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धर्म की आड़ में ज़मीन पर डाका नहीं चलेगा: इंद्रेश कुमार

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धमकियों, डर और दस्तावेज़ के बीच न्याय की जद्दोजहद में मध्यप्रदेश की शमीम बानो, इंद्रेश कुमार ने दिया सुरक्षा और न्याय का भरोसा

नई दिल्ली, 10 जुलाई

जब किसी महिला को अपनी पुश्तैनी ज़मीन की रक्षा के लिए दर-दर भटकना पड़े, जब कानूनी दस्तावेज़ होते हुए भी उसे धार्मिक नाम पर डराया-धमकाया जाए, तो यह न सिर्फ उसकी व्यक्तिगत पीड़ा होती है, बल्कि उस पूरी न्याय प्रणाली पर सवाल बन जाती है, जिस पर हमारा संविधान टिका है। मध्यप्रदेश की बेटी शमीम बानो आज इसी विडंबना से जूझ रही हैं। उनका अपराध बस इतना है कि वे एक मुसलमान महिला हैं, अकेली हैं, और एक ऐसी ज़मीन की कानूनी वारिस हैं, जिसपर धार्मिक सत्ता और वक्फ माफिया की नज़रें गड़ चुकी हैं।

शमीम बानो की आवाज़ को राष्ट्रीय मंच मिला जब उन्होंने दिल्ली पहुंचकर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की राष्ट्रीय संयोजक डॉ. शालिनी अली से संपर्क किया। डॉ. शालिनी ने उनकी व्यथा को गंभीरता से लिया और उन्हें मंच के मार्गदर्शक श्री इंद्रेश कुमार से मिलवाया। यह केवल एक औपचारिक मुलाक़ात नहीं थी, बल्कि न्याय की उम्मीद की उस लौ का पुनर्जागरण था, जो लगातार सिस्टम की बेरुख़ी से बुझाई जा रही थी।

इंद्रेश कुमार ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “शमीम बानो अकेली नहीं हैं। जिस समाज ने वक्फ को मजलूमों और बेसहारा मुसलमानों के उत्थान के लिए बनाया था, उसी को हथियार बनाकर महिलाओं की संपत्ति छीनना किसी भी हाल में स्वीकार नहीं होगा। वक्फ का मक़सद समाज सेवा है, कब्ज़ा नहीं।”

उन्होंने यह भी जोड़ा, “यह केवल उज्जैन की एक महिला की लड़ाई नहीं, यह हर उस मजलूम की लड़ाई है जो धर्म की आड़ में प्रताड़ना सह रहा है। हम सबको मिलकर नए वक्फ संशोधन कानून के सही और ईमानदार इंप्लीमेंटेशन के लिए काम करना होगा। देशभर के गरीब और बेसहारा मुसलमान इस विधेयक की पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना से जुड़ी उम्मीदों के साथ देख रहे हैं। उन्हें इसका बेसब्री से इंतजार है।”

इंद्रेश कुमार ने मंच की ओर से यह भी वादा किया कि “ना तो कोई महिला अब अकेली लड़ेगी, और ना ही कोई अधिकारी या मौलाना कानून से ऊपर समझा जाएगा। इस मामले की पूरी जांच कराई जाएगी और मंच की ओर से हर ज़रूरी सहायता दी जाएगी — कानूनी, सामाजिक और प्रशासनिक भी।”

शमीम बानो की लड़ाई उस ज़मीन की है जिसकी रजिस्ट्री वर्ष 1935 में उनके दादा मोहम्मद हाफिज़ के नाम दर्ज हुई थी। उज्जैन की गली नंबर 3, खैरदियामान, तोपखाना स्थित 4000 स्क्वायर फीट ज़मीन की मालिकाना हकदारी वर्षों से उनके परिवार के पास रही है। उनके पास हर कानूनी दस्तावेज़ मौजूद हैं — प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन, म्युटेशन और टैक्स रसीद, — बावजूद इसके, इस ज़मीन के 1800 स्क्वायर फीट हिस्से पर एक काल्पनिक ‘मस्जिद खैर’ के नाम पर अवैध कब्ज़ा किया जा रहा है। न वहाँ कोई मस्जिद थी, न इबादत, न वक्फ दस्तावेज़। केवल ज़बरन दावा, मौलाना और दबंगों की धमकियां और कागज़ी धोखाधड़ी — यही उनके खिलाफ खड़ा किया गया है।

सबसे खतरनाक पक्ष है फर्ज़ी डोनेशन डीड, जिसमें फर्जी हस्ताक्षर कर ज़मीन पर दावा किया गया है। यह पूरी तरह दस्तावेज़ी जालसाज़ी का मामला है। और इससे भी दुखद यह है कि इसे धार्मिक मर्यादा के नाम पर वैध साबित करने की कोशिश की जा रही है — महिला को चुप कराने के लिए “मस्जिद के खिलाफ बोलना हराम है” जैसे जुमले इस्तेमाल किए जा रहे हैं। साथ ही उसको तरह तरह की धमकियां दी जा रही हैं। यहां तक कि शमीम बानो को अब अपनी जान का भी खतरा नजर आने लगा है। इस पूरे मामले में वक्फ बोर्ड की भूमिका सबसे ज्यादा चिंताजनक रही है। क्या वक्फ बोर्ड “वक्फ माफिया बोर्ड” बन चुका है? वक्फ बोर्ड ने इस मामले पर चुप्पी साधी हुई है। 

डॉ. शालिनी अली ने जिस साहस, संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता से शमीम बानो के संघर्ष को मंच तक पहुँचाया, वह प्रेरणादायक है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि “धर्म या वक्फ संस्था की आड़ में महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। मंच हर महिला के साथ खड़ा है जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।”

शमीम बानो की ओर से सरकार के समक्ष चार मांगें रखी गई हैं:

  1. फर्ज़ी डोनेशन डीड की न्यायिक व फॉरेंसिक जांच कर दोषियों को गिरफ्तार किया जाए।
  1. शमीम बानो और उनके परिवार को सुरक्षा दी जाए।
  1. जहां अवैध निर्माण और कब्ज़ा हुआ है, वहां प्रशासनिक कार्रवाई हो।
  1. वक्फ बोर्ड की भूमिका की स्वतंत्र जांच कर दोषी अधिकारियों को दंडित किया जाए।

यह सिर्फ एक महिला की ज़मीन का मामला नहीं, यह उस मजलूम मुस्लिम समाज की चेतना का मामला है जो आज भी दस्तावेज़ होते हुए भी धर्म के नाम पर चुप रहने को मजबूर है। शमीम बानो का संघर्ष उस चेतावनी की तरह है जो बता रही है — अगर आज नहीं चेते, तो कल हर गली में यह आग फैलेगी। अब फैसला सरकार, प्रशासन और समाज के ज़मीर को करना है — क्या वे इस संघर्ष में खड़े होंगे, या इस चुप्पी का हिस्सा बनेंगे?

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