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NDA = नॉनस्टॉप दलित अत्याचार: 11 साल में अपराध जमीन पर, कानून कागज़ों में

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 नरेंद्र मोदी सरकार के 11 वर्ष और दलितों पर अत्याचार

नरेंद्र मोदी के लगभग 11 साल (2014–2025) के केन्द्र शासन में दलितों पर हो रहे अत्याचार और भेदभाव की घटनाएँ लगातार रिपोर्ट हुई हैं — चाहे वह शारीरिक हमले हों, जमीन-झगड़े व सामाजिक बहिष्कार हों, या दलित महिलाओं के ख़िलाफ़ विशेष रूप से घिनौने अपराध। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स और मानवाधिकार संस्थाओं के डेटा व रिपोर्टों से पता चलता है कि केवल क़ानून मौजूद होने से समस्या नहीं रुकी; जमीनी स्तर पर सुरक्षा और न्याय मिलने में बड़े अन्तर दिखे हैं। 

प्रमुख आँकड़े (सरकारी और स्वतंत्र स्रोतों का सार)

सरकार के दस्तावेज़ों और NCRB के उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार 2014–2022/2023 की अवधि में कई राज्यों में SC के ख़िलाफ दर्ज अपराधों की संख्या लगातार बनी रही या कुछ वर्षों में बढ़ी रही — और साल-वार व राज्य-वार विस्तारित आँकड़े लोकसभा/मंत्रालयीय उत्तरों में उपलब्ध हैं। इन आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि अत्याचार एक-आदत या एक-दो घटनाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि कई राज्यों में नियमित तौर पर दर्ज होते रहे हैं। 

उच्च-प्रोफ़ाइल घटनाएँ — प्रतीकात्मक मामलों का संक्षेप

Una flogging (गुजरात, 2016): मृत गाय की चमड़ी छीलने के बहाने कुछ दलित युवकों को पिटाई का वीडियो वायरल हुआ — यह घटना देशव्यापी गुस्से और विरोध का कारण बनी और आज भी दलित-विरोधी हिंसा की मिसाल के रूप में जानी जाती है। मामले की लंबी कानूनी प्रक्रिया और पीड़ितों पर दबाव की ख़बरें भी आईं। 

दलित महिलाओं पर बढ़ते यौन व शारीरिक हमले: कई मानवाधिकार व मानव-अधिकारों से जुड़ी रिपोर्टों ने नोट किया है कि दलित महिलाओं व लड़कियों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि के संकेत मिले हैं और वे विशेष रूप से संवेदनशील स्थिति में हैं। 

2024–2025 की घटनाएँ व निरन्तर चिंताएँ: नागरिक समाज और सक्रिय समूहों द्वारा 2025 में जारी की गई रिपोर्टों में कई राज्यों से दलित-विरोधी हिंसा के ताज़ा मामले मैप किए गए हैं, जो बताते हैं कि 2025 में भी ज़मीनी हिंसा और संरचनात्मक भेदभाव जारी है। 

11 साल में दलित अत्याचारों की बढ़ती कहानी

नरेंद्र मोदी के शासनकाल (2014–2025) में दलितों पर अत्याचार की घटनाएँ रुकने के बजाय लगातार बढ़ती रहीं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों और संसदीय रिपोर्टों से पता चलता है कि इन 11 वर्षों में देशभर में अनुसूचित जातियों के खिलाफ दर्ज अपराधों की संख्या में गिरावट नहीं आई, बल्कि कई राज्यों में यह मामलों का ग्राफ़ और ऊँचा गया। बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में दलितों पर हमले, ज़मीन विवाद, सामाजिक बहिष्कार और दलित महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसी घटनाएँ आम होती चली गईं। नागरिक संगठनों का कहना है कि “न्याय का डर खत्म हो गया है और कानून केवल कागज़ों में रह गया है”। इसी दौर में “Una flogging” जैसी शर्मनाक घटनाएँ सामने आईं, जहाँ दलित युवकों को सार्वजनिक रूप से पीटा गया, और “हाथरस कांड” जैसा मामला हुआ जिसने पूरे देश को झकझोर दिया।

 कानून कागज़ों पर, न्याय जमीनी हकीकत में गायब

सरकार बार-बार यह दावा करती रही कि उसने SC/ST (Prevention of Atrocities) Act को मजबूत किया है और पीड़ितों के लिए राहत और पुनर्वास योजनाएँ चलाई हैं, लेकिन हकीकत यह है कि FIR दर्ज करने में देरी, गवाहों को धमकियाँ और अदालतों में मामलों की लंबी सुनवाई ने दलित समाज का भरोसा कमजोर कर दिया। NCRB के आँकड़े बताते हैं कि 2014 से 2022 के बीच हर साल हजारों दलित अत्याचार के मामले दर्ज हुए, पर सज़ा की दर बेहद कम रही। मानवाधिकार संगठनों जैसे Human Rights Watch और Amnesty International की रिपोर्टों ने बार-बार चेताया कि मोदी सरकार के दौर में दलितों के खिलाफ हिंसा और सामाजिक भेदभाव को लेकर “राजनीतिक चुप्पी” दिखाई दी। भीड़ हिंसा, ‘गौ-रक्षा’ के नाम पर दलितों की पिटाई, और महिला दलितों के साथ अमानवीय व्यवहार — ये सब घटनाएँ भारत के लोकतंत्र पर गहरी चोट हैं।

 NDA पर कांग्रेस का तीखा हमला और सामाजिक संदेश

कांग्रेस पार्टी ने इन घटनाओं को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोला है। पार्टी ने कहा कि “NDA का मतलब अब Nonstop Dalit Atrocities (बिना रुके दलितों पर अत्याचार) बन गया है।” कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि मोदी सरकार ने सामाजिक न्याय की आवाज़ को दबा दिया और दलितों के खिलाफ हो रहे अपराधों पर गंभीर कार्रवाई करने के बजाय “छवि बचाने” की राजनीति की। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कई बार कहा है कि यह सरकार न्याय के बजाय ‘डर’ का वातावरण बना रही है। देश में कानून हैं, अदालतें हैं, मगर दलितों को सुरक्षा नहीं है। यही वजह है कि देश का आम नागरिक पूछ रहा है — अगर इतने बड़े-बड़े कानून और संस्थाएँ होने के बावजूद दलित सुरक्षित नहीं हैं, तो क्या “अमृतकाल” के नाम पर भारत असमानता और भय का युग बनता जा रहा है? यह सच्चाई अब केवल आंकड़ों में नहीं — हर उस दलित की आंखों में है जो आज भी न्याय की प्रतीक्षा में है।

कहाँ-क्यों विफलता दिखाई दी? 

न्याय का देरी से मिलना: SC/ST (Prevention of Atrocities) Act जैसे क़ानून होने के बावजूद FIR दर्ज करने में देरी, मुकदमों की लंबी प्रक्रिया और गवाहों पर दबाव जैसी समस्याएँ आम दिखीं।

स्थानीय सत्ता और सामाजिक दबाव: ज़मीनी स्तर पर राजनीतिक/आर्थिक प्रभुत्व रखने वाले समूहों का दबाव और सामाजिक बहिष्कार अक्सर पीड़ितों को न्याय से वंचित करता रहा।

राज्य-स्तरीय पालन में कमज़ोरी: केन्द्र सरकार की घोषणाएँ और योजनाएँ आने के बावजूद राज्यों में क्रियान्वयन का फ़र्क़ रहा — विशेष थानों, तेज़ जाँच और पीड़ित सुरक्षा में नियमित कमियाँ सामने आईं। 

सरकार की क्या प्रतिक्रिया रही?

कानून (PoA Act) और कुछ नीतिगत कदम सरकार ने रखे — विशेष अदालतों, राहत/पुनर्वास योजनाओं व जागरूकता अभियानों का ज़िक्र होता रहा है — पर नागरिक समाज और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि व्यवहारिक तौर पर ये उपाय अपर्याप्त रहे; जिस तरह से कुछ मामलों में कार्रवाई हुई, उससे जमीनी सुरक्षा पर असर नहीं पड़ा। अंतरराष्ट्रीय निरीक्षक और रिपोर्टर भी भारत में जातिगत हिंसा पर लगातार चिंतित रहे हैं। 

नैरेटिव और नीति दोनों दृष्टि से

2014–2025 की अवधि में मिली रिपोर्टों और आँकड़ों का संयुक्त निष्कर्ष यह है कि कानूनी फ्रेमवर्क होने के बावजूद दलितों की सुरक्षा में पर्याप्त सुधार नहीं हुआ — उच्च-प्रोफ़ाइल केस, दलित-महिलाओं पर बढ़ते हमले, और नागरिक समाज की रिपोर्टें बताती हैं कि अत्याचारों का पैटर्न जारी रहा। यह संकेत देता है कि केवल कानून नहीं बल्कि उसकी त्वरित, पारदर्शी और पीड़ित-केंद्रित लागू करने की ज़रूरत है — अन्यथा ‘NDA = नॉनस्टॉप दलित अत्याचार’ जैसा कटाक्ष बनता रहेगा। 

सिफारिशें — क्या होना चाहिए 

PoA कानून का सख्त और स्वत:पूर्वक पालन — FIR रुकने न दें; त्वरित जाँच और पीड़ित सुरक्षा अनिवार्य करें।

राज्य-स्तरीय निगरानी, तृतीय-पक्ष ऑडिट और सार्वजनिक ट्रांसपेरेंसी — वर्ष-वार व राज्य-वार रिपोर्टें सार्वजनिक हों।

गवाह-सुरक्षा व पीड़ितों के लिए त्वरित आर्थिक राहत व कानूनी सहायता।

पुलिस, प्रशासन व स्कूलों में जाति-जनित पूर्वाग्रह हटाने के प्रशिक्षण और जवाबदेही तंत्र।

ज़मीनी स्तर पर भूमि-संसाधन विवादों का निष्पक्ष समाधान और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण योजनाओं का तेज़ क्रियान्वयन।

मूल और प्रमुख स्रोत (तार्किक पुष्टि के लिए):

संसद/मंत्रालयीय उत्तर एवं NCRB से राज्य/UT-वार आँकड़े (Crimes against SCs; 2014–2022/2023 डेटा)। 

Human Rights Watch — World Report 2025 व पिछले रिपोर्ट्स (जाति-आधारित हिंसा व अधिकारों पर चिंता)। 

Amnesty International — भारत पर मानवाधिकार रिपोर्ट; दलित महिलाओं पर हिंसा की रिपोर्टिंग। 

Citizens for Justice and Peace — 2025 का “Everyday Atrocity” मैप (दलित/आदिवासी हिंसा की ताज़ा रिपोर्टिंग)। 

Una flogging केस और उस पर दीदार-प्रकाशित कवरेज (2016 — आज तक के समूचे फ़ॉलो-अप सहित)। 

 

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