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तमिलनाडु और गुजरात में RTE से जुड़े दो प्रमुख घटनाक्रम—एक विवाद, एक सुधार

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जनवरी 2025 में शिक्षा के क्षेत्र में दो राज्योंतमिलनाडु और गुजरातसे संबंधित RTE (Right to Education) कानून के तहत दो अहम खबरें सामने आईं। तमिलनाडु में जहां यह प्रक्रिया प्रशासनिक बाधाओं और विरोध के चलते सुर्खियों में रही, वहीं गुजरात में इस योजना को और प्रभावशाली बनाने के लिए नई पहल की गई। 

 तमिलनाडु RTE विवाद: 4 लाख छात्रों के भविष्य पर असमंजस 

तमिलनाडु में इस वर्ष RTE दाखिला प्रक्रिया में देरी और अनिश्चितताओं के कारण 4 लाख से अधिक छात्रों और उनके अभिभावकों को परेशानी का सामना करना पड़ा। प्रक्रिया के दौरान कई तकनीकी खामियां, अपारदर्शिता और अद्यतन नियमों की अस्पष्टता के कारण फॉर्म भरने की समयसीमा, दस्तावेज सत्यापन, और प्रवेश सूची के प्रकाशन में बाधाएं उत्पन्न हुईं। 

इस स्थिति से नाराज़ Federation of Private School Associations ने राज्य सरकार से तत्काल हस्तक्षेप और तेजी से दाखिला प्रक्रिया पूरी कराने की मांग की। उनका कहना था कि देरी से न केवल छात्रों का भविष्य अधर में लटका है, बल्कि निजी विद्यालयों को भी प्रशासनिक व वित्तीय हानि हो रही है। 

इस विवाद ने शिक्षा के अधिकार जैसे संवैधानिक अधिकार के क्रियान्वयन पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं और सरकारी प्रणाली की दक्षता तथा जवाबदेही को लेकर बहस छेड़ दी है। 

गुजरात RTE में सुधार: अधिक पारदर्शिता और वित्तीय सहायता 

इसके विपरीत, गुजरात ने RTE के कार्यान्वयन में सुधार और विस्तारीकरण की दिशा में सराहनीय पहल की। जनवरी 2025 तक राज्य सरकार ने घोषणा की कि 95,494 छात्रों ने RTE के तहत निजी स्कूलों में दाखिला लिया है, और इस योजना के तहत प्रत्येक पात्र छात्र को ₹3,000 की वार्षिक सहायता राशि प्रदान की जाएगी। 

इसके अतिरिक्त, RTE पात्रता की वार्षिक पारिवारिक आय सीमा ₹6 लाख तक बढ़ा दी गई, जिससे अब और अधिक परिवार इस योजना के अंतर्गत शामिल हो सकेंगे। इस निर्णय का उद्देश्य निम्न-मध्यम वर्गीय परिवारों को राहत देना और उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना है। 

गुजरात सरकार के इस कदम को व्यापक रूप से समावेशी शिक्षा और सामाजिक न्याय की दिशा में प्रगतिशील प्रयास माना गया। राज्य सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि योजना की निगरानी के लिए डिजिटल पोर्टल और ग्रामीण स्तर पर सूचना अभियान चलाए जाएंगे, जिससे जागरूकता और पारदर्शिता को बढ़ावा मिले। 

विश्लेषण: दो राज्यों का दृष्टिकोण 

जहां एक ओर तमिलनाडु में RTE का भविष्य अनिश्चितता के घेरे में दिखाई दिया, वहीं गुजरात में इसकी पहुंच और प्रभाव दोनों का विस्तार हुआ। यह फर्क राज्यों की नीति-निर्माण, प्रशासनिक इच्छाशक्ति, और शिक्षा को लेकर प्राथमिकता का प्रतिबिंब है। शिक्षा का अधिकार केवल कानून नहीं, बल्कि समान अवसर और सामाजिक समरसता की नींव हैऔर इसे लागू करने की प्रक्रिया उतनी ही पारदर्शी, सुलभ और समावेशी होनी चाहिए। 

 

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