9 जुलाई 2025
भारतीय ज्ञान परंपरा की ओर लौटने की इच्छा: वेद-उपनिषद का अध्ययन करेंगे अमित शाह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहली बार सार्वजनिक रूप से अपने सेवानिवृत्ति के बाद की जीवन योजना को साझा करते हुए कहा कि वे राजनीतिक जीवन से अलग होकर भारतीय संस्कृति, वेदों और उपनिषदों के गहन अध्ययन में समय देना चाहते हैं। उनका कहना है कि जीवन का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने देश और समाज को समर्पित किया है, लेकिन अब समय आएगा जब वे अध्यात्म, दर्शन और शाश्वत भारतीय ज्ञान की ओर लौटना चाहेंगे। अमित शाह ने यह विचार एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान व्यक्त किए, जहां उन्होंने भारतीय परंपराओं को न केवल गौरव का विषय बल्कि जीवन का आधार भी बताया।
प्राकृतिक खेती को बताया देश का भविष्य, बोले—‘रसायनों से मुक्त खेती ही समाधान’
अमित शाह ने अपने वक्तव्य में प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को भी विशेष रूप से रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में भारत की कृषि व्यवस्था को जैविक और प्राकृतिक तरीकों की ओर मोड़ना होगा। उन्होंने रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग को स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक बताया। उनका कहना था कि गौ आधारित खेती, मल्चिंग, जैविक खाद, और देसी बीजों का उपयोग ही किसानों की आर्थिक मजबूती और धरती की उर्वरता को बनाए रखने का सही तरीका है। अमित शाह ने इस दिशा में गुजरात के कुछ प्रोजेक्ट्स का उदाहरण देते हुए कहा कि “हमारा अतीत ही हमारे भविष्य की राह दिखा रहा है।”
सेवा और साधना का संकल्प, राजनीति के बाहर भी रहेगा राष्ट्रहित का भाव
अमित शाह ने यह स्पष्ट किया कि सत्ता और पद से हटने का मतलब कर्तव्य से विराम नहीं होता। उन्होंने कहा कि राजनीति छोड़ने के बाद भी वह राष्ट्रहित के लिए अपनी भूमिका निभाते रहेंगे, चाहे वह भारतीय परंपराओं को बढ़ावा देना हो या खेती-किसानी से जुड़ी नई दिशा में कार्य करना। उन्होंने योग, आयुर्वेद और सनातन दर्शन को भी भविष्य के अध्ययन और प्रचार के विषय बताए। शाह का यह भाव न केवल एक नेता की निजी योजना है, बल्कि एक ऐसे राजनीतिक सोच का प्रतिबिंब है जो सत्ता से ऊपर उठकर संस्कृति और समाज को केंद्र में रखता है।
संदेश स्पष्ट: आधुनिक भारत की नींव, प्राचीन भारत की जड़ों में
अमित शाह के इस बयान को केवल व्यक्तिगत योजना के रूप में नहीं, बल्कि एक वृहद राष्ट्रीय विचारधारा के रूप में भी देखा जा रहा है। उन्होंने जिस प्रकार से भारतीय दर्शन, कृषि, संस्कृति और आत्मानुशासन को अपने भविष्य का आधार बताया है, वह इस बात का संकेत है कि भारत के विकास का रास्ता पश्चिमी नकल से नहीं, बल्कि अपनी जड़ों की ओर लौटकर तैयार किया जा सकता है। उनके मुताबिक, आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है — “आधुनिक तकनीक के साथ पारंपरिक ज्ञान का समन्वय।”