हरियाणा पुलिस के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी एडीजीपी पूरन कुमार की संदिग्ध आत्महत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया है। एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसर, जो अपनी साख और सेवा के लिए जाने जाते थे, आखिर क्यों मौत को गले लगाने पर मजबूर हुए? इस सवाल ने अब प्रशासन और राजनीति दोनों की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इस घटना को “संस्थागत हत्या” करार दिया है और कहा कि पूरन कुमार की मौत से पहले जिस तरह उनके साथ बर्ताव किया गया, वह किसी लोकतांत्रिक राज्य में नहीं, बल्कि एक डराने-धमकाने वाली व्यवस्था में ही संभव है।
तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर कहा — “IPS पूरन कुमार के परिवार के दर्द को समझिए। यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक सिस्टम की त्रासदी है। जिस देश में ईमानदार अफसरों को अपराधियों की तरह फंसाया जाता है और भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण मिलता है, वहां न्याय का कोई अर्थ नहीं रह जाता।” यादव ने बताया कि पूरन कुमार का 29 सितंबर 2025 को आईजी रोहतक रेंज से अचानक तबादला कर दिया गया। उन्होंने अगले ही दिन 30 सितंबर को पदभार छोड़ दिया। और सिर्फ 24 घंटे बाद, 1 अक्टूबर को, जब वह अपने निजी वाहन में अपने पीएसओ के साथ यात्रा कर रहे थे, रोहतक पुलिस ने उनकी कार रोक ली। बिना किसी नोटिस या कारण बताए उनके पीएसओ को हिरासत में ले लिया गया। जब पूरन कुमार ने एफआईआर की कॉपी मांगकर विरोध किया, तो मौके पर मौजूद सीआईए इंस्पेक्टर ने ठंडी हंसी के साथ कहा — “अगला नंबर आपका है।”
तेजस्वी यादव ने बताया कि यह केवल धमकी नहीं थी, बल्कि सत्ता और पुलिस के गठजोड़ की मृत्यु घोषणा थी — एक अफसर की ईमानदारी की, एक परिवार की गरिमा की। पूरन कुमार के पीएसओ को पांच दिनों तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया, प्रताड़ित किया गया, और उनसे झूठे बयान पर हस्ताक्षर करवाए गए। तेजस्वी ने कहा — “यह पुलिस की बर्बरता नहीं, यह सत्ता की हिंसा थी। पांच दिन तक लगातार पीटा गया एक सरकारी कर्मचारी आखिर कब तक सच से लड़ सकता था? आखिर उसने एक खाली पन्ने पर हस्ताक्षर कर दिए, और उस पर बाद में एक झूठा बयान टाइप किया गया — जिसमें पूरन कुमार को फंसाया गया।”
पूरन कुमार ने खुद डीजीपी शत्रुजीत कपूर और एसपी नरेंद्र बिजारनिया को बार-बार फोन कर गुहार लगाई। उन्होंने कहा — “मेरी व्यक्तिगत और पारिवारिक प्रतिष्ठा को नुकसान न पहुंचाया जाए।” लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया। फोन कटे रहे, संवेदनाएं मरी रहीं। तेजस्वी यादव ने कहा — “जब सिस्टम का सबसे ऊंचा अधिकारी भी एक ईमानदार अफसर की गुहार नहीं सुनता, तो समझ लीजिए कि राज्य ने अपनी आत्मा बेच दी है।”
6 अक्टूबर 2025 को पूरन कुमार के पीएसओ के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PC Act) के तहत एफआईआर दर्ज कर दी गई। इसे तेजस्वी यादव ने ‘कानूनी हेराफेरी की पराकाष्ठा’ कहा। उनका कहना है कि इस धारणा के तहत केस दर्ज करने का उद्देश्य सिर्फ यह था कि पूरन कुमार की गिरफ्तारी के लिए सरकार की अनुमति की जरूरत न पड़े। यह सब इतने सधे हुए तरीके से हुआ कि यह पूरी साजिश का खुलासा करता है — पहले झूठा बयान बनवाया गया, फिर पीएसओ को फंसाया गया, और अंततः एक अधिकारी को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का माहौल तैयार किया गया।
इसके बाद 7 अक्टूबर 2025 को पूरन कुमार ने आत्महत्या कर ली। तेजस्वी यादव ने कहा — “यह आत्महत्या नहीं, यह एक सिस्टम द्वारा किया गया मर्डर है। पूरन कुमार ने खुद को नहीं मारा, उन्हें व्यवस्था ने मार डाला। उन्होंने खुद को गोली नहीं मारी — उन्हें हर दिन थोड़ी-थोड़ी मारने वाली इस क्रूर और भ्रष्ट शासन-व्यवस्था ने खत्म कर दिया।” उन्होंने कहा कि पूरन कुमार जैसे अधिकारी, जो अपने काम से ईमानदारी की मिसाल बनाते हैं, अब इस देश में राजनीतिक संरक्षण वाले अफसरों के लिए खतरा बन गए हैं।
तेजस्वी यादव ने इस मामले में CBI जांच की मांग करते हुए कहा कि डीजीपी और एसपी दोनों को हत्या की धारा के तहत आरोपी बनाया जाए। उन्होंने कहा — “अगर सरकार और पुलिस ईमानदार अफसरों को इस तरह तोड़ेंगे, तो आने वाले समय में कोई अधिकारी सच्चाई के लिए खड़ा नहीं होगा। हर कोई डर के साए में रहेगा, और देश की प्रशासनिक आत्मा मर जाएगी।”
तेजस्वी यादव ने अपनी बात को बेहद मार्मिक शब्दों में समाप्त किया, “पूरन कुमार की आत्मा आज भी न्याय मांग रही है। यह एक अधिकारी की आत्महत्या नहीं, बल्कि सच्चाई के मर जाने की घटना है। अगर इस देश में अब भी कोई न्याय बाकी है, तो उसे पूरन कुमार के नाम पर ज़िंदा होना होगा।”
यह मामला अब न केवल हरियाणा पुलिस की साख पर प्रश्नचिन्ह है, बल्कि यह पूरे भारतीय प्रशासनिक ढांचे पर एक करारा तमाचा है। यह सवाल खड़ा करता है कि क्या भारत में ईमानदारी अब अपराध बन चुकी है?