4 अप्रैल 2025 | नई दिल्ली
भारत की संसदीय व्यवस्था में शुक्रवार का दिन इतिहास में दर्ज हो गया, जब वर्षों से बहस और विवादों में उलझा वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 आखिरकार संसद के दोनों सदनों से बहुमत के साथ पारित हो गया। लोकसभा में पहले से ही इस विधेयक को मंजूरी मिल चुकी थी, और अब राज्यसभा ने भी सरकार के पक्ष में वोट देकर इसे कानून बनने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा दिया। अब यह विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के इंतजार में है, जिसके बाद यह औपचारिक रूप से वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 बन जाएगा। यह केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि मुस्लिम समाज में पारदर्शिता, जवाबदेही और न्याय के एक नए युग की शुरुआत मानी जा रही है।
राज्यसभा में पेश किए गए इस विधेयक पर जबरदस्त बहस हुई। पक्ष और विपक्ष के बीच वैचारिक मतभेद साफ झलकते रहे, लेकिन अंततः 128 सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया जबकि 95 ने इसका विरोध किया। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू ने बहस का उत्तर देते हुए स्पष्ट किया कि यह कानून किसी के धार्मिक अधिकारों को छीनने या वक्फ की स्वायत्तता को कमजोर करने के लिए नहीं लाया गया है, बल्कि यह वक्फ संपत्तियों को माफ़िया, भ्रष्टाचार और अराजक तत्वों से मुक्त करने की दिशा में एक निर्णायक सुधार है। उन्होंने यह भी बताया कि संशोधित विधेयक में डिजिटलीकरण, संपत्तियों की पारदर्शी निगरानी, वित्तीय ऑडिट, महिला और पेशेवरों की भागीदारी, तथा विवाद निपटान के लिए ट्रिब्यूनल से लेकर उच्च न्यायालय तक स्पष्ट व्यवस्था की गई है।
इस विधेयक का नामकरण अब “UMEED – Unified Waqf Management, Empowerment, Efficiency and Development Act” के रूप में हुआ है। इसका मूल उद्देश्य देशभर की वक्फ संपत्तियों को एक केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाकर हर संपत्ति की पहचान, उपयोग और लाभार्थियों तक पहुंच सुनिश्चित करना है। यह कानून वक्फ संपत्तियों के स्वामित्व विवादों को रोकने, उनके सामाजिक उपयोग को स्पष्ट करने और उन संपत्तियों की आय को अनाथों, विधवाओं, गरीब छात्रों और पिछड़े तबकों के कल्याण में लगाने के लिए एक संरचित ढांचा तैयार करता है।
हालांकि विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय दलों ने इस विधेयक का यह कहकर विरोध किया कि इसमें वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम प्रतिनिधियों को शामिल करने और “वक्फ-बाय-यूज़र” सिद्धांत को खत्म करने से मुस्लिम धार्मिक स्वायत्तता को खतरा है। विपक्ष ने इसे “मुसलमानों की जमीन पर राज्य का हस्तक्षेप” बताया और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात भी कही। लेकिन सरकार का रुख स्पष्ट था कि यह कानून किसी धर्म के खिलाफ नहीं बल्कि देश के संविधान और न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप एक सुधारात्मक प्रयास है।
यह भी उल्लेखनीय है कि वक्फ अधिनियम को पारित करवाने के लिए सरकार ने सिर्फ संसदीय रणनीति ही नहीं, बल्कि देशभर में 5000 से ज्यादा वक्फ संवाद सभाएं, सेमिनार, ऑनलाइन मीटिंग्स और मुस्लिम समाज के साथ निरंतर संवाद चलाकर व्यापक समर्थन तैयार किया। JPC यानी संयुक्त संसदीय समिति को प्राप्त सुझावों में से कई बिंदु जैसे—महिला प्रतिनिधित्व, सामाजिक ऑडिट, डिजिटल मैपिंग और संपत्ति विवाद समाधान तंत्र—को इस कानून में शामिल किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार ने इसे एक सहभागी विधेयक के रूप में तैयार किया है।
4 अप्रैल 2025 को संसद के दोनों सदनों से पारित यह वक्फ संशोधन विधेयक भारतीय लोकतंत्र की ताकत, विविधता और न्याय की भावना का प्रतीक बन गया है। यह कानून केवल वक्फ संपत्तियों की निगरानी का उपकरण नहीं, बल्कि यह वंचित मुसलमानों के सशक्तिकरण और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की एक बड़ी योजना का हिस्सा है। अब सारी निगाहें राष्ट्रपति की मंजूरी पर हैं—जिसके साथ ही यह ऐतिहासिक विधेयक अधिनियम बन जाएगा और भारत में वक्फ की तस्वीर हमेशा के लिए बदल जाएगी।