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कश्मीर की चेरी: लाल सुर्ख स्वाद और वैश्विक पहचान की ओर बढ़ती एक फल क्रांति

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कश्मीर घाटी न केवल अपनी बेमिसाल सुंदरता और प्राकृतिक संसाधनों के लिए मशहूर है, बल्कि यहाँ की फल-संस्कृति भी उतनी ही समृद्ध और विविध है। सेब, नाशपाती और अखरोट के साथ-साथ, घाटी में एक ऐसा फल भी है जो स्वाद, रंग और सुगंध में अपनी अलग पहचान रखता है — चेरी (Cherry)। लाल रंग की यह रसीली मिठास अब कश्मीर की पर्वतीय ढलानों से निकलकर देश के महानगरों और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुँचने लगी है। लेकिन इसकी यह यात्रा आसान नहीं रही — यह प्राकृतिक जलवायु की कृपा, किसानों की मेहनत, और बाज़ार की संभावनाओं के एक जटिल संगम का परिणाम है। इस विस्तृत रिपोर्ट में हम कश्मीर में चेरी की खेती के मौसम, प्राकृतिक गुणों, व्यापारिक विस्तार, और इससे जुड़ी चुनौतियों व संभावनाओं की गहराई से पड़ताल करेंगे।

कश्मीर की भौगोलिक स्थिति और जलवायु चेरी की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त है। विशेषकर श्रीनगर, बारामुला, अनंतनाग, शोपियां और गांदरबल जैसे ज़िलों में यह फल अधिकतर उगाया जाता है। चेरी की खेती के लिए जिस “chilling requirement” की ज़रूरत होती है — यानी सर्दी के मौसम में पेड़ों को आवश्यक विश्राम देने के लिए एक निश्चित मात्रा में ठंड — वह कश्मीर की ठंडी जलवायु में स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो जाती है। पौधों की बुवाई नवंबर से फरवरी के बीच होती है, और मार्च के अंत में जब घाटी में वसंत आता है, तब चेरी के पेड़ों पर फूल खिलते हैं। इसके बाद मई के अंतिम सप्ताह से लेकर जून के अंत तक चेरी की कटाई होती है। चेरी एक त्वरित फल है — यानी फूल से फल बनने और पकने तक की पूरी प्रक्रिया 60 से 75 दिनों में पूरी हो जाती है, जिससे इसकी मार्केटिंग की चुनौती और भी गंभीर हो जाती है।

चेरी की किस्मों की बात करें तो कश्मीर में Mishri, Double Cherry, Elberta, Napoleon, Stella और Bing जैसी किस्में उगाई जाती हैं। इनमें से Mishri सबसे अधिक लोकप्रिय है, जो रंग में गहरा लाल, स्वाद में अत्यंत मीठी और बनावट में नर्म होती है। यह किस्म स्थानीय खपत और राष्ट्रीय बाजार दोनों में सबसे अधिक बिकती है। वहीं Double Cherry और Napoleon जैसी किस्में अपेक्षाकृत कम मीठी लेकिन अधिक टिकाऊ होती हैं, जिन्हें आमतौर पर प्रोसेसिंग या निर्यात के लिए उपयोग किया जाता है। इन किस्मों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे रासायनिक खाद और कीटनाशकों की आवश्यकता बहुत कम करती हैं। कश्मीर में अधिकतर किसान जैविक खेती पद्धति अपनाते हैं, जिससे चेरी की गुणवत्ता और उसकी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में स्वीकार्यता दोनों बढ़ जाती हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर, कश्मीरी चेरी की माँग लगातार बढ़ रही है। पहले यह फल केवल दिल्ली और पंजाब तक सीमित था, लेकिन अब यह मुंबई, बेंगलुरु, पुणे और कोलकाता जैसे शहरों की सुपरमार्केट चेन और हेल्थ-फ्रूट स्टोर्स में भी नियमित रूप से पहुँचा रहा है। इसकी प्रमुख वजह है लोगों में स्वस्थ और प्रीमियम फलों की बढ़ती मांग। चेरी एक “लाइफस्टाइल फल” बन चुका है — जिसे केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि इसकी एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन-C और पोटैशियम की भरपूर मात्रा के लिए भी खाया जा रहा है। हालांकि चेरी की शेल्फ लाइफ बहुत कम (लगभग 3-5 दिन) होती है, फिर भी अच्छी ग्रेडिंग, क्विक ट्रांसपोर्ट, और कोल्ड स्टोरेज के माध्यम से इसे ताज़ा हालत में देश के किसी भी कोने तक पहुँचाया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की बात करें तो कश्मीर की चेरी अब धीरे-धीरे मिडिल ईस्ट (UAE, सऊदी अरब, क़तर) और यूरोप (UK, Netherlands, Germany) के उच्चवर्गीय उपभोक्ताओं के बीच “Himalayan Cherry” के नाम से लोकप्रिय हो रही है। APEDA और Jammu & Kashmir Horticulture Department ने मिलकर इस दिशा में पहल शुरू की है, जहाँ प्री-कूलिंग यूनिट्स, एयर कार्गो लिंक, और कस्टम सर्टिफिकेशन सिस्टम की मदद से चेरी को विदेशी बाज़ारों तक भेजा जा रहा है। हालाँकि अभी निर्यात की मात्रा सीमित है, लेकिन इसमें भारी संभावनाएँ हैं, विशेषकर तब जब इसे GI टैग और ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन के साथ जोड़ा जाए। भारत के पास अभी तक अंतरराष्ट्रीय चेरी बाजार में बहुत बड़ा हिस्सा नहीं है, लेकिन कश्मीर इस स्थिति को बदलने की पूरी क्षमता रखता है।

कश्मीरी चेरी की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह एक अत्यंत नाशवान फल है। यदि कटाई के कुछ ही घंटों में इसकी ग्रेडिंग, पैकेजिंग और कोल्ड चेन ट्रांसपोर्ट नहीं हुआ, तो यह तुरंत खराब होने लगता है। कई बार अचानक हुई वर्षा, ओलावृष्टि या उच्च तापमान फलों को समय से पहले ही नुकसान पहुँचा देते हैं। किसानों को अक्सर कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव, मार्केटिंग एजेंट्स पर निर्भरता, और न्यूनतम सरकारी खरीद की वजह से आर्थिक नुकसान होता है। यह सारी स्थितियाँ तब और गंभीर हो जाती हैं जब किसान बिचौलियों पर निर्भर रहते हैं और उनकी चेरी का सही मूल्य उन्हें नहीं मिल पाता।

इन सबके बीच उम्मीद की किरण यह है कि सरकार अब इस क्षेत्र में निवेश बढ़ा रही है। चेरी आधारित प्रोसेसिंग यूनिट्स (जैसे ड्राय चेरी, जैम, जैली, फ्रूट बार), कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क, और FPO के माध्यम से समूह मार्केटिंग जैसी योजनाएं अब ज़मीनी स्तर पर पहुँच रही हैं। साथ ही, कृषि वैज्ञानिक और उद्यान विशेषज्ञ नई किस्मों पर शोध कर रहे हैं जो अधिक टिकाऊ हों और लंबी दूरी के ट्रांसपोर्ट को सहन कर सकें। यदि इन प्रयासों को मजबूत नीति समर्थन, सब्सिडी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों से जोड़ा जाए, तो कश्मीर की चेरी वैश्विक फ्रूट मार्केट में एक अद्वितीय स्थान हासिल कर सकती है।

निष्कर्षतः, कश्मीर की चेरी केवल एक फल नहीं है — यह घाटी की प्राकृतिक कोमलता, रंगीन मौसम, और मेहनतकश किसानों की तपस्या की लाल-लाल मिठास है। यह फल न केवल स्वाद का प्रतीक है, बल्कि एक अर्थव्यवस्था, संस्कृति और अंतरराष्ट्रीय संभावनाओं से जुड़ा हुआ मॉडल बन सकता है। आवश्यकता है कि इसे देश और दुनिया में वह मुकाम मिले, जिसकी यह सच्चे अर्थों में हकदार है।

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