जितनी हम छोड़ दिया करते थे मयख़ाने में, उतनी भी आज मयस्सर नहीं पैमाने में… वक्त की धूल में खोए उत्तर प्रदेश के राजघरानों की दर्दभरी कहानी
कभी लखनऊ की शामें इन नवाबों के नाम हुआ करती थीं — महलों की छतों पर रोशनियाँ जगमगाती थीं, बाज़ारों में शेरो-शायरी गूंजती थी, और दरबारों में तबले, सरोद और सितार की झंकार गूंजा करती थी। पर आज वही नवाब, वही राजघराने, वही वंशज वक़्त के थपेड़ों में गुम हो चुके हैं। जिनके पास कभी…