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कश्मीर में मक्का और दलहन की खेती: मौसम, मिट्टी और प्राकृतिक लय के साथ एक समृद्ध कृषि परंपरा

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कश्मीर घाटी की कृषि प्रणाली सदियों से मौसमी चक्र, जलवायु अनुकूलता और पारंपरिक ज्ञान पर आधारित रही है। यहां की जलवायु, मिट्टी की किस्में और वर्षा की प्रवृत्तियाँ ऐसी हैं कि वे कुछ विशेष फसलों के लिए अत्यंत उपयुक्त मानी जाती हैं। इसी श्रेणी में आती हैं मक्का (Maize) और दलहन (Pulses) की फसलें, जो यहां की खरीफ और रबी ऋतु में अपने-अपने समय पर उगाई जाती हैं। यह फसलें न केवल घाटी के छोटे और सीमांत किसानों के लिए रोजगार और भोजन का स्रोत हैं, बल्कि बदलते कृषि परिवेश में जलवायु-संवेदनशील और टिकाऊ कृषि विकल्प भी बन चुकी हैं।

मक्का की खेती कश्मीर में मुख्यतः खरीफ सीजन में की जाती है, जिसकी बुवाई मई के अंत से जून के मध्य तक की जाती है। यह वह समय होता है जब बर्फबारी के बाद खेतों की नमी और मौसम की गर्मी फसल के अंकुरण के लिए अनुकूल होती है। इस दौरान दिन का तापमान 15°C से 30°C के बीच होता है, जो मक्का की प्रारंभिक वृद्धि के लिए आदर्श माना जाता है। कटाई का समय सितंबर के अंत से अक्टूबर के मध्य तक होता है, जब दाने पककर तैयार हो जाते हैं और मौसम में ठंडक आनी शुरू हो जाती है। मक्का एक धूप पसंद फसल है और इसके लिए ढलानदार ज़मीन जहां जलजमाव न हो, सबसे उपयुक्त मानी जाती है। कश्मीर के पर्वतीय और अर्ध-पर्वतीय इलाकों में मक्का की खेती आसानी से की जाती है क्योंकि यह कम सिंचाई और सीमित संसाधनों में भी अच्छा उत्पादन देती है।

दूसरी ओर, दलहन की खेती कश्मीर में दो मुख्य मौसमों में होती है — खरीफ और रबी। खरीफ सीजन में दलहनों में राजमाश, मूंग और उड़द प्रमुख हैं, जिनकी बुवाई जून-जुलाई में मानसून की शुरुआत के साथ की जाती है। यह फसलें भी सितंबर से अक्टूबर के बीच तैयार हो जाती हैं। खरीफ दलहन के लिए गर्म और थोड़े नम वातावरण की आवश्यकता होती है, लेकिन ज़्यादा वर्षा इन्हें नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए इन्हें अपेक्षाकृत ऊँचाई वाले और अच्छी जल निकासी वाली ज़मीन में उगाया जाता है। राजमाश, जो कश्मीर का विशेष उत्पाद है, उसे घाटी की ठंडी रातें और मध्यम धूप बहुत अनुकूल लगती हैं, जिससे उसका रंग, स्वाद और पोषण स्तर बेहतरीन बनता है।

रबी सीजन की दलहन फसलें, जैसे कि चना, मसूर और मटर, कश्मीर की सर्दी को सहन करने वाली फसलें हैं। इनकी बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच की जाती है जब मानसून समाप्त हो चुका होता है और मौसम में ठंडक प्रवेश कर चुकी होती है। यह फसलें धीरे-धीरे बढ़ती हैं और मार्च-अप्रैल तक पककर तैयार होती हैं। चूंकि इस समय वर्षा बहुत कम होती है और तापमान 15°C से 25°C के बीच होता है, इसलिए यह दलहन फसलें बिना सिंचाई के भी उगाई जा सकती हैं। कश्मीर में कई किसान मक्का के बाद उसी खेत में रबी के मौसम में दलहन की फसल लगाते हैं, जिससे फसल चक्र (crop rotation) बना रहता है और मिट्टी की उर्वरता में भी सुधार होता है, क्योंकि दलहन फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन की प्राकृतिक आपूर्ति करती हैं।

इन दोनों फसलों का कश्मीर की कृषि, पोषण और ग्रामीण जीवन में गहरा संबंध है। मक्का जहां घाटी के लोगों के लिए रोटी, आटा, पशु आहार और स्नैक्स का स्रोत है, वहीं दलहन जैसे राजमाश और मसूर प्रोटीन, फाइबर और आयरन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं। जलवायु परिवर्तन और सिंचाई संकट के इस दौर में, मक्का और दलहन जैसी फसलें कम लागत, कम जोखिम और अधिक पोषण देने वाली फसलें हैं, जिनका मौसम आधारित प्रबंधन किसानों को खाद्य सुरक्षा और आय वृद्धि दोनों प्रदान करता है।

अतः यह कहा जा सकता है कि कश्मीर में मक्का और दलहन की खेती का मौसम केवल एक कृषि चक्र नहीं, बल्कि यह मिट्टी, परंपरा और पर्यावरण के साथ संतुलन का प्रतीक है। यदि मौसम के इस लय को विज्ञान, नीति और व्यापार के साथ जोड़ा जाए, तो यह खेती कश्मीर को कृषि आत्मनिर्भरता, पोषण समृद्धि और ग्रामीण रोजगार की दिशा में मज़बूत बना सकती है।

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