पटना/ नई दिल्ली 13 अक्टूबर 2025
तेजस्वी यादव ने साधा चुनावी कमान, महागठबंधन में सीट बंटवारा अंतिम चरण में
बिहार की राजनीतिक सरगर्मी अब अपने उच्चतम शिखर पर पहुँच चुकी है, जहाँ राजधानी पटना के गलियारों से लेकर ग्रामीण सहरसा, भागलपुर और सीमांचल के चुनावी अखाड़ों तक हर राजनीतिक दल अपनी अंतिम और निर्णायक रणनीति को तैयार करने में जुटा है। सूत्रों से प्राप्त विश्वसनीय जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के ऊर्जावान नेता तेजस्वी यादव ने महागठबंधन के प्रमुख सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे का अत्यंत जटिल फार्मूला लगभग तय कर लिया है, जिससे गठबंधन के खेमे में आत्मविश्वास और एकजुटता का माहौल बन गया है। महागठबंधन के प्रमुख घटक दलों — कांग्रेस, राजद, वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी, मुकेश सहनी के नेतृत्व में) और विभिन्न वाम दलों — के बीच गहन विचार-विमर्श के बाद अब बातचीत अंतिम और निर्णायक चरण में पहुँच चुकी है।
अंदरूनी जानकारी यह संकेत देती है कि RJD सबसे बड़े दल के रूप में उभरते हुए लगभग 140 से 145 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, जबकि राष्ट्रीय स्तर की पार्टी कांग्रेस को सम्मानजनक 60 सीटें, वाम दलों को लगभग 25 सीटें, और मुकेश सहनी की वीआईपी को 10 से 12 सीटें देने का अंतिम प्रस्ताव तैयार किया गया है। तेजस्वी यादव ने अपने चुनावी एजेंडे को स्पष्ट करते हुए यह घोषणा कर दी है कि इस बार गठबंधन का चुनाव अभियान केवल जातीय समीकरणों पर निर्भर नहीं रहेगा, बल्कि यह निर्णायक रूप से “युवाओं के भविष्य, रोजगार सृजन और बिहार में वास्तविक बदलाव” के मूलभूत मुद्दों पर लड़ा जाएगा।
NDA में संकट गहराया: JDU में इस्तीफों की झड़ी, लिस्ट का इंतजार जारी
इसके विपरीत, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के भीतर की राजनीतिक स्थिति लगातार तनावपूर्ण और बिगड़ती हुई नज़र आ रही है, जो चुनावों से ठीक पहले गठबंधन के लिए एक गंभीर चुनौती पैदा कर रही है। एक ओर, भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपनी उम्मीदवार सूची को लेकर अत्यधिक रणनीतिक चुप्पी साधे हुए है, वहीं सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (JDU) में आंतरिक असंतोष और गहरी नाराज़गी अब खुले तौर पर सामने आ रही है। राज्य के विभिन्न जिलों से JDU के प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामूहिक इस्तीफे की खबरें लगातार आ रही हैं, और पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने सीधे तौर पर यह गंभीर आरोप लगाया है कि उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया में “दिल्ली का अत्यधिक और अनावश्यक नियंत्रण” बढ़ गया है, जिसके कारण स्थानीय और जमीनी स्तर पर सक्रिय नेताओं की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है।
इससे पहले भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले कई पुराने और वफादार नेताओं ने बीजेपी से टिकट की मांग करके गठबंधन की आंतरिक खींचतान और अनिश्चितता को उजागर किया था। राजनीतिक विश्लेषकों का स्पष्ट मत है कि NDA खेमे में अभी भी सीट बंटवारे के अंतिम फार्मूले पर कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई है, और उनकी यही अनिश्चितता और अत्यधिक देरी सीधे तौर पर महागठबंधन को चुनावी अभियान में एक निर्णायक गति और मनोवैज्ञानिक बढ़त प्रदान करने में मदद कर रही है।
महागठबंधन की एकजुटता दिखाने की तैयारी — “तेजस्वी की लहर” को बढ़ावा
महागठबंधन ने अपनी चुनावी रणनीति को अत्यंत स्पष्ट और पारदर्शी रखा है — जिसका मुख्य लक्ष्य एक ऐसी एकजुटता और सामूहिकता की छवि बनाना है, जो निर्णायक रूप से “तेजस्वी की लहर” को बढ़ावा दे सके। तेजस्वी यादव ने हाल ही में सभी घटक दलों के शीर्ष प्रमुखों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की, जिसमें यह रणनीतिक रूप से तय किया गया कि उम्मीदवारों की घोषणा एक संयुक्त और भव्य प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से की जाएगी, ताकि विपक्षी गठबंधन में किसी भी तरह के बिखराव या अनिश्चितता की छवि न बने। तेजस्वी यादव ने इस दौरान अपने मिशन को दोहराया — “हमारा एकमात्र लक्ष्य बिहार को एक नए और प्रगतिशील युग में ले जाना है, जहाँ न तो केवल जाति की संकीर्ण राजनीति हो और न ही भय का शासन।”
महागठबंधन की टीम अब राज्य के हर जिले में संयुक्त रैलियों और सार्वजनिक सभाओं की व्यापक योजना बना रही है, जिससे जनता के बीच यह संदेश जाए कि वे एकजुट होकर लड़ रहे हैं। इस बीच, वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट करके किसी भी तरह के संदेह को पूरी तरह खत्म कर दिया है कि वे मजबूती से गठबंधन में बने रहेंगे और “तेजस्वी यादव ही गठबंधन के सर्वमान्य मुख्यमंत्री पद के चेहरा होंगे,” जो महागठबंधन के अंदरूनी तालमेल और अटूट एकजुटता का एक सशक्त संदेश देता है।
बिहार की जंग अब चेहरों और नैरेटिव की
बिहार की वर्तमान राजनीति अब पुराने और जड़े जमा चुके “जातीय समीकरणों” की पारंपरिक सीमाओं से हटकर एक नई पीढ़ी बनाम पुरानी राजनीतिक व्यवस्था की दिशा में निर्णायक रूप से बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। एक ओर, युवा और ऊर्जावान नेता तेजस्वी यादव हैं, जो अपने चुनावी नैरेटिव को सीधे तौर पर रोजगार सृजन, शिक्षा में सुधार और भ्रष्टाचार-मुक्त पारदर्शी शासन जैसे ठोस और जमीनी मुद्दों पर केंद्रित कर रहे हैं; वहीं दूसरी ओर, NDA सरकार अपने “सड़क-बिजली-पानी” के पिछले मॉडल, सुशासन के पुराने वादों और मोदी-नीतीश की दशक पुरानी जोड़ी के विकास एजेंडे पर चुनाव लड़ना चाहती है। हालांकि, ज़मीनी हकीकत यह है कि रिकॉर्ड स्तर की बेरोज़गारी, बड़े पैमाने पर पलायन और बेलगाम महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दे बिहार के मतदाताओं के बीच अब गहराई से अपनी छाप छोड़ रहे हैं, खासकर युवा वर्ग में।
महागठबंधन इसी व्यापक सामाजिक असंतोष को चुनावी ताकत में भुनाने की अपनी पूरी कोशिश कर रहा है। इसके विपरीत, NDA अभी भी अपने चुनावी अभियानों में हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और मोदी ब्रांड की अजेय छवि पर अत्यधिक भरोसा कर रहा है, लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि बिहार की बदलती सामाजिक-आर्थिक संरचना में, यह पारंपरिक फार्मूला सीमित असर ही डाल सकता है, क्योंकि आज का युवा मतदाता अब भावनात्मक या धार्मिक मुद्दों से ज़्यादा अपनी आर्थिक सुरक्षा, रोजगार की संभावनाओं और शासन की विश्वसनीयता पर अपने चुनावी निर्णय ले रहा है।
बिहार की सियासत में अब निर्णायक घड़ी
बिहार विधानसभा चुनाव का माहौल अब पूरी तरह से एक निर्णायक सियासी टकराव में बदल चुका है, जहाँ दोनों प्रमुख गठबंधनों के बीच स्पष्ट अंतर और लय दिखाई दे रही है। एक ओर, महागठबंधन ने तेजस्वी यादव के मजबूत नेतृत्व में अपना सीट समीकरण लगभग सफलतापूर्वक तय कर लिया है और एक स्पष्ट चुनावी नैरेटिव के साथ मैदान में उतरने को तैयार है; वहीं दूसरी ओर, सत्ताधारी NDA अभी भी टिकट वितरण, आंतरिक असंतोष और नेतृत्व की अस्पष्टता के सवाल में गहरे उलझा हुआ है। महागठबंधन के आत्मविश्वास और NDA के भीतर दिख रहे असंतुलन ने राजनीतिक माहौल को फिलहाल विपक्ष के पक्ष में एकतरफा बना दिया है — जिससे विपक्षी गठबंधन लय और गति में दिख रहा है, जबकि सत्ता पक्ष स्पष्ट रूप से असमंजस और खींचतान की स्थिति में है।
तेजस्वी यादव अब इस चुनाव को अपने “राजनीतिक करियर के निर्णायक क्षण” में बदलना चाहते हैं, और उनका चुनावी संदेश अत्यंत सीधा, स्पष्ट और युवा केंद्रित है — “अब बिहार बदलेगा, इस बार युवा अपनी आवाज उठाएगा।” राजनीतिक विश्लेषकों की चेतावनी है कि अगर NDA अपनी उम्मीदवार घोषणा और आंतरिक रणनीति में और अधिक देरी करता रहा, तो आने वाले निर्णायक दिनों में बिहार की चुनावी हवा पूरी तरह से महागठबंधन और तेजस्वी यादव के पक्ष में बहती हुई दिख सकती है।