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“मूड स्विंग: जब भावनाएं बदलती हैं बिना चेतावनी के – कारण, असर और समाधान”

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मूड स्विंग क्या है: मन का अचानक बदल जाना, पर क्यों?

मूड स्विंग यानी मूड का अचानक अच्छा से खराब या खराब से अच्छा हो जाना — कभी-कभी बिना किसी स्पष्ट वजह के। हम सभी जीवन में इस भावना से गुजरते हैं: सुबह किसी की एक बात बहुत अच्छी लगती है, लेकिन शाम को वही बात चुभने लगती है। मूड स्विंग्स को अक्सर लोग “बेवजह का नखरा” या “कमजोरी” मानते हैं, जबकि असल में यह हमारे दिमाग की केमिस्ट्री, शरीर के हार्मोन और मनोवैज्ञानिक अनुभवों का परिणाम होता है। यह सिर्फ एक मनोदशा नहीं, बल्कि एक मानसिक और जैविक घटना है — जो इंसान के सोचने, व्यवहार करने और संबंध बनाने के तरीके को प्रभावित कर सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ये मूड स्विंग्स बार-बार, तीव्रता से और लंबे समय तक हों, तो यह एक मानसिक स्वास्थ्य संकेत हो सकता है, जिसे नज़रअंदाज़ करना खतरनाक है।

 हार्मोनल बदलाव: शरीर के अंदर चल रही एक खामोश लहर

शरीर में कई तरह के हार्मोन मूड को नियंत्रित करते हैं — खासकर सेरोटोनिन, डोपामिन, एस्ट्रोजेन, प्रोजेस्टेरोन और टेस्टोस्टेरोन। जब ये हार्मोन संतुलन में होते हैं तो इंसान का मूड स्थिर रहता है, लेकिन जब इनमें असंतुलन होता है तो भावनाएं उथल-पुथल मचाने लगती हैं। महिलाओं में पीरियड्स (PMS), गर्भावस्था, डिलीवरी के बाद और मेनोपॉज के समय ये बदलाव तीव्र हो सकते हैं। वहीं पुरुषों में उम्र बढ़ने या अत्यधिक तनाव के कारण टेस्टोस्टेरोन में गिरावट आती है, जिससे उन्हें चिड़चिड़ापन, थकान और अवसाद का अनुभव होने लगता है। यही हार्मोनल असंतुलन मूड स्विंग की जड़ बन जाता है, जो यदि समय रहते पहचाना न जाए तो मानसिक शांति को भंग कर सकता है।

मानसिक थकावट और तनाव: मन के अंदर की खामोशी का शोर

आज की तेज़-तर्रार जीवनशैली, कॉर्पोरेट कल्चर, सोशल मीडिया की तुलना, शिक्षा का दबाव, रिश्तों की अस्थिरता और भविष्य को लेकर असुरक्षा — ये सभी कारक युवा से लेकर बुजुर्ग तक में मानसिक तनाव पैदा कर रहे हैं। जब तनाव लंबा खिंचता है, तो मस्तिष्क का अमिगडाला हिस्सा अधिक सक्रिय हो जाता है — जो भावनाओं को नियंत्रित करता है। इसके कारण छोटी-छोटी बातें भी व्यक्ति को या तो बहुत गहराई से छू जाती हैं या उसे अचानक गुस्से में बदल देती हैं। यही वह बिंदु होता है जहां मूड स्विंग शुरू होता है — व्यक्ति खुद को संतुलित नहीं रख पाता और बार-बार गुस्सा, चिंता या दुख के झूले में झूलता है। अगर तनाव को समय रहते प्रबंधित न किया जाए, तो मूड स्विंग्स स्थायी चक्र बन जाते हैं।

नींद की गड़बड़ी और जीवनशैली का असंतुलन

मूड स्विंग्स के पीछे सबसे छुपा हुआ लेकिन बड़ा कारण है — नींद की कमी और खराब दिनचर्या। जब हम 6 घंटे से कम सोते हैं, अनियमित समय पर उठते-सोते हैं, देर रात तक स्क्रीन पर समय बिताते हैं और सुबह जल्दी उठकर आराम नहीं करते — तो मस्तिष्क की जैविक घड़ी गड़बड़ा जाती है। अमेरिका की Sleep Foundation की रिपोर्ट के अनुसार, जो लोग लगातार अपर्याप्त नींद लेते हैं, उनमें चिड़चिड़ापन, चिंता, अवसाद और मूड स्विंग्स की संभावना तीन गुना बढ़ जाती है। नींद ही वह प्रक्रिया है जिसमें मस्तिष्क खुद को रीसेट करता है। अगर नींद में व्यवधान होता है, तो हम भावनात्मक रूप से अस्थिर महसूस करने लगते हैं — कभी हँसी, कभी आंसू, कभी गुस्सा, कभी उदासी।

खानपान और पेट का मन से रिश्ता: गट-ब्रेन कनेक्शन

क्या आपने कभी गौर किया है कि जब पेट खराब होता है तो मूड भी बिगड़ जाता है? यह संयोग नहीं, विज्ञान है। हमारा पाचन तंत्र और दिमाग एक-दूसरे से जुड़े होते हैं — जिसे विशेषज्ञ गट-ब्रेन ऐक्सिस कहते हैं। जब हम अत्यधिक जंक फूड, मीठा, तला हुआ खाना, ज्यादा कैफीन या शराब लेते हैं, तो यह न केवल हमारे पेट को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि दिमाग में सेरोटोनिन के उत्पादन को भी प्रभावित करता है। इसके विपरीत, हरी सब्जियां, फल, दही, नट्स, और फाइबरयुक्त आहार मूड को स्थिर और सकारात्मक बनाए रखते हैं। इसलिए अगर मूड बार-बार खराब होता है, तो डॉक्टर से पहले अपनी थाली देखिए — वहां छुपा हो सकता है मूड स्विंग का इलाज।

दीर्घकालिक मानसिक समस्याएं: जब मूड स्विंग बीमारियों का लक्षण हो

मूड स्विंग्स कभी-कभी केवल तनाव या हार्मोनल कारणों से नहीं होते, बल्कि यह किसी मानसिक बीमारी का हिस्सा भी हो सकते हैं। जैसे बायपोलर डिसऑर्डर, जिसमें व्यक्ति एक ही सप्ताह में गहरी उदासी से अत्यधिक उत्तेजना की अवस्था में पहुंच जाता है। या बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर, जिसमें व्यक्ति का मूड, आत्म-छवि और रिश्ते बार-बार बदलते हैं। ADHD और PTSD जैसी स्थितियों में भी मूड स्विंग आम लक्षण होते हैं। ये स्थितियां मनोचिकित्सक द्वारा निदान योग्य हैं, और यदि समय रहते मदद ली जाए तो इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से, हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य को अभी भी ‘कमजोरी’ समझा जाता है — और इसी वजह से लाखों लोग चुपचाप इन मूड स्विंग्स को झेलते हैं, जबकि उन्हें इलाज की ज़रूरत होती है।

मूड स्विंग को कैसे संभालें: विशेषज्ञों के आज़माए हुए उपाय

मूड स्विंग को नियंत्रित करने के लिए सबसे पहले खुद की दिनचर्या और भावनाओं को पहचानना जरूरी है। सबसे सरल उपाय है — डायरी लिखना: दिनभर की भावनाओं को शब्दों में उतारना। इसके अलावा, योग और ध्यान जैसे अभ्यास मस्तिष्क की सक्रियता को संतुलित करते हैं। 7–8 घंटे की नींद, नियमित व्यायाम, और पौष्टिक भोजन शरीर में सेरोटोनिन और डोपामिन का स्तर संतुलित करते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, किसी भरोसेमंद दोस्त या काउंसलर से बात करना मूड स्विंग के आधे तनाव को खत्म कर सकता है। सबसे जरूरी है — खुद को दोष देना बंद करें। मूड स्विंग बीमारी नहीं, एक संकेत है कि आप थक चुके हैं, रुकिए, सुनिए और खुद से बात कीजिए।

मूड स्विंग को नजरअंदाज़ नहीं, समझदारी से संभालिए

भावनाओं का उतार-चढ़ाव इंसान होने का हिस्सा है — लेकिन अगर ये मूड स्विंग आपके रिश्तों, काम, पढ़ाई या मानसिक शांति पर असर डालने लगे, तो यह चेतावनी है। यह न तो शर्म की बात है और न ही इसे छिपाना चाहिए। यह समय है खुद से ईमानदार होने का, अपने शरीर और मन को सुनने का। अगर हम समय रहते मूड स्विंग के संकेतों को पहचान लें, उन्हें समझदारी से संभाल लें, तो हम एक स्थिर, खुशहाल और संतुलित जीवन की ओर बढ़ सकते हैं। याद रखिए — मन का ख्याल रखने का जिम्मा भी आपका ही है।

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