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कश्मीर में मिलेट क्रांति: पारंपरिक अन्न से पोषण, रोज़गार और आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर

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भारत में वर्ष 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ के रूप में मनाया गया, जिसने देशभर में मोटे अनाजों (मिलेट्स) के महत्व को पुनर्स्थापित किया। इस वैश्विक पहल के प्रभाव से जम्मू-कश्मीर भी अछूता नहीं रहा। लंबे समय तक सेब, अखरोट, मक्का और धान जैसी पारंपरिक फसलों पर केंद्रित रहने के बाद अब कश्मीर के किसान धीरे-धीरे मिलेट की खेती की ओर रुख कर रहे हैं। बदलते मौसम, जलवायु अनिश्चितता और स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता ने मिलेट्स को एक वैकल्पिक नहीं, बल्कि आवश्यक फसल बना दिया है। कश्मीर के ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में यह खेती अब पोषण सुरक्षा, महिला सशक्तिकरण और आर्थिक विकास का नया जरिया बनती जा रही है।

कश्मीर में मिलेट्स की खेती: भूली-बिसरी परंपरा की वापसी

कश्मीर में राजमाश, मक्का, जौ और बाजरा जैसे पारंपरिक अनाज दशकों से उगाए जाते रहे हैं, लेकिन हरित क्रांति और बाजार की मांग ने धीरे-धीरे इन फसलों को हाशिए पर डाल दिया। अब केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त पहल से कश्मीर में रागी (मंडुआ), कोदो, सांवा, कंगनी, और बाजरा जैसी मिलेट फसलों की खेती को दोबारा शुरू किया जा रहा है। खास तौर पर डोडा, किश्तवाड़, उधमपुर, राजौरी, पुंछ और बडगाम जैसे ज़िलों में छोटे किसानों ने मिलेट्स को अपनाकर एक नई शुरुआत की है।

मिलेट्स की विशेषता यह है कि ये कम पानी, कम उर्वरक, और कठोर जलवायु में भी अच्छे उत्पादन देती हैं। यही कारण है कि पहाड़ी इलाकों में यह खेती टिकाऊ साबित हो रही है। साथ ही, मिलेट्स की फसलों में फाइबर, आयरन, जिंक, मैग्नीशियम और प्रोटीन अधिक मात्रा में होते हैं, जिससे यह कुपोषण के खिलाफ एक हथि

सरकारी पहल और संस्थागत सहयोग

केंद्र सरकार की राष्ट्रीय मिलेट मिशन (National Mission on Millets) और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के होलिस्टिक एग्रीकल्चर डेवलपमेंट प्रोग्राम (HADP) के तहत किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन, बीज वितरण, प्रशिक्षण और विपणन सहायता दी जा रही है। कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs) और SKUAST-कश्मीर (Sher-e-Kashmir University of Agricultural Sciences & Technology) मिलकर किसानों को ऑर्गेनिक मिलेट्स की खेती सिखा रहे हैं।

इसके अलावा, महिला स्वयं सहायता समूहों और FPOs (Farmer Producer Organizations) के माध्यम से महिलाओं को मिलेट प्रोसेसिंग यूनिट, पैकिंग, ब्रांडिंग और विपणन में भी शामिल किया जा रहा है। कुछ गांवों में मिलेट बेकरी, मिलेट कुकीज़, और हेल्दी स्नैक यूनिट्स की शुरुआत की गई है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं।

बाजार और व्यापार की संभावनाएँ

कश्मीर में मिलेट्स को अभी पूर्ण बाज़ार नहीं मिला है, लेकिन हेल्थ फूड सेक्टर में बढ़ती मांग से इनके दाम और लोकप्रियता में इजाफा हो रहा है। श्रीनगर, जम्मू, दिल्ली और अन्य महानगरों में कश्मीर से ऑर्गेनिक मिलेट्स की आपूर्ति की जा रही है। मिलेट्स से बने आटा, ब्रेड, कुकीज़, हेल्दी मिक्सेज और दलिया का बाजार भी तेजी से उभर रहा है।

अगर सरकारी योजनाओं के तहत प्रोसेसिंग यूनिट्स, कोल्ड चेन, और ऑनलाइन ब्रांडिंग को बढ़ावा दिया जाए, तो कश्मीर मिलेट्स भी सेब और अखरोट की तरह GI टैग के साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर खड़ा हो सकता है।

चुनौतियाँ:

मिलेट खेती की राह अभी पूरी तरह आसान नहीं है। किसान अब भी इस खेती को परंपरागत से हटकर जोखिम भरा मानते हैं। मिलेट्स के बीजों की उपलब्धता सीमित है, और प्रसंस्करण व विपणन के लिए समुचित ढांचा अब भी विकसित नहीं हो पाया है। उपभोक्ताओं को इसकी पोषण संबंधी जानकारी और उपभोग की विधियाँ भी व्यापक रूप से नहीं पता। परंतु सरकारी सहयोग, NGO की भागीदारी और एग्री-स्टार्टअप्स की भागीदारी से इन चुनौतियों को दूर किया जा सकता है।

मिलेट्स कश्मीर के किसानों के लिए न केवल स्वास्थ्य और पोषण का साधन हैं, बल्कि आर्थिक पुनरुत्थान और जलवायु अनुकूल कृषि का भी मजबूत विकल्प बन सकते हैं। अब जरूरत है एक ठोस रणनीति की—जिसमें प्रशिक्षण, बीज वितरण, बाजार संपर्क, प्रोसेसिंग यूनिट और उपभोक्ता शिक्षा को एक साथ जोड़ा जाए। यदि यह कदम उठाए जाते हैं तो आने वाले वर्षों में कश्मीर मिलेट की खेती में भी देश का अग्रणी क्षेत्र बन सकता है।

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