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चिदंबरम के बयान से कांग्रेस में तूफ़ान: आलाकमान नाराज़, पुराने नेताओं के विवेक पर सवाल

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नई दिल्ली/चंडीगढ़ 13 अक्टूबर 2025

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा दिए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार पर विवादित बयान ने पार्टी के भीतर नई हलचल खड़ी कर दी है। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस आलाकमान इस बयान से बेहद नाराज़ है और पार्टी में यह चर्चा चल रही है कि क्या चिदंबरम के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। वहीं, कांग्रेस के अंदर और बाहर दोनों जगह यह सवाल उठ रहा है कि क्या अब कांग्रेस अपने ही इतिहास से मुँह मोड़ने की राह पर है?

राजनीतिक गलियारों में इस बयान को लेकर यह भी कहा जा रहा है कि यह गलती नहीं, बल्कि “जानबूझकर किया गया बयान” है — एक ऐसा वक्तव्य जो या तो किसी राजनीतिक दबाव का परिणाम है, या किसी छिपे एजेंडे की झलक देता है। जब पार्टी का एक छोटा-सा कार्यकर्ता भी यह समझ सकता है कि कौन-सा वक्तव्य पार्टी की छवि को मज़बूत करेगा और कौन-सा उसे नुकसान पहुँचाएगा, तब ऐसे वरिष्ठ नेताओं का विवेक आखिर कहाँ चला जाता है?

कांग्रेस के पुराने नेता, जिनमें कभी विचार और संगठन की आत्मा बसती थी, अब मोहभंग और असंतोष की स्थिति में दिखाई दे रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे कुछ नेता या तो बाहरी दबावों के अधीन हैं, या फिर अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता बचाने के लिए पार्टी की विचारधारा से समझौता कर रहे हैं। यही वजह है कि जब वे इतिहास पर टिप्पणी करते हैं, तो वो कांग्रेस की विरासत के सम्मान के बजाय भ्रम फैलाते हैं।

अब सवाल उठता है कि क्या चिदंबरम जैसे अनुभवी नेता वाकई भूल रहे हैं कि ऑपरेशन ब्लू स्टार किस हालात में किया गया था? जिस पंजाब की बात वे आज नकारात्मक रूप में कर रहे हैं, वो वही पंजाब था जो 1980 के दशक में आग में जल रहा था, खून से लथपथ था, और अलगाववाद के कगार पर था। हर दिन निर्दोष लोग मारे जा रहे थे, पुलिस स्टेशन उड़ा दिए जा रहे थे, और भारत की एकता को सीधा खतरा पैदा हो गया था। ऐसे समय में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वह कठिन लेकिन निर्णायक कदम उठाया — ऑपरेशन ब्लू स्टार, जिसने पंजाब को भारत से अलग होने से बचाया।

यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर उस समय वह कदम न उठाया गया होता, तो आज शायद पंजाब का नक्शा अलग होता। मगर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज कुछ नेता अपने राजनीतिक वक्तव्यों की कीमत पर देश के इतिहास को धुंधला करने की कोशिश कर रहे हैं।

कांग्रेस आलाकमान ने फिलहाल चिदंबरम के बयान को “ग़ैर-आधिकारिक निजी राय” बताया है, लेकिन पार्टी के भीतर कई वरिष्ठ सदस्य नाराज़ हैं। उनका कहना है कि इस तरह के बयानों से न केवल कांग्रेस की ऐतिहासिक भूमिका कमजोर पड़ती है, बल्कि राष्ट्रीय एकता और बलिदान के उस दौर का अपमान भी होता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद कांग्रेस के भीतर विचारधारा की दरार को और गहरा कर सकता है। एक ओर राहुल गांधी नई पीढ़ी के साथ कांग्रेस की छवि को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पुराने नेता बार-बार ऐसे बयानों से पार्टी की दिशा भ्रमित कर रहे हैं।

अंततः, यह सवाल हर कांग्रेस कार्यकर्ता के मन में गूंज रहा है, “क्या ये गलतियाँ अनजाने में होती हैं, या किसी के दबाव में जानबूझकर करवाई जाती हैं?” क्योंकि जब पार्टी का इतिहास गौरवशाली हो, और विरासत इंदिरा गांधी जैसी शख्सियत से जुड़ी हो, तब ऐसे बयान केवल राजनीतिक भूल नहीं, बल्कि आत्मघाती कदम साबित हो सकते हैं।

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