Home » Opinion » राष्ट्रीय सुरक्षा — भारत की अस्मिता, अखंडता और अस्तित्व की अंतिम रेखा

राष्ट्रीय सुरक्षा — भारत की अस्मिता, अखंडता और अस्तित्व की अंतिम रेखा

Facebook
WhatsApp
X
Telegram

भूमिका: राष्ट्रीय सुरक्षा कोई विभाग नहीं, यह राष्ट्र की आत्मा है

भारत एक उदार, बहुलतावादी, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है — लेकिन यह सब तब तक सुरक्षित है, जब तक इसकी राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत और सतर्क है। राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सीमा पर सेना की तैनाती या युद्ध की तैयारियों तक सीमित नहीं है; यह एक समग्र सुरक्षा अवधारणा है जिसमें भौगोलिक सीमाओं की रक्षा, आंतरिक शांति, सामाजिक ताने-बाने की अखंडता, सूचना युद्ध, साइबर-सुरक्षा, और वैचारिक-सांस्कृतिक हमलों से निपटने की व्यापक व्यवस्था होती है। यदि किसी राष्ट्र की आत्मा पर हमला करना है, तो पहले उसकी सुरक्षा की रीढ़ को कमजोर किया जाता है — और दुर्भाग्य से भारत के विरुद्ध पिछले कुछ दशकों में यही रणनीति अपनाई गई है।

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा आज तीन मोर्चों पर चुनौती का सामना कर रही है:

  1. सीमाओं से जुड़े बाहरी खतरे (External Threats)
  1. आंतरिक विघटनकारी तत्व (Internal Subversion)
  1. हाइब्रिड वारफेयर और वैचारिक युद्ध (Ideological & Cyber Threats)

इन तीनों मोर्चों पर यदि हम एक-एक कर गंभीर दृष्टिकोण से चर्चा करें, तो भारत की सुरक्षा की असली चुनौतियाँ स्पष्ट रूप से सामने आती हैं।

बाहरी खतरे: पड़ोसी नहीं, विस्तारवादी और आतंक प्रायोजक राष्ट्र हैं

भारत की सीमा पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल और भूटान जैसे देशों से लगती है। इनमें से दो राष्ट्र — पाकिस्तान और चीन — भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक, जटिल और खतरनाक चुनौती बने हुए हैं।

पाकिस्तान, एक असफल राष्ट्र होते हुए भी अपनी विदेश नीति का आधार भारत-विरोध पर रखता है। उसकी फौज और ISI भारत के विरुद्ध आतंकवाद, घुसपैठ, ड्रग तस्करी और स्लीपर सेल के माध्यम से ‘सौ जख्म देने की नीति’ पर चलती हैं। 26/11, उरी, पठानकोट, पुलवामा जैसे हमले उसकी खुली रणनीति के प्रमाण हैं। इसके साथ ही वह भारत में बैठे कट्टरपंथी तत्वों, NGO फ्रंट्स, धार्मिक संगठनों और जिहादी नैरेटिव को पोषित करता है।

चीन का खतरा उससे भी अधिक गूढ़ और बहुआयामी है। वह भारत की सीमा पर लगातार अतिक्रमण करता है, अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में ‘सलामी स्लाइसिंग’ नीति अपनाता है, आर्थिक मोर्चे पर भारत को सस्ते उत्पादों से भरकर निर्भरता की जंजीर में बांधता है, और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए डेटा संग्रहण और साइबर युद्ध चलाता है। 2020 की गलवान घाटी की घटना ने यह स्पष्ट कर दिया कि चीन, भारत की भूराजनीतिक स्थिरता के लिए विश्वसनीय मित्र नहीं, बल्कि एक अस्थायी शांति का छलावा है।

आंतरिक खतरे: राष्ट्र के भीतर छिपा गद्दार, सीमा पर खड़े दुश्मन से ज्यादा खतरनाक

किसी भी राष्ट्र की असली परीक्षा तब होती है जब उसके भीतर ही विघटनकारी विचारधारा, सामाजिक विद्वेष और वैचारिक जहर फैलाने वाले समूह सक्रिय हो जाते हैं। भारत में वामपंथी-इस्लामवादी गठजोड़, अर्बन नक्सल नेटवर्क, रोहिंग्या घुसपैठिए, PFI जैसे कट्टरपंथी संगठन, माओवाद, और अलगाववादी आंदोलन — सभी भारत की आंतरिक सुरक्षा को खोखला करने की साजिश का हिस्सा हैं।

‘लैंड जिहाद’, ‘लव जिहाद’, जनसंख्या जिहाद’ और ‘वक्फ जिहाद’ जैसे नवीनतम रणनीतिक हथियारों के माध्यम से सीमावर्ती और सांस्कृतिक क्षेत्रों में बहुसंख्यक समुदाय का विस्थापन किया जा रहा है। यह केवल जनसंख्या का मुद्दा नहीं, बल्कि जमीन और सांस्कृतिक प्रभुत्व का युद्ध है। इसी तरह घुसपैठियों को मतदाता बना कर, देश के लोकतंत्र को दूषित किया जा रहा है।

इसके अलावा, राष्ट्र विरोधी नरेटिव चलाने वाले फेक न्यूज़ पोर्टल्स, तथाकथित एक्टिविस्ट्स, और प्रायोजित छात्र आंदोलन — सभी आंतरिक अस्थिरता फैलाकर भारत को कमजोर करने में लगे हैं। आज़ादी गैंग, टुकड़े-टुकड़े गैंग, और जिहादी प्रचारकों को यदि सामाजिक न्याय के नाम पर खुला मंच मिलता रहेगा, तो सुरक्षा केवल हथियारों से नहीं टिकेगी।

हाइब्रिड युद्ध और वैचारिक आक्रमण: आज की सबसे खतरनाक युद्ध शैली

21वीं सदी में युद्ध केवल सीमा पर नहीं, बल्कि सोशल मीडिया, व्हाट्सएप ग्रुप, टीवी डिबेट, डिजिटल ट्रैकिंग, और मानसिक युद्ध (Mind Warfare) के माध्यम से लड़ा जा रहा है। भारत पर यह युद्ध बहुत गहराई से चल रहा है।

फेक नैरेटिव्स, जैसे कि “मुसलमान असुरक्षित हैं”, “संविधान खतरे में है”, “CAA नागरिकता छीनता है”, “हिंदुत्व फासीवाद है” — यह सब भारत की धार्मिक एकता को तोड़ने, जनमानस को भ्रमित करने और युवाओं को भ्रम की जंजीरों में बाँधने की युद्ध-नीति है। यह युद्ध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में राष्ट्र की नींव पर प्रहार करता है।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण सोशल मीडिया पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और अन्य कट्टरपंथी संगठनों की ‘मीडिया सेल’ है, जो योजना बनाकर हर घटना को साम्प्रदायिक रंग देती है, बहुसंख्यक समाज को अपमानित करती है, और अल्पसंख्यकों को ‘विक्टिम’ बनाकर उकसाती है।

रक्षा नीति और समाज दोनों को चाहिए जागरूकता व सशक्तिकरण

भारत की सुरक्षा व्यवस्था को अब केवल सैन्य बलों तक सीमित नहीं रखा जा सकता। हमें चाहिए कि साइबर कमांड, सामाजिक इंटेलिजेंस नेटवर्क, न्यायिक-सुरक्षा समन्वय, और राष्ट्रीय सुरक्षा शिक्षा नीति को स्कूलों व विश्वविद्यालयों में लागू किया जाए। जनसंख्या असंतुलन, धार्मिक कट्टरता, धर्म आधारित राजनीति, और NGO फंडिंग जैसे विषयों पर सख्त कानून और सामाजिक जागरूकता दोनों की आवश्यकता है।

हर भारतीय को यह समझना होगा कि राष्ट्रद्रोह केवल बंदूक उठाकर नहीं होता — राष्ट्रद्रोह वह भी है जब कोई समाज अपनी संस्कृति, पहचान, एकता और सुरक्षा के खिलाफ मौन हो जाता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा — केवल सरकार की नहीं, समाज की भी सामूहिक जिम्मेदारी

भारत को आज एक समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की आवश्यकता है जो सिर्फ सीमा नहीं, बल्कि समाज, संस्कृति, विचार और डेटा की भी रक्षा करे। भारत की आंतरिक एकता, सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक समरसता को यदि हमने संरक्षित नहीं किया, तो दुनिया की सबसे बड़ी सेना भी हमें स्थायी शांति नहीं दे सकती।

राष्ट्र की सुरक्षा केवल एक सैनिक की जिम्मेदारी नहीं — वह हर नागरिक का कर्तव्य है। यदि हम चाहते हैं कि भारत विश्वगुरु बने, तो पहले उसे अपना घर सुरक्षित, शांत और सशक्त बनाना होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा के बिना कोई संविधान नहीं टिकता, कोई लोकतंत्र नहीं चलता, और कोई समाज जीवित नहीं रहता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *