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फैशन और संस्कृति के बीच फंसा युवा: पहचान की जंग या व्यक्तित्व की तलाश?

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परिधान बदलते हैं, पर परंपरा नहीं

आज का युवा एक ऐसे दौर में जी रहा है जहाँ फैशन उसके व्यक्तित्व का पहला चेहरा बन चुका है। ब्रांडेड कपड़े, ट्रेंडी हेयरस्टाइल, और सोशल मीडिया पर ‘फैशन-फॉरवर्ड’ दिखना अब सामान्य है। लेकिन इन तेज़ी से बदलते ट्रेंड्स के बीच एक सवाल उठ खड़ा होता है — क्या फैशन हमारी संस्कृति को निगल रहा है? क्या परिधान केवल आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम हैं, या वे हमारी पहचान और जड़ों से भी जुड़े हैं? आज जब कोई युवा धोती या कुर्ता पहनने में शर्माता है, लेकिन रिप्ड जींस में सहज महसूस करता है, तो यह महज़ पसंद का मामला नहीं — यह गहराई से जड़ों से कटने की चेतावनी भी हो सकता है।

फैशन: एक स्वतंत्रता या विज्ञापन-जनित भ्रम?

फैशन को अक्सर “व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति” कहा जाता है, लेकिन आज यह अधिकतर विज्ञापनों की प्रेरित प्रतीति बन चुका है। युवाओं को बताया जाता है कि अगर आपने यह ब्रांड नहीं पहना, तो आप आउटडेटेड हैं। इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ऑनलाइन शॉपिंग ऐप्स लगातार यह संकेत देते हैं कि तुम्हारी वैल्यू तुम्हारे पहनावे से तय होगी। परिणामस्वरूप युवा फैशन को आत्मसम्मान से जोड़ बैठते हैं — और धीरे-धीरे वह व्यक्ति कपड़ों से बड़ा नहीं रह जाता। उसे यह याद ही नहीं रहता कि असली पहचान उसके विचार, आचरण और संवाद में होती है — न कि उसकी टी-शर्ट के लोगो में।

संस्कृति की समझ: केवल उत्सवों तक सीमित क्यों?

दुर्भाग्य से आज संस्कृति को हम केवल त्योहारों, पारंपरिक संगीत या नृत्य तक सीमित मानने लगे हैं। पर संस्कृति केवल प्रदर्शन नहीं, बल्कि जीवन पद्धति है। यह हमारे बोलचाल, सोच, रिश्तों और जीवन के मूल्यों से जुड़ी होती है। जब युवा पारंपरिक पहनावे या सांस्कृतिक आदतों को पिछड़ा मानने लगते हैं, तो वे धीरे-धीरे अपनी जड़ों से कटने लगते हैं। जो फैशन हमें आत्मविश्वास दे, वह स्वागतयोग्य है। लेकिन जो फैशन हमें अपने ही परिवेश से काट दे, वह आत्महीनता का जाल है। संस्कृतिबोध से युक्त युवा अपने फैशन को भी गरिमा और विचार से सजाता है — वह सिर्फ़ ‘फॉलो’ नहीं करता, चयन करता है।

ग्लोबल सोच, लोकल पहचान: दोनों का संगम संभव है

यह मानना गलत होगा कि संस्कृति और फैशन एक-दूसरे के विरोधी हैं। दरअसल, दोनों में सामंजस्य बैठाया जा सकता है। आधुनिक फैशन को अपनाते हुए भी हम अपनी संस्कृति से जुड़ सकते हैं। आज भी कई डिज़ाइनर्स पारंपरिक परिधानों को आधुनिक रंग-रूप देकर फैशन का हिस्सा बना रहे हैं — जैसे हैंडलूम कुर्ते, खादी जैकेट, कांजीवरम की स्कर्ट या धोती के साथ जैज़ी जैकेट। जो युवा अपनी स्थानीय कला, भाषा और पहनावे को गर्व से अपनाता है, वह कहीं ज्यादा आत्मविश्वासी होता है — क्योंकि उसकी स्टाइल सिर्फ़ ट्रेंड नहीं, उसकी परंपरा से निकलती है। ग्लोबल नागरिक वही बन सकता है जो अपने लोकल अस्तित्व को आत्मसात करता है।

युवाओं के लिए राह: स्टाइल वो चुनो, जिसमें आत्मा हो

युवाओं को चाहिए कि वे फैशन को केवल ‘फ्लैश’ न समझें, बल्कि ‘फॉर्म’ और ‘फोकस’ के साथ देखें। फैशन में सजना बुरा नहीं, लेकिन उस सजावट में अपनी पहचान खो देना चिंता का विषय है। कोई भी फैशन ऐसा न अपनाएं जो आपको खुद से दूर करे — अपने परिवार, अपनी भाषा, अपनी परंपरा से। सबसे बेहतरीन स्टाइल वही है जो आत्म-सम्मान से आता है, न कि ब्रांड के टैग से। सादगी, गरिमा और मौलिकता से युक्त फैशन, आपको ज्यादा स्थायी और सम्मानजनक पहचान देता है।

संस्कृति का स्पर्श ही फैशन को क्लास बनाता है

फैशन और संस्कृति एक ही धागे से बुने जा सकते हैं — बशर्ते उस धागे में संवेदना, समझ और चयन की दृष्टि हो। युवा अगर केवल ग्लैमर की रौशनी में न बहें, बल्कि अपनी परछाईं भी देख पाएं, तो वे बेहतर फैशन और बेहतर भविष्य दोनों गढ़ सकते हैं। “कपड़े बदलो, सोच मत बदलो। फैशन में दिखो, लेकिन जड़ों से जुड़ो।”

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