एक घर, आठ सौ वोटर — लोकतंत्र की नींव को हिला देने वाली सच्चाई
बिहार से निकली यह खबर न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी भी है। राज्य की मतदाता सूची में सामने आए आंकड़े बताते हैं कि एक ही घर के पते पर 800 तक मतदाताओं के नाम दर्ज हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर किसी एक घर में 50 से अधिक वोटर हैं, तो यह ‘संदेहास्पद’ माना जाना चाहिए। लेकिन अब यह आंकड़ा पचास या सौ नहीं, बल्कि सैकड़ों में पहुँच गया है। रिपोर्टों के मुताबिक, 20 घरों में ऐसे नाम दर्ज हैं, जहाँ एक ही पते पर सैकड़ों लोग वोटर दिखाए गए हैं। चुनाव आयोग ने इसे “शुद्धिकरण” कहा था, लेकिन हकीकत कुछ और बयान कर रही है। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री का नाम लिए बिना कहा है कि चुनाव आयोग तो उनकी जेब में है… हालांकि फोटो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी का यही 10 लाख वाला सूट है जो उन्होंने सरकार बनने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जब भारत आए थे तो पहना था।
“शुद्धिकरण” नहीं, “फर्जीकरण” — 3.2 करोड़ संदिग्ध वोटर!
“The Reports Collective” की विस्तृत जांच ने बिहार के चुनावी तंत्र की बुनियाद हिला दी है। इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि राज्य की “शुद्ध” वोटर लिस्ट में करीब 3.2 करोड़ मतदाता ऐसे हैं, जिनके पते या पहचान संदिग्ध हैं। कई जगह एक ही व्यक्ति के नाम पर तीन-तीन वोटर ID मिले हैं, जबकि कुछ घरों में दर्जनों परिवारों के नाम एक ही छत के नीचे दिखाए गए हैं — जहाँ असल में इतने लोग रहते ही नहीं। यह केवल लापरवाही नहीं बल्कि सुनियोजित डेटा-मैनिपुलेशन की ओर इशारा करता है। अगर वोटर लिस्ट ही संदिग्ध हो जाए, तो चुनाव की निष्पक्षता पर भरोसा कैसे किया जाए?
सुप्रीम कोर्ट का सवाल: “क्या यह लोकतंत्र है या छलावा?”
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में है। समाजसेवी और चुनाव सुधारक योगेंद्र यादव ने न्यायालय में पुख्ता सबूत पेश किए हैं। उन्होंने कहा, “यहां एक घर में 800 वोटर हैं, दूसरे में 620, तीसरे में 540। अगर यह ‘शुद्धिकरण’ है, तो फिर ‘फर्जीकरण’ किसे कहेंगे?” सुप्रीम कोर्ट ने इन आंकड़ों पर गंभीर चिंता जताई और कहा कि “यह लोकतंत्र की आत्मा को झकझोर देने वाला मामला है।” अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक मतदाता सूची पारदर्शी और सत्यापित नहीं होगी, तब तक स्वतंत्र चुनाव की बात एक “कानूनी भ्रम” बनकर रह जाएगी।
The Reports Collective की जांच — बिहार की सियासी धरती पर ‘डेटा का तांडव’
इस जांच में पत्रकारों और डेटा विश्लेषकों की टीम ने बिहार के 38 जिलों से मतदाता सूचियों का गहराई से अध्ययन किया। नतीजा यह निकला कि कई जिलों में एक ही नाम अलग-अलग वार्डों और विधानसभा क्षेत्रों में पाया गया। कुछ मामलों में तो एक ही परिवार के सदस्य तीन-तीन जगह वोटर लिस्ट में मौजूद पाए गए। यह न केवल प्रशासनिक चूक है, बल्कि यह इस ओर भी इशारा करता है कि किसी “सिस्टमेटिक मैकेनिज़्म” के तहत ये गड़बड़ियाँ की गई हैं। जो लोग अपने नाम हटने से परेशान हैं, उन्हें सूचना तक नहीं दी गई, लेकिन जिनके नाम फर्जी तौर पर जोड़े गए, उनकी गिनती नहीं की गई।
CEC ज्ञानेश कुमार का बयान — और अब बढ़ते सवाल
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने दावा किया था कि “22 साल में पहली बार बिहार की वोटर लिस्ट का शुद्धिकरण किया गया है।” लेकिन अब यही बयान सवालों के घेरे में है। अगर यह सचमुच “शुद्धिकरण” है, तो फिर यह कैसे संभव है कि लाखों नाम बगैर सूचना के काट दिए जाएं, और फर्जी पते पर नए नाम जुड़ जाएं? क्या यह एक प्रशासनिक असफलता है या किसी राजनीतिक दबाव का परिणाम? बिहार के ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी वार्डों तक, हर जगह यह भ्रम फैला हुआ है कि कौन असली वोटर है और कौन नकली?
जनता के मन में सवाल — जब सूची ही गंदी हो, तो लोकतंत्र कैसे पवित्र रहेगा?
गाँवों में मतदाता कार्ड को अब ‘संदेह का दस्तावेज़’ कहा जा रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कई असली परिवारों के नाम हटा दिए गए, जबकि जो लोग वर्षों से इस क्षेत्र में नहीं रहते, उनके नाम अब भी सूची में बने हैं। लोगों का गुस्सा इस बात पर भी है कि उन्हें न तो किसी डिलीशन का नोटिस मिला और न ही किसी सुधार का मौका। बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में यह गलती केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि लोकतंत्र की गरिमा पर सीधा प्रहार है।
अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर — क्या खुलेगा “फर्जी शुद्धिकरण” का काला अध्याय?
देशभर की निगाहें अब सुप्रीम कोर्ट पर टिक गई हैं। अदालत ने चुनाव आयोग से इस पर जवाब मांगा है कि इतने बड़े पैमाने पर विसंगतियाँ कैसे हुईं और उनका सत्यापन किसने किया? क्या यह चुनावी मशीनरी की लापरवाही है या किसी राजनीतिक हस्तक्षेप की छाया? आने वाले दिनों में यह सुनवाई बिहार ही नहीं, पूरे देश के लिए मिसाल साबित होगी। अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस “फर्जी शुद्धिकरण” की सच्चाई उजागर कर दी, तो यह भारत के चुनावी तंत्र की सबसे बड़ी सर्जरी होगी।
लोकतंत्र की जड़ें खोदने वालों की पहचान जरूरी है
एक घर में 800 वोटर सिर्फ आंकड़ा नहीं — यह चेतावनी है। यह दर्शाता है कि अगर मतदाता सूची ही अपवित्र हो जाए, तो चुनाव केवल एक नाटक बनकर रह जाएगा। लोकतंत्र की मजबूती की शुरुआत ईमानदार मतदाता सूची से होती है, और अगर वही संदिग्ध है, तो पूरी व्यवस्था खोखली है। अब यह तय करना सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है कि यह “शुद्धिकरण” था या “फर्जीकरण” — लेकिन एक बात तय है, बिहार की इस रिपोर्ट ने पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया है।