भूमिका: सामाजिक न्याय और एक राष्ट्र की अवधारणा की कसौटी पर
भारत एक बहुजातीय, बहुधार्मिक और बहुभाषी राष्ट्र है, जिसकी विविधता इसकी ताकत भी है और चुनौती भी। स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद भी जब नागरिकों के अधिकार और कर्तव्यों में एकरूपता नहीं है, तो यह संविधान की आत्मा पर एक सवालिया निशान है। समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC) और जनसंख्या नियंत्रण ऐसे दो मुद्दे हैं, जो सीधे तौर पर भारत के सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक भविष्य को प्रभावित करते हैं। ये मुद्दे केवल कानून की नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की वैचारिक प्रक्रिया के केंद्र में हैं।
एक ओर UCC की मांग यह कहती है कि धर्म के नाम पर अलग-अलग पर्सनल लॉ नहीं होने चाहिए — सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून हो, वहीं दूसरी ओर, जनसंख्या नियंत्रण की बहस यह सवाल उठाती है कि अगर आबादी विस्फोट इसी तरह चलता रहा, तो भारत संसाधनों, सामाजिक संतुलन और पर्यावरणीय संतुलन — तीनों मोर्चों पर चरम विफलता की ओर बढ़ेगा। ये दोनों विषय केवल विचारधारा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्तित्व की ज़रूरत बन चुके हैं।
UCC: धार्मिक असमानता बनाम संवैधानिक समानता
समान नागरिक संहिता भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 का हिस्सा है, जो राज्य को यह निर्देश देता है कि वह सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक कानून बनाए। लेकिन दुर्भाग्यवश, आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी यह अनुच्छेद लागू नहीं किया जा सका — कारण, राजनीतिक तुष्टीकरण, वोट बैंक की राजनीति और सामाजिक डर।
आज भी भारत में विवाह, तलाक, संपत्ति, गोद लेने जैसे निजी मामलों में धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून लागू हैं। एक हिंदू महिला को तलाक में जो अधिकार हैं, वो मुस्लिम महिला को नहीं; एक ईसाई को जो संपत्ति मिलती है, वो किसी पारसी को नहीं। यह स्थिति न्याय, समानता और स्वतंत्रता जैसे संवैधानिक मूल्यों का सीधा उल्लंघन है।
UCC कोई “धर्म विरोधी” या “इस्लाम विरोधी” कानून नहीं है, बल्कि यह धर्म के दायरे से बाहर आकर एक नागरिक की पहचान को प्राथमिकता देने का प्रयास है। एक मुस्लिम महिला को तीन तलाक से मुक्ति मिली — यह UCC के आदर्श की ही एक झलक थी। अब यह झलक एक समूचे फ्रेमवर्क में बदले, यही समय की मांग है।
जनसंख्या नियंत्रण: विकास बनाम विस्फोट की लड़ाई
भारत आज दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। भले ही जनसंख्या को मानव संसाधन माना जाए, लेकिन अनियंत्रित जनसंख्या किसी भी राष्ट्र की विकास यात्रा की सबसे बड़ी बाधा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पानी, बिजली, कृषि भूमि — हर क्षेत्र में आबादी का दबाव संसाधनों को नष्ट कर रहा है।
देश के कुछ हिस्सों में, खासकर जहां एक विशेष धार्मिक समुदाय की जनसंख्या वृद्धि दर दूसरे से कहीं अधिक है, वहां जनसांख्यिकीय असंतुलन का डर भी पैदा हो रहा है। यह डर केवल बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक की बहस नहीं है — यह सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता की नींव को हिला सकता है।
एक राष्ट्र तभी विकसित हो सकता है जब उसकी जनसंख्या पर नियंत्रण हो, ताकि हर व्यक्ति को शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य मिल सके। इसके लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून, जागरूकता, और सामाजिक संकल्प तीनों की आवश्यकता है। यह कानून किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।
विरोध और भ्रम: UCC व जनसंख्या नियंत्रण पर फैलाई जा रही गलतफहमियां
इन दोनों मुद्दों पर सबसे बड़ी समस्या है — झूठे नैरेटिव और धार्मिक भ्रम। कुछ लोग इन्हें धार्मिक पहचान पर हमले के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जबकि यह नागरिकता की गरिमा और सामाजिक संतुलन की दिशा में कदम हैं।
UCC को इस्लाम विरोधी बताने वालों को यह समझना होगा कि सऊदी अरब, ईरान जैसे कट्टर इस्लामी देशों में भी एक ही पर्सनल लॉ लागू होता है — फिर भारत में धर्म के नाम पर अलग-अलग कानूनों की ज़रूरत क्यों हो? क्या मुसलमान औरत को बराबरी नहीं मिलनी चाहिए? क्या एक दलित हिंदू को विवाह या संपत्ति में वही अधिकार नहीं मिलने चाहिए जो एक ऊंची जाति के ब्राह्मण को मिलते हैं?
इसी तरह, जनसंख्या नियंत्रण कानून को भी “मुसलमानों को रोकने की साज़िश” कहकर भ्रम फैलाया जाता है। जबकि असलियत यह है कि जनसंख्या विस्फोट पूरे देश को डुबो सकता है — फिर वह किसी भी धर्म का क्यों ना हो।
समाधान की दिशा: लोकतांत्रिक विमर्श और न्यायसंगत नीति निर्माण
इन दोनों विषयों पर सरकार को सख्त, परंतु संवेदनशील रुख अपनाना होगा। कानून बनाना ज़रूरी है, लेकिन उससे ज़्यादा ज़रूरी है लोगों का विश्वास जीतना। इसके लिए व्यापक जन संवाद, धार्मिक नेताओं से बातचीत, सामाजिक संगठनों का सहयोग और मीडिया की ईमानदारी ज़रूरी है।
समान नागरिक संहिता को लागू करने से पहले एक राष्ट्रीय नागरिक आचार संहिता आयोग बनाया जाए, जो सभी धार्मिक समुदायों, विधि विशेषज्ञों और सामाजिक नेताओं से राय लेकर एक ड्राफ्ट तैयार करे। इसी तरह जनसंख्या नियंत्रण के लिए दो बच्चों की नीति, सरकारी नौकरियों और योजनाओं से जुड़ी प्रोत्साहन और दंड व्यवस्था लागू की जाए।
यह भी ज़रूरी है कि इन कानूनों को सभी धर्मों पर समान रूप से लागू किया जाए, ताकि कोई समुदाय खुद को निशाना बना महसूस न करे। धर्म को छोड़कर यदि हम राष्ट्र को प्राथमिकता दें, तो ये दोनों कानून भारत के उज्जवल भविष्य की नींव रख सकते हैं।
नए भारत की बुनियाद — समानता, संतुलन और संकल्प
आज भारत एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां से उसे तय करना है कि वह विविधता के नाम पर बिखराव की ओर बढ़ेगा, या समानता के आधार पर समरसता की ओर। समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून भारत को एक मजबूत, संतुलित और न्यायसंगत राष्ट्र बनाने की दिशा में अनिवार्य कदम हैं।
यह केवल एक पार्टी या सरकार का एजेंडा नहीं है — यह हर देशभक्त नागरिक का राष्ट्रीय कर्तव्य है। अगर आज हम चुप रहे, तो आने वाली पीढ़ियां हमारी चुप्पी की कीमत अराजकता, गरीबी और असमानता से चुकाएँगी।अब समय है कि हम सामूहिक रूप से कहें — “एक देश, एक कानून, एक संतुलित समाज — यही भारत की पहचान होनी चाहिए।”