जब भी कश्मीर के फलों का जिक्र होता है, अधिकतर लोगों की स्मृति में सेब और केसर की छवि उभरती है। लेकिन इसी हिमालयी घाटी में एक और फल चुपचाप अपनी पहचान गढ़ रहा है — आड़ू (Peach)। यह न केवल घाटी की पर्वतीय मिट्टी में पनपने वाला अत्यंत स्वादिष्ट और सुगंधित फल है, बल्कि अब यह राष्ट्रीय और वैश्विक बाजारों में “कश्मीरी फल परंपरा” का प्रतिनिधित्व भी करने लगा है। इस लेख में हम कश्मीर में आड़ू की खेती के मौसम, किस्म, गुणवत्ता, उत्पादन, और इसके व्यापारिक पहलुओं को विस्तार से समझेंगे।
कश्मीर में आड़ू की खेती का समय और स्थल:
कश्मीर घाटी की समशीतोष्ण जलवायु (temperate climate) आड़ू की खेती के लिए अत्यंत अनुकूल है। इसकी खेती मुख्यतः शोपियां, अनंतनाग, पुलवामा, बारामुला, कुपवाड़ा और गांदरबल जिलों में की जाती है। आड़ू एक पर्वतीय फल है, जिसे अधिकतर 1000 मीटर से ऊपर की ऊँचाई पर उगाया जाता है, जहाँ दिन में मध्यम तापमान और रात में ठंडक बनी रहती है।
- बाग़ लगाने का समय: आड़ू के पौधे नवंबर से फरवरी के बीच लगाए जाते हैं, जब ज़मीन नम और शीतल होती है।
- फूल आने का समय: मार्च के मध्य से अप्रैल तक
- फल पकने और कटाई का समय: जून के अंत से अगस्त तक, किस्म के अनुसार
- औसतन फसल की अवधि: 120 से 140 दिन
कश्मीर की जलवायु में आड़ू के फूलों को परागण और फल बनने के लिए आवश्यक “चिलिंग आवर्स” मिल जाते हैं, जो भारत के मैदानी इलाकों में दुर्लभ है। इस कारण यहाँ का आड़ू आकार, रंग, मिठास और सुगंध में विशिष्ट होता है।
कश्मीर में आड़ू की किस्में और गुणवत्ता:
- कश्मीर में उगाई जाने वाली प्रमुख किस्में हैं:
- Red Haven: गहरे पीले और लाल मिश्रित रंग का, रसदार और सुगंधित
- Elberta: मध्यम आकार का, मीठा और नरम गूदा
4.Early Grande: जल्दी पकने वाली किस्म, व्यावसायिक बिक्री के लिए लाभकारी
- July Elberta: जुलाई में पकने वाली किस्म, मुख्य बाज़ार समय में अधिक मांग
- Sharbati Local: पारंपरिक किस्म, स्वाद में अत्यंत समृद्ध
इन सभी किस्मों में प्राकृतिक मिठास, सुगंध, रसीलापन और नरमी प्रमुख विशेषताएँ होती हैं, जो कश्मीर के विशिष्ट तापमान और ऊँचाई के कारण उत्पन्न होती हैं।
कश्मीर का आड़ू पूरी तरह से जैविक या न्यूनतम रसायन प्रयोग से उगाया जाता है, जिससे इसकी गुणवत्ता और भी विशेष मानी जाती है। यह फल विटामिन A, C, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं के बीच लोकप्रिय है।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक परिदृश्य:
राष्ट्रीय स्तर पर, कश्मीर का आड़ू अब तेजी से दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, अहमदाबाद, बेंगलुरु और जयपुर जैसे महानगरों में पहुंचने लगा है। आधुनिक रिटेल चेन, फार्म-टू-होम प्लेटफ़ॉर्म, और ऑर्गेनिक स्टोर्स के माध्यम से इसे विशेष वर्गों तक पहुँचाया जा रहा है। SKUAST-K और बागवानी विभाग द्वारा प्रशिक्षित FPOs (Farmer Producer Organizations), अब आड़ू की ग्रेडिंग, पैकेजिंग और शिपमेंट की व्यवस्था करने लगे हैं, जिससे किसान सीधे मार्केट से जुड़ रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, कश्मीर के आड़ू को मिडिल ईस्ट (यूएई, सऊदी अरब, कतर) और यूरोप (यूके, जर्मनी, नीदरलैंड्स) में “Fresh Himalayan Peaches” के रूप में निर्यात किया जा रहा है। इसके लिए APEDA और J&K Trade Promotion Organization द्वारा कोल्ड चेन सपोर्ट और कस्टम क्लीयरेंस की मदद दी जाती है। अभी इस दिशा में कई प्रयास प्रारंभिक चरण में हैं, लेकिन कश्मीर का आड़ू विश्व स्तर पर “गौरवशाली जैविक फल” के रूप में उभरने की क्षमता रखता है।
चुनौतियां और समस्याएं
कश्मीर में आड़ू की खेती के सामने मुख्य चुनौतियां हैं —
- परिवहन में देरी और जल्दी खराब होने का खतरा
- कोल्ड स्टोरेज की सीमित सुविधा
- फसल कटाई के बाद की प्रक्रिया (Post-harvest handling) की कमी
- MSP या बीमा जैसी सरकारी सुरक्षा योजनाओं की अनुपलब्धता
फिर भी संभावनाएँ प्रबल हैं। यदि फ्रूट प्रोसेसिंग यूनिट्स, आड़ू आधारित उत्पाद (जैसे जूस, जैम, डिब्बाबंद फल) विकसित किए जाएँ और GI टैगिंग, जैविक प्रमाणन को बढ़ावा मिले, तो यह फल न केवल घाटी के किसानों की आय बढ़ा सकता है, बल्कि कश्मीर को फ्रूट इंडस्ट्री में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना सकता है।
कश्मीर की आड़ू खेती केवल एक कृषि गतिविधि नहीं, बल्कि हिमालयी पारिस्थितिकी, पारंपरिक ज्ञान, और आर्थिक आत्मनिर्भरता का मिलाजुला स्वरूप है। यह फल अब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ‘स्वास्थ्य और स्वाद का राजदूत’ बनकर उभर रहा है। ज़रूरत है कि सरकार, संस्थान और किसान एक साझा रणनीति अपनाएं — जिसमें नवाचार, विपणन, प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे का एकीकृत विकास शामिल हो। तभी कश्मीर का आड़ू, घाटी की खुशबू के साथ दुनिया के बाज़ारों में एक सुगंधित ब्रांड बनकर टिक सकेगा।