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सुन भई जनादेश चोर संस्था… जब हालात बदलेंगे तो तेरा क्या होगा ठाकुर?

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नई दिल्ली 16 अक्टूबर 2025

अब बस बहुत हो गया। जनता अब तेरा मौन नहीं, जवाब चाहती है। तू जो लोकतंत्र का रखवाला बन बैठा है, वही आज उसकी रीढ़ तोड़ने में लगा है। जनता को नैतिकता का पाठ पढ़ाने से पहले ज़रा अपने चेहरे का नकाब उतार और देख, तेरा गिरेबान कितना दाग़दार हो चुका है। अदालत ने चेताया, पर तूने सुना नहीं। सबूत सामने हैं — सत्तासुख के लिए तूने जनादेश से खेल किया, 67 लाख नाम काट दिए, 33 लाख जोड़ दिए, और फिर प्रेस नोट निकालकर खुद को संत घोषित कर लिया। ये कोई गलती नहीं थी, ये योजना थी — सधे हुए हाथों से लोकतंत्र की नसें काटने की, एक ऐसी सुनियोजित साज़िश जिसमें प्रक्रिया के नाम पर करोड़ों लोगों के संवैधानिक अधिकार को चुपचाप छीन लिया गया।

 तू कहता है, “मौन अवधि” रखो — लेकिन असल मौन तो तू खुद बन गया है। जनता से बात करने, सवालों का जवाब देने, जिम्मेदारी लेने में तेरी जुबान क्यों बंद हो जाती है? प्रेस कॉन्फ्रेंस में शब्द बड़े भारी होते हैं, लेकिन सच्चाई के वक्त तू फाइलों में गुम हो जाता है। ये वही “संतुलन” है जो सत्ता के तराजू पर तौला जाता है। एक ओर जनता की आवाज़, दूसरी ओर ताकतवरों का इशारा — और तू हमेशा झुकता है वहीं, जहाँ सत्ता मुस्कुराती है, एक स्पष्ट संकेत देते हुए कि तेरी निष्पक्षता अब सत्ता की चाकरी में बदल चुकी है।

तूने तकनीक के नाम पर धोखा किया है। वो कंप्यूटर सिस्टम, वो वोटर लिस्ट, वो डेटा जो जनता के अधिकार की गारंटी था — अब सत्ता का औज़ार बन गया है। अब वोटर कार्ड नहीं, आदेश चलता है। अब जनता नहीं तय करती कि कौन जीतेगा, तेरे सर्वर तय करते हैं। और जब सवाल पूछा जाए, तो तू कागज़ दिखाता है, “सब प्रक्रिया के अनुसार हुआ है।” ये प्रक्रिया नहीं, प्रक्रिया के नाम पर लूट है, एक ऐसी डिजिटल धांधली जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांत को ही खोखला कर रही है। 

कभी अपने दफ्तर की दीवारों से बाहर निकल, गाँव-कस्बों में जा — जहां लोग अपने नाम के लिए घंटों लाइन में खड़े हैं, लेकिन उनकी पहचान सिस्टम से मिटा दी गई है। वो औरत जो पहली बार वोट देने गई थी, उसे बोला गया — “नाम कट चुका है।” वो बूढ़ा किसान जो हमेशा “लोकतंत्र” की ताकत में विश्वास रखता था, अब कहता है — “सब पहले से तय है।” ये तेरे मौन आदेशों का नतीजा है, उन लाखों लोगों का विश्वासघात है जो तुझे लोकतंत्र की आखिरी उम्मीद मानते थे।

और अब तू दूसरों पर सवाल उठा रहा है? सोशल मीडिया पर नजर रखेगा? बल्क SMS पर सख्ती दिखाएगा? पहले अपनी फाइलों पर नज़र डाल! तू खुद जनादेश का सबसे बड़ा अपराधी बन चुका है। लोकतंत्र के मंदिर में सबसे बड़ी चोरी तूने ही की है — वोट की चोरी। और अब जब जनता जागने लगी है, तो तू नसीहतों का नया ढोल पीट रहा है — “आचार संहिता,” “मौन अवधि,” “सख्त निगरानी।” 

सुन भाई जनादेश चोर संस्था — जब हालात बदलेंगे, जब जनता तुझे तेरे ही रिकॉर्ड से बेनकाब करेगी, तब क्या करेगा तू? कौन बचाएगा तुझे तब? जब वही मतदाता जिसे तूने लिस्ट से काटा, वही नागरिक तुझसे हिसाब मांगेगा — जब सड़कों पर ये सवाल गूंजेगा कि “67 लाख नाम क्यों काटे गए?” जब अदालत पूछेगी कि “किसने आदेश दिया?” जब फाइलें खोली जाएंगी और “प्रक्रिया” की असलियत सामने आएगी, तो तेरा क्या होगा ठाकुर? जनता अब डरती नहीं है, अब पूछती है। वो जानती है कि लोकतंत्र की हत्या किसी तानाशाह ने नहीं की — वो हुई तेरे दफ्तरों के भीतर, तेरे कंप्यूटरों की क्लिक से, तेरे “मौन आदेशों” से। अब वक़्त दूर नहीं जब जनता का जवाब भी आएगा — और याद रख, उस दिन न कोई नोटिस चलेगा, न कोई स्पष्टीकरण। फैसला जनता करेगी — खुले में, वोट से, आवाज़ से, और इतिहास में तेरे नाम के आगे सिर्फ एक शब्द लिखा जाएगा — “जनादेश चोर।”