पटना, 7 अगस्त 2025
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) अभियान के तहत इस बार मतदाताओं की सूची में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। 1 अगस्त 2025 को जारी की गई नवीनतम मसौदा मतदाता सूची के अनुसार, राज्य में कुल 7.24 करोड़ मतदाता दर्ज किए गए हैं, जबकि इसी वर्ष जनवरी 2025 में यह संख्या लगभग 7.80 करोड़ थी। यानी कुल मिलाकर 56 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं। भारत निर्वाचन आयोग ने इस बदलाव को नियमित प्रक्रिया बताया है, जिसमें मृतकों के नाम हटाना, एक से अधिक स्थानों पर पंजीकरण को समाप्त करना, स्थायी रूप से राज्य से बाहर चले गए लोगों को सूची से बाहर करना और पता न चल पाने वाले नामों को हटाना शामिल है।
इस सूची को लेकर जिलावार जो विश्लेषण सामने आया है, वह अपने आप में कुछ चिंताजनक संकेत दे रहा है। विशेष रूप से 2011 की जनगणना के आधार पर किए गए अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि जिन जिलों में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत अधिक है, वहां से औसतन अधिक मतदाताओं के नाम काटे गए हैं। उदाहरण के तौर पर सीमांचल के जिलों—किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार—जिनमें मुस्लिम जनसंख्या 40% से अधिक है, वहाँ मतदाता सूची में भारी कटौती देखी गई है। इसके अलावा सीवान, दरभंगा, मधुबनी और पूर्वी चंपारण जैसे जिलों में भी नामों की भारी संख्या में कटौती दर्ज की गई है। यह देखा गया है कि इन क्षेत्रों में या तो लंबे समय से पलायन की समस्या रही है या फिर नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त डिजिटल रिकॉर्ड की कमी के कारण मतदाताओं का सत्यापन मुश्किल हुआ है।
इस पूरे घटनाक्रम ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी हलचल मचा दी है। मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने सवाल उठाया है कि कहीं यह सूची संशोधन किसी एक विशेष समुदाय को निशाना बनाकर तो नहीं की गई है। उनके अनुसार, जिन जिलों में सांप्रदायिक आधार पर सामाजिक असंतुलन है, वहाँ नामों की कटौती संदेहजनक रूप से अधिक है। वहीं, निर्वाचन आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए यह कहा है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से प्रौद्योगिकी आधारित, निष्पक्ष और पारदर्शी रही है, और इसमें किसी भी जाति, धर्म या समुदाय के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह सूची अभी मसौदा (ड्राफ्ट) है, और कोई भी नागरिक, जिसका नाम गलत तरीके से हटा दिया गया है, वह निर्धारित तिथि तक दावा या आपत्ति दर्ज करा सकता है।
निर्वाचन आयोग ने सभी मतदाताओं से अपील की है कि वे अपने-अपने नाम की स्थिति की जाँच वोटर हेल्पलाइन ऐप, आयोग की वेबसाइट या अपने बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) के माध्यम से करें। जिन लोगों का नाम हटाया गया है, वे आवश्यक दस्तावेजों के साथ दावा प्रस्तुत कर सकते हैं। दावा-आपत्ति की प्रक्रिया अगस्त के अंतिम सप्ताह तक चलेगी, जिसके बाद सभी दावों की जांच कर अंतिम मतदाता सूची नवंबर 2025 में जारी की जाएगी। यह अंतिम सूची 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में संभावित चुनावों के लिए आधार बनेगी।
इस घटनाक्रम ने यह बहस भी छेड़ दी है कि क्या डिजिटल सत्यापन की प्रक्रिया देश के उन क्षेत्रों में कारगर है जहाँ साक्षरता दर कम, डिजिटल साक्षरता नगण्य और दस्तावेजों की अनुपलब्धता आम बात है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सूची संशोधन में तकनीकी तरीकों पर अत्यधिक निर्भरता रही, तो इससे ग्रामीण, आर्थिक रूप से कमजोर और अल्पसंख्यक समुदायों को अनजाने में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से वंचित किया जा सकता है। इसके चलते यह आवश्यक हो गया है कि निर्वाचन आयोग सुधार की प्रक्रिया को संवेदनशीलता और संतुलन के साथ आगे बढ़ाए।