो तय करेगी, क्या यह सिर्फ एक “आत्महत्या” थी या फिर वास्तव में “सत्ता संरक्षित संस्थागत हत्या?

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