नई दिल्ली 12 अक्टूबर 2025
देश की राजनीति एक बार फिर “हिंदू-मुस्लिम अनुपात” और “घुसपैठ” जैसे शब्दों की आड़ में जहर घोलने की कोशिश देख रही है — और इस बार केंद्र में हैं अमित शाह और उनकी पार्टी बीजेपी। बिहार चुनाव से ठीक पहले शाह ने अपने आधिकारिक ट्विटर (X) अकाउंट से एक ऐसा पोस्ट किया जिसने राजनीति में भूचाल ला दिया। उन्होंने जनगणना के आंकड़े दिखाकर दावा किया कि 1951 से 2011 के बीच “मुस्लिम आबादी तेज़ी से बढ़ी” और इसका कारण “घुसपैठ” बताया। यानी देश के गृह मंत्री ने फिर वही पुराना भय का कार्ड खेला — ‘जनसंख्या असंतुलन और सुरक्षा संकट’ का हवाला देकर धार्मिक विभाजन की लकीर को और गहरा करने की कोशिश। लेकिन सच्चाई यह है कि यह पूरा नैरेटिव अब नंगा हो चुका है — न डेटा है, न सबूत।
दरअसल, जब ABP न्यूज पर एंकर संदीप चौधरी ने बीजेपी प्रवक्ताओं से इसी विषय पर सीधे सवाल किए — तो मात्र 7 मिनट की बहस में पूरा “घुसपैठ” मिथक भरभरा कर गिर पड़ा। चौधरी ने पूछा — “घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी किसकी है?” जवाब आया — केंद्र सरकार की! फिर सवाल हुआ — “SIR के बाद बिहार में कितने घुसपैठिए पकड़े गए?” प्रवक्ता के पास कोई आंकड़ा नहीं था। और जब पूछा गया — “असम से अब तक कितने लोगों को डिपोर्ट किया गया?” — तो स्क्रीन पर सन्नाटा छा गया। गृह मंत्रालय और अमित शाह की टीम ने 11 साल में एक भी ठोस कार्रवाई नहीं की, सिवाय इसके कि हर चुनाव से पहले “घुसपैठ” का राग अलापा और जनता को डर दिखाया। टीवी पर बीजेपी प्रवक्ता की हकलाहट और गोलमोल जवाब सुनकर देश ने देख लिया कि “देश की सुरक्षा” के नाम पर चलाया गया यह एजेंडा अब सिर्फ़ चुनावी स्टेज का प्रॉप बन चुका है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अमित शाह का यह बयान कोई गलती नहीं, बल्कि एक सुनियोजित चुनावी हथियार है। बिहार और पूर्वी भारत में मुस्लिम मतदाताओं की निर्णायक भूमिका को देखते हुए भाजपा लगातार वही खेल दोहरा रही है जो वह बंगाल, असम और उत्तर प्रदेश में कर चुकी है — “घुसपैठ और जनसंख्या” को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ना, फिर उसे “हिंदू असुरक्षा” की भावना से गूंथना। पर आंकड़े इस डर को झूठा साबित कर रहे हैं। 2015 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे और संयुक्त राष्ट्र की 2023 रिपोर्ट बताती है कि मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या वृद्धि दर पिछले दो दशकों में लगातार गिर रही है और हिंदू-मुस्लिम जन्मदर अब लगभग बराबर है — हिंदू 1.94, मुस्लिम 2.1। यानी जनसंख्या संतुलन की चिंता का कोई गणित नहीं, बस राजनीति का गणित है।
फिर सवाल उठता है — अगर “घुसपैठ” सच में इतनी बड़ी समस्या है, तो अमित शाह और केंद्र सरकार ने 2014 से अब तक किया क्या? असम में NRC के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हुए, पर एक भी व्यक्ति को देश से नहीं निकाला गया। बिहार में SIR लागू होने के बाद भी सरकार के पास कोई डेटा नहीं कि कितने अवैध नागरिक पकड़े गए। यानी सिर्फ़ चुनाव आते ही यह विषय “राष्ट्रीय खतरा” बन जाता है, और फिर चुनाव खत्म होते ही “फाइलों में दफन”। यही राजनीति की सबसे खतरनाक चाल है — डर पैदा करो, फिर उसी डर का ठेका अपने पास रखो।
कांग्रेस, राजद और INDIA गठबंधन ने शाह के बयान को “गैर-जिम्मेदाराना” और “संविधानविरोधी राजनीति” बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “जब देश में बेरोज़गारी, महंगाई और सामाजिक असमानता चरम पर है, तब अमित शाह जैसे नेता धर्म के नाम पर आग भड़काने में लगे हैं। यह वही सरकार है जिसने जनगणना-2021 के आंकड़े तक रोक दिए, ताकि सच सामने न आ जाए।” राजद नेताओं ने कहा कि बिहार की जनता अब भावनाओं के खेल से ऊपर उठ चुकी है — उसे नौकरी चाहिए, डेटा नहीं डर।
सोशल मीडिया पर भी जनता ने शाह की पोल खोल दी। एक यूज़र ने लिखा — “As expected, just before Bihar Election, Amit Shah brings up Muslim population growth again. Soon Godi channels will start primetime hate shows.” जबकि कुछ लोगों ने पुराना क्लिप शेयर किया जिसमें विशेषज्ञों ने पहले ही चेताया था कि “जनसंख्या असंतुलन” राजनीतिक झूठ है, सामाजिक नहीं।”
आज देश के सामने यह साफ़ है कि “घुसपैठ” और “जनसंख्या असमानता” BJP की नई चुनावी स्क्रिप्ट है, जिसका उपयोग हर राज्य चुनाव में दोहराया जाएगा — ताकि महंगाई, बेरोज़गारी, कृषि संकट और भ्रष्टाचार की चर्चा न हो सके। लेकिन इस बार बिहार से उठी आवाज़ साफ़ है — जनता अब डर से नहीं, डेटा से जवाब मांगेगी।
सिर्फ़ 7 मिनट की बहस ने दिखा दिया कि “घुसपैठ” का शोर एक झूठ का साम्राज्य है, जिसका मकसद सिर्फ़ विभाजन है, समाधान नहीं। अब जब अमित शाह “जनसंख्या कार्ड” खेल रहे हैं, तो जनता यह भी पूछ रही है — “11 साल में आपने घुसपैठ रोकी या सिर्फ़ झूठ फैलाया?” देश जानता है — शोर बीजेपी का है, सच जनता का।