आईआईटी (BHU), वाराणसी के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा पोर्टेबल बायो-इलेक्ट्रॉनिक सेंसर विकसित किया है जो हड्डी के कैंसर (ओस्टियोसारकोमा) की शुरुआती पहचान कर सकता है। यह सेंसर सोने की नैनो-परत और इम्यूनोप्रोटीन-आधारित पहचान प्रणाली पर आधारित है। इस खोज की विशेष बात यह है कि यह ओस्टियोपॉन्टिन (OPN) नामक बायोमार्कर का पता अत्यंत सटीकता से कर सकता है, जो हड्डी के कैंसर के पहले लक्षणों में से एक होता है।
IIT-BHU के शोधकर्ताओं ने इस सेंसर को विशेष रूप से बच्चों और किशोरों में बढ़ते मामलों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया है, क्योंकि यह कैंसर अधिकांशतः 10 से 25 वर्ष की आयु के युवाओं को प्रभावित करता है।
कम लागत, सरल संचालन और स्मार्टफोन कनेक्टिविटी
यह डिवाइस पारंपरिक डायग्नोस्टिक किट की तुलना में काफी सस्ता, पोर्टेबल और बिना लेबोरेटरी इन्फ्रास्ट्रक्चर के काम करने में सक्षम है। महंगे रिएजेंट्स, बड़े बायो-एनालाइज़र या प्रशिक्षित टेक्नीशियनों की ज़रूरत नहीं होती, जिससे यह छोटे कस्बों, गांवों और दूरदराज के इलाकों में भी कैंसर की जल्दी पहचान को संभव बनाता है।
इस सेंसर को स्मार्टफोन या टैबलेट से जोड़ा जा सकता है और इसमें लगे विशेष ऐप की मदद से केवल कुछ मिनटों में नतीजे प्राप्त किए जा सकते हैं। इस तकनीक को ‘यूज़र फ्रेंडली’ बनाया गया है ताकि किसी भी आशा कार्यकर्ता, नर्स या स्कूल हेल्थ वर्कर द्वारा इसका इस्तेमाल किया जा सके।
इसके ट्रायल संस्करण को वाराणसी और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में 300 बच्चों पर परीक्षण किया गया, जिसमें इसने 92% से अधिक संवेदनशीलता और 89% विशिष्टता (specificity) के साथ परिणाम दिए। इससे यह उम्मीद की जा रही है कि इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और आयुष्मान भारत योजना से भी जोड़ा जा सकता है।
“Make in India” और Precision Medicine की दिशा में मजबूत कदम
यह डिवाइस ‘मेक इन इंडिया’ के दृष्टिकोण को न केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता से जोड़ता है, बल्कि Precision Medicine—यानी हर व्यक्ति की विशिष्ट जैविक स्थिति के अनुसार इलाज की ओर भारत का पहला ठोस कदम भी है।
IIT-BHU ने इसका डिजाइन, विकास और प्रोटोटाइप निर्माण पूरी तरह अपने परिसर में किया है, और अब इसे MSME आधारित स्टार्टअप के सहयोग से बड़े पैमाने पर उत्पादन की योजना भी बनाई जा रही है। इससे रोजगार और नवाचार दोनों को बढ़ावा मिलेगा।
विश्व कैंसर दिवस 2025 के मौके पर यह डिवाइस राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (NMC) और भारतीय बाल स्वास्थ्य संघ (IAP) के समक्ष भी प्रस्तुत किया गया, जहाँ विशेषज्ञों ने इसे “क्रांतिकारी खोज” बताया। यह डिवाइस यदि सरकारी योजनाओं से जुड़ता है तो भारत जैसे देश में लाखों बच्चों की जान बचाने वाला यंत्र साबित हो सकता है।
IIT-BHU की यह खोज दिखाती है कि जब विज्ञान मानवीय संवेदना के साथ जुड़ता है, तो वह सिर्फ प्रयोगशाला में नहीं, जीवन के सबसे कठिन मोड़ों पर भी रोशनी बन जाता है।