भारत की शतरंज यात्रा कभी एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती थी — विश्वनाथन आनंद। लेकिन अब यह यात्रा एक पूरे आंदोलन में बदल चुकी है। 21वीं सदी के दूसरे दशक के उत्तरार्ध में, भारत ने जिस चुपचाप क्रांति को जन्म दिया था, वह अब 2025 में पूरी दुनिया के सामने एक वैश्विक बौद्धिक सत्ता के रूप में स्थापित हो चुकी है। आनंद के बाद भारतीय शतरंज को लेकर जो शंका व्यक्त की जाती थी – कि “क्या अगली पीढ़ी उस ऊंचाई तक पहुँचेगी?” – वह अब पूरी तरह शांत हो चुकी है।
भारतीय शतरंज के नए महारथी डॉममाराजू गुकेश ने जब दिसंबर 2024 में विश्व शतरंज चैंपियनशिप जीतकर इतिहास रचा, तो यह सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं थी – यह पूरे राष्ट्र के लिए एक बौद्धिक पुनर्जागरण का क्षण था। मात्र 17 वर्ष की उम्र में वह सबसे युवा विश्व चैंपियन बन गए। उन्होंने न केवल पूर्व चैंपियन डिंग लिरेन को हराया, बल्कि अपनी सटीकता, समय प्रबंधन और संयम के बल पर यह दिखा दिया कि भारत अब सिर्फ प्रतिभा नहीं, परिणाम भी पैदा कर सकता है। आनंद की शैली में खेलने वाले गुकेश के भीतर रणनीति की गहराई और मानसिक दृढ़ता की वह छाया दिखती है, जो किसी महान वंश की परंपरा से ही आती है।
पर भारत की यह नई सत्ता सिर्फ गुकेश तक सीमित नहीं है। अर्जुन एरिगैसी, आर. प्रज्ञानानंद, निहाल सरीन, और अरविंद चितांबरम जैसे खिलाड़ी दुनिया के टॉप 20 ग्रैंडमास्टर्स में शामिल हो चुके हैं। अर्जुन, जिन्होंने हाल ही में 2800 रेटिंग क्लब में प्रवेश किया, भारत के पहले ऐसे खिलाड़ी बने जो आनंद के बाद इस विशिष्ट क्लब में पहुंचे। उनकी खेल शैली में आधुनिक शतरंज का साहस और जोखिम लेने की क्षमता स्पष्ट झलकती है। वहीं प्रज्ञानानंद, जिनकी चालों में सटीकता के साथ-साथ मौलिकता है, वे आज विश्व स्तर पर कार्लसन जैसे चैंपियनों को चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने 2025 के “उज़बेक मास्टर्स” में खिताब जीतकर यह साबित किया कि अब भारत से प्रतिस्पर्धा की नहीं, बादशाहत की अपेक्षा की जानी चाहिए।
भारतीय महिला शतरंज ने भी इस परिवर्तन में पीछे नहीं छोड़ा। वैशाली रमेशबाबू, प्रज्ञानानंद की बहन, इस वर्ष ग्रैंडमास्टर बनीं और महिला वर्ग में भारत को टॉप 10 की ओर ले जा रही हैं। इसके अलावा कोनेरू हम्पी और डी. हरिका जैसे अनुभवी सितारे अभी भी टीम इंडिया के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। 2025 में भारत ने FIDE महिला टीम चैंपियनशिप में फाइनल तक का सफर तय किया, जो एक और संकेत है कि भारत शतरंज की हर शाखा में अब टॉप पर है – पुरुष, महिला और जूनियर, सभी में।
इन उपलब्धियों के पीछे सिर्फ खिलाड़ियों का ही नहीं, बल्कि भारत की शतरंज अकादमियों, सरकारी सहयोग, कोचिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और परिवारों की बदलती सोच का भी बड़ा हाथ है। ‘शतरंज ओलंपियाड 2022’ की मेज़बानी, स्कूलों में शतरंज को विषय के रूप में शामिल करने की पहल और निजी स्तर पर चल रहे ग्रासरूट प्रशिक्षण कार्यक्रमों ने शतरंज को समाज के हर वर्ग तक पहुँचाया है। अब खिलाड़ी सिर्फ चेन्नई या हैदराबाद से ही नहीं, बल्कि महाराष्ट्र, उड़ीसा, असम और मणिपुर तक से निकल रहे हैं।
आज जब कोई बच्चा भारत में बिसात पर पहली चाल चलता है, तो उसका सपना सिर्फ राज्य स्तरीय ट्रॉफी तक सीमित नहीं रहता। वह अब जानता है कि विश्वविजय भी संभव है। भारत का शतरंज अब एक आंदोलन है — बुद्धि और संतुलन का वह संगम जो देश को वैश्विक मंच पर नेतृत्व दिला रहा है।
और यह सब उस खिलाड़ी की विरासत से संभव हुआ जिसे आज भी भारत “शतरंज का सम्राट” कहता है — विश्वनाथन आनंद। पर अब उनकी विरासत सिर्फ उनकी नहीं रही। अब यह एक पीढ़ी की ताक़त है, जो हर चाल में देश का भविष्य बुन रही है।
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