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रेप स्टेट बनता पश्चिम बंगाल: अपराध, असुरक्षा और एक महिला मुख्यमंत्री की चुप्पी

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भय और रक्त से लथपथ बंगाल: क्या यह भारत का नया रेप कैपिटल बन चुका है?

पश्चिम बंगाल, जिसे कभी सांस्कृतिक चेतना और बौद्धिकता की राजधानी कहा जाता था, आज भय, अपराध और महिलाओं के खिलाफ जघन्य यौन हिंसा की घटनाओं से बदनाम होता जा रहा है। ममता सरकार खुद को ‘जननी सुरक्षा’ और ‘कन्याश्री’ जैसी योजनाओं का वाहक बताती है, जबकि ज़मीनी हकीकत यह है कि बंगाल की सड़कें, हॉस्टल, अस्पताल और यहां तक कि घर तक महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे जघन्य अपराधों की बढ़ती संख्या ने इस प्रदेश को उस बदनामी के गड्ढे में धकेल दिया है जहाँ से बाहर निकलना मुश्किल होता जा रहा है। ये घटनाएं केवल आंकड़े नहीं, बल्कि एक-एक कर बिखरती हुई जिंदगी की करुण कहानियाँ हैं।

7 महीने की मासूम भी नहीं बची: मानवता को शर्मसार करने वाला कोलकाता कांड

मानवता तब सिसक उठती है जब किसी 7 महीने की अबोध बच्ची के साथ दरिंदगी होती है। कोलकाता में 2024 की इस घटना ने समूचे समाज की आत्मा को झकझोर दिया। एक पाशविक मानसिकता का व्यक्ति बच्ची को उसकी माँ की गोद से उठाकर उसके साथ बलात्कार करता है, और फिर उसे मारने की कोशिश करता है। अदालत ने उसे फांसी की सजा दी, लेकिन क्या उस बच्ची के माता-पिता की पीड़ा कम हुई? क्या वे उस चीख को भूल पाएंगे जो उनकी मासूम बच्ची ने निकाली थी? यह घटना बंगाल में स्त्रियों की नहीं, बल्कि मासूम बच्चियों की भी भयावह असुरक्षा का प्रमाण है। जब एक महिला मुख्यमंत्री के राज्य में मासूम तक सुरक्षित न हों, तो यह केवल प्रशासन की नहीं, पूरी राज्य व्यवस्था की हार है।

IIM कलकत्ता में रेप: नामी संस्थानों की दीवारें भी अब सुरक्षित नहीं

भारत के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक IIM कलकत्ता, जहाँ युवा अपने सपनों को आकार देने आते हैं, वहां अब भय और शर्मिंदगी की कहानियाँ जन्म ले रही हैं। हालिया घटना में एक छात्रा के साथ बॉयज हॉस्टल में बलात्कार हुआ। आरोपी ने “काउंसलिंग” के नाम पर छात्रा को बुलाया और फिर उस विश्वास को रौंद दिया जो शैक्षणिक संस्थानों पर होता है। यह घटना न केवल शैक्षणिक परिसर की असुरक्षा को दर्शाती है, बल्कि उस व्यवस्था की पोल खोलती है जो केवल हाई-प्रोफाइल छवि बनाए रखने में रुचि रखती है, लेकिन आंतरिक सड़ांध की सफाई नहीं करती। जब लड़कियां IIM जैसे संस्थानों में भी सुरक्षित नहीं हैं, तब माँ-बाप का विश्वास और उम्मीदें दोनों चकनाचूर हो जाते हैं।

कोलकाता रेप-मर्डर केस: राजनीति और कानून व्यवस्था की नाकामी

कोलकाता में एक युवती के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी जाती है, और राज्य की मुख्यमंत्री इस पर मौन साध लेती हैं। क्या यह उस सत्ता का उदाहरण नहीं है जो संवेदना से कोसों दूर है? इस मामले में न केवल प्रशासन ने देर से कार्रवाई की, बल्कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे साजिश बताकर अपराधियों से ध्यान भटकाने की कोशिश की। क्या किसी युवती का बलात्कार और हत्या साजिश है? क्या एक महिला के चीरहरण को राजनीतिक बयानबाज़ी से ढकने की कोशिश करना सभ्य शासन की निशानी है? नहीं, यह उस अमानवीय शासन व्यवस्था का प्रतीक है जो इंसानियत से कट चुकी है।

कुलतली कांड: दरिंदगी की सारी हदें पार

साउथ 24 परगना के कुलतली में जो हुआ, वह केवल एक लड़की की हत्या नहीं, बल्कि पूरे समाज की आत्मा पर किया गया हमला था। एक 14 वर्षीय बच्ची को अगवा कर सामूहिक बलात्कार किया गया, फिर उसकी हत्या कर शव को जंगल में फेंक दिया गया। अदालत ने दोषियों को फांसी की सजा दी, लेकिन यह न्याय देर से मिला और तब मिला जब मीडिया और जनता ने लगातार दबाव डाला। पुलिस शुरुआत में असहाय दिखी, FIR में देरी की गई, और सबूतों के साथ खिलवाड़ करने की कोशिशें हुईं। यह स्पष्ट करता है कि बंगाल का कानून तंत्र बिना राजनीतिक दबाव के निष्पक्ष नहीं रह गया है।

आंकड़े बोलते हैं: बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध में खतरनाक उछाल

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 2023 तक महिलाओं के खिलाफ अपराधों में लगातार उछाल आया है। बलात्कार, अपहरण, यौन उत्पीड़न, एसिड अटैक जैसी घटनाओं में वर्ष दर वर्ष बढ़ोतरी हो रही है। 2023 में राज्य में 1600 से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज किए गए, जो कि रिपोर्टेड मामलों की संख्या है। सच्चाई इससे कहीं अधिक भयावह है क्योंकि कई पीड़िताएं सामाजिक बदनामी या पुलिस की निष्क्रियता के कारण रिपोर्ट दर्ज नहीं करवा पातीं।

महिला मुख्यमंत्री, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा पर सन्नाटा क्यों?

जब एक राज्य की मुखिया स्वयं महिला हो, तो अपेक्षा रहती है कि महिला सुरक्षा पर वह ज़्यादा संवेदनशील होंगी। लेकिन ममता बनर्जी के नेतृत्व में बंगाल में महिलाओं की असुरक्षा चरम पर है। हर बलात्कार कांड के बाद उनका पहला बयान या तो ‘यह विपक्ष की साजिश है’ होता है या ‘मीडिया बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहा है’। यह रवैया केवल गैर-जिम्मेदाराना नहीं, बल्कि अपमानजनक है। जिस पद की शपथ उन्होंने ली है, वह उन्हें हर बंगालवासी की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी देता है। लेकिन वे जब पीड़िताओं को अपमानित करती हैं या चुप रहती हैं, तो यह दर्शाता है कि राजनीति उनके लिए मानवता से ऊपर है।

घुसपैठ, तुष्टिकरण और अपराध: त्रिकोणीय संकट

राज्य में लंबे समय से यह आरोप लगते रहे हैं कि ममता सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाकर उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती रही है। भाजपा सांसद राजू बिस्ता के बयान के अनुसार, यही घुसपैठिए अब राज्य में अपराधों को अंजाम दे रहे हैं और प्रशासन राजनीतिक तुष्टिकरण के कारण कार्रवाई नहीं करता। यह स्थिति केवल कानून व्यवस्था की नहीं, बल्कि राष्ट्र की अखंडता की भी चिंता का विषय बन चुकी है। जब राजनीति अपराधियों की ढाल बन जाए, तब समाज बर्बादी की ओर बढ़ता है।

गैंगरेप केस में मिली सरकारी ढील: बलात्कारी नहीं डरते

कोलकाता में हाल ही में हुए एक गैंगरेप कांड में एक युवती के साथ तीन लोगों ने बलात्कार किया, जिनमें से एक आरोपी था और दो ‘मददगार’। कानून की धज्जियाँ तब उड़ गईं जब तीनों को समान रूप से बेल मिल गई। इस घटना ने दिखा दिया कि बंगाल में बलात्कार केवल एक अपराध नहीं, बल्कि एक सांस्थानिक विफलता है, जहाँ बलात्कारी जानते हैं कि उन्हें जल्दी ही कानूनी राहत मिल जाएगी। इस प्रकार की ढील अपराधियों को निडर बनाती है और पीड़ितों को जीवन भर के मानसिक कारावास में झोंक देती है।

डॉक्टर, छात्राएं, बच्चे: कोई सुरक्षित नहीं

पश्चिम बंगाल में अब हर वर्ग की महिलाएं असुरक्षित हैं — डॉक्टर, नर्स, छात्राएं, प्रोफेसर, और छोटे बच्चे तक। अस्पतालों में कार्यरत महिला स्टाफ को भी यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है और जब वे शिकायत दर्ज कराती हैं तो उन्हें ‘छवि खराब करने’ का दोषी ठहराया जाता है। यह सिर्फ सुरक्षा की विफलता नहीं, बल्कि एक ऐसा माहौल है जहाँ महिला होना ही अपराध बन गया है। यह प्रशासन के चरमराते चरित्र का एक और उदाहरण है।

‘रेप कल्चर’ को जन्म देती प्रशासनिक नपुंसकता

जब अपराधियों को सजा नहीं मिलती, जब पीड़िताओं को ही दोषी ठहराया जाता है, जब FIR दर्ज करने में पुलिस आनाकानी करती है — तो एक भयावह ‘रेप कल्चर’ जन्म लेता है। यह कल्चर केवल अपराधियों की जीत नहीं, बल्कि समाज की हार होती है। पश्चिम बंगाल में यही हो रहा है। यहां प्रशासनिक नपुंसकता इतनी गहरी हो चुकी है कि जनता अब कानून से नहीं, भगवान से उम्मीद करने लगी है। ऐसी व्यवस्था में नागरिकों का भरोसा टूटता है, और एक सभ्य समाज के मूलभूत सिद्धांत तार-तार हो जाते हैं।

मीडिया की भूमिका: दबाए नहीं, उगले सच

गिने चुने चंद मीडिया संगठनों ने जब यह तय किया कि वे इन अपराधों को उजागर करेंगे, तब राज्य सरकार की किरकिरी होने लगी। लेकिन इन्हीं खबरों ने पीड़िताओं को आवाज़ दी। पत्रकारों को धमकियाँ मिलीं, सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। यह दर्शाता है कि जब सरकार चुप हो जाए, तब पत्रकारिता ही लोकतंत्र की अंतिम दीवार बनती है। ऐसे मीडिया संस्थानों को लोकतंत्र का रक्षक कहा जाना कोई अतिशयोक्ति नहीं।

समाधान क्या है? कानून, नैतिक साहस और राजनीतिक इच्छाशक्ति

पश्चिम बंगाल को इस दलदल से निकालना है तो केवल फांसी या पुलिस की संख्या बढ़ाने से काम नहीं चलेगा। राजनीतिक इच्छाशक्ति, नैतिक नेतृत्व, तुष्टिकरण की समाप्ति और प्रशासनिक सुधार — यही वे चार स्तंभ हैं जिनसे एक सुरक्षित समाज का निर्माण संभव है। घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बाहर किया जाए, पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त किया जाए, और हर जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना हो। सबसे जरूरी यह है कि मुख्यमंत्री स्वयं पीड़िताओं से मिलें, उन्हें इंसाफ का भरोसा दें और अपराधियों को किसी भी हाल में न बख्शें।

बंगाल का ममता से मोहभंग?

आज बंगाल की जनता सड़कों पर है, लेकिन सरकार सत्ता के गलियारों में खोई हुई है। ममता बनर्जी एक समय महिला सशक्तिकरण की प्रतीक मानी जाती थीं, लेकिन आज वही प्रतीक असंवेदनशीलता का पर्याय बन चुकी हैं। क्या यह वही बंगाल है जहाँ दुर्गा की पूजा होती है, लेकिन महिलाओं की अस्मिता हर रोज़ रौंदी जाती है? क्या यह वही भूमि है जहाँ रवींद्रनाथ और नेताजी ने न्याय, नैतिकता और स्वतंत्रता का सपना देखा था? यह सवाल अब हर भारतीय को पूछना होगा — क्या हम एक ऐसे राज्य को स्वीकार कर सकते हैं जो ‘रेप स्टेट’ के रूप में बदनाम हो रहा है? अगर नहीं, तो समय आ गया है कि जनता खुद न्याय की मशाल उठाए और उस सत्ता को उखाड़ फेंके जो उन्हें सुरक्षा देने में विफल रही है।

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