नई दिल्ली 7 जुलाई 2025
बिहार की मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी को लेकर उठे सवालों पर अब सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि वह 10 जुलाई 2025 को उन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी जिनमें चुनाव आयोग द्वारा की गई मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया को चुनौती दी गई है। यह मामला आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों को लेकर बेहद अहम माना जा रहा है।
इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण (Electoral Roll Revision) के दौरान बड़े पैमाने पर अनियमितताएं, पक्षपात, और कई वैध मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जाने की घटनाएं सामने आई हैं। साथ ही, कुछ इलाकों में मतदाता पहचान पत्र और पुनः नामांकन के लिए उचित सूचना या समय नहीं दिया गया, जिससे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हुआ है।
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि चुनाव आयोग को पुनरीक्षण प्रक्रिया स्थगित करने या पुनः जांच करने का निर्देश दिया जाए, ताकि कोई भी वैध नागरिक अपने वोट देने के अधिकार से वंचित न हो। यह भी आरोप लगाया गया है कि कुछ संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्रों में यह प्रक्रिया जानबूझकर भेदभावपूर्ण तरीके से लागू की गई, जिससे एक खास वर्ग या समुदाय को नुकसान पहुँचा है।
चुनाव आयोग की ओर से अब तक इस मामले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार आयोग अपने संशोधन की प्रक्रिया को नियमों के अनुरूप बता रहा है और वह सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगा।
यह मामला इसलिए भी बेहद अहम है क्योंकि बिहार की जनसंख्या संरचना और सामाजिक-राजनीतिक समीकरण बेहद संवेदनशील हैं। यदि मतदाता सूची में गड़बड़ी सिद्ध होती है, तो यह न सिर्फ लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाएगा, बल्कि आगामी चुनावों की वैधता पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।
अब सबकी निगाहें 10 जुलाई की सुनवाई पर टिकी हैं, जहाँ सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या बिहार में मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया निष्पक्ष रही या नहीं। यह निर्णय न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के लिए मिसाल बन सकता है कि लोकतांत्रिक संस्थानों की निगरानी और पारदर्शिता कितनी महत्वपूर्ण है।