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3,000 करोड़ की ‘फर्जी बैंक गारंटी’ की धोखाधड़ी: ओडिशा से गिरफ्तारी, रिलायंस ग्रुप तक पहुंची जांच की आंच

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नई दिल्ली, 3 अगस्त 2025

भारत की वित्तीय और कॉर्पोरेट दुनिया में उस वक्त खलबली मच गई जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने एक बड़े फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ करते हुए ओडिशा स्थित कंपनी ‘बिस्वाल ट्रेडलिंक’ के प्रबंध निदेशक पार्थ सारथी बिस्वाल को गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी ₹3,000 करोड़ के फर्जी बैंक गारंटी घोटाले के सिलसिले में हुई है। इस घोटाले की जड़ें न सिर्फ ओडिशा तक सीमित हैं, बल्कि इसकी परछाई देश की एक बड़ी औद्योगिक इकाई – रिलायंस ग्रुप तक पहुंच गई है। यह मामला सिर्फ एक आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि उस तकनीकी और संस्थागत विश्वास पर कुठाराघात है, जिस पर भारत की आर्थिक नींव टिकी है।

ईडी की कार्रवाई दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) द्वारा नवंबर 2024 में दर्ज एक प्राथमिकी पर आधारित है। जांच में सामने आया कि बिस्वाल ट्रेडलिंक नामक यह कंपनी न केवल फर्जी बैंक गारंटी जारी कर रही थी, बल्कि इसने जानबूझकर देश की सबसे बड़ी बैंक – भारतीय स्टेट बैंक (SBI) – के नाम से मिलते-जुलते एक फर्जी ईमेल डोमेन “s-bi.co.in” का उपयोग कर सरकारी और निजी कंपनियों को धोखा देने की साजिश रची। इस घोटाले की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बिस्वाल ट्रेडलिंक ने ₹68.2 करोड़ की एक फर्जी बैंक गारंटी रिलायंस पावर की सब्सिडियरी कंपनी, रिलायंस NU BESS लिमिटेड के नाम पर सौर ऊर्जा निगम (SECI) को जमा की थी। हालांकि रिलायंस पावर ने तुरंत खुद को इस घोटाले का ‘पीड़ित पक्ष’ बताते हुए दिल्ली पुलिस में आपराधिक शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन मामले की गंभीरता इस बात से समझी जा सकती है कि इसमें सबसे बड़ी कॉर्पोरेट संस्थाएं भी निशाना बनीं।

ईडी की जांच से यह भी सामने आया है कि बिस्वाल ट्रेडलिंक कोई पूर्ण रूप से क्रियाशील कंपनी नहीं थी, बल्कि यह एक ‘पेपर एंटिटी’ थी – यानी दस्तावेजों पर तो मौजूद, लेकिन असलियत में इसका कोई वास्तविक परिचालन नहीं था। कंपनी का पंजीकृत कार्यालय एक आवासीय परिसर में पाया गया जो इसके एक रिश्तेदार के नाम पर था। वहां से कोई आधिकारिक दस्तावेज या कर्मचारी नहीं मिले। इतना ही नहीं, जांच के दौरान यह भी उजागर हुआ कि कंपनी ने कम से कम सात ऐसे बैंक खाते खोल रखे थे, जिनकी जानकारी उसने कभी आधिकारिक तौर पर नहीं दी थी। इन खातों के माध्यम से करोड़ों रुपये की संदिग्ध लेनदेन की गई, जिससे साफ जाहिर होता है कि यह पूरा फर्जीवाड़ा योजनाबद्ध तरीके से किया गया था।

सिर्फ फर्जी दस्तावेज या डोमेन बनाना ही इस घोटाले का हिस्सा नहीं था। ईडी को यह भी जानकारी मिली कि बिस्वाल ट्रेडलिंक के कर्ता-धर्ता अपने संचार को छुपाने के लिए आधुनिक तकनीकी माध्यमों का उपयोग कर रहे थे। वे ‘टेलीग्राम ऐप’ में ‘डिसअपीयरिंग मैसेज’ फीचर का इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे कि उनकी बातचीत का कोई रिकॉर्ड न रह जाए। यह दिखाता है कि घोटाला कितनी बारीकी से और डिजिटल सतर्कता से अंजाम दिया गया।

रिलायंस ग्रुप ने इस मामले में तुरंत स्पष्टीकरण जारी किया कि वह इस फर्जीवाड़े का शिकार है, और उसने इस मामले की पूरी जानकारी समय पर स्टॉक एक्सचेंज को भी दी थी। कंपनी ने स्पष्ट किया कि उसने अक्टूबर 2024 में ही दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा में शिकायत दर्ज कराई थी और वह जांच में पूरा सहयोग कर रही है। इससे यह साफ होता है कि कॉर्पोरेट जगत में भी अब साइबर और फाइनेंशियल सुरक्षा को लेकर सतर्कता बेहद आवश्यक हो गई है, क्योंकि बड़े नामों को भी इस तरह की जालसाज कंपनियां निशाना बना सकती हैं।

यह घोटाला सिर्फ एक व्यक्ति या एक कंपनी का मामला नहीं है। यह एक व्यापक प्रणालीगत विफलता की ओर इशारा करता है, जिसमें निगरानी, ईमेल सत्यापन, बैंक गारंटी सत्यापन और डोमेन निगरानी जैसी कई संस्थागत प्रक्रियाएं ढीली साबित हुई हैं। खासतौर पर यह मामला दर्शाता है कि कैसे डोमेन नेम की एक मामूली हेरफेर – “sbi.co.in” के बजाय “s-bi.co.in” – से करोड़ों रुपये का झांसा दिया जा सकता है। ईडी ने अब इस फर्जी डोमेन की डिटेल्स निकालने के लिए राष्ट्रीय इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ इंडिया (NIXI) को पत्र लिखा है।

जांच एजेंसी के अनुसार, यह पहला मामला नहीं है, और इसी कंपनी ने कई अन्य कंपनियों के लिए भी फर्जी गारंटी और बिल तैयार किए हैं। इसके जरिए 8% कमीशन के बदले फर्जी बैंक दस्तावेज दिए जाते थे। यह एक ‘सर्विस मॉडल’ की तरह काम कर रहा था – जहां कोई भी कंपनी पैसा देकर फर्जी कागजात बनवा सकती थी। यह साफ करता है कि ये लोग न केवल कानूनी और बैंकिंग व्यवस्था का मजाक उड़ा रहे थे, बल्कि देश के आर्थिक ढांचे को भी कमजोर कर रहे थे।

इस पूरे प्रकरण ने यह साबित कर दिया है कि वित्तीय सुरक्षा अब केवल पासवर्ड, यूजरनेम या टोकन तक सीमित नहीं रह गई है। कंपनियों और संस्थानों को अपने सिस्टम, प्रोटोकॉल और डिजिटल पहचान की जांच-पड़ताल में हर स्तर पर सख्ती बरतनी होगी। ईमेल डोमेन, बैंक गारंटी सत्यापन, पार्टनर की बैकग्राउंड जांच – यह सब अब सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि व्यापार की न्यूनतम आवश्यकता बन चुके हैं।

ईडी की जांच अभी जारी है, और संभावना है कि इस केस के तहत कई और नाम सामने आएंगे। लेकिन फिलहाल जो स्पष्ट है, वह यह कि बिस्वाल ट्रेडलिंक जैसे ‘कागजी कंपनियों’ के सहारे देश में बड़े स्तर पर धोखाधड़ी संभव हो रही है – और जब तक ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक निवेशकों का विश्वास और कॉर्पोरेट पारदर्शिता दोनों ही खतरे में रहेंगे।

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